किसे सुनाएं बेजुबान पक्षी व जानवर अपनी व्यथा

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मानव की प्रकृति में दखल देने की आदत ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। बिगड़े संतुलन के चलते वातावरण में अनचाहे परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। बिना मौसम के आंधी, वर्षा का आना रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। ऊपर से विकास के नाम पर लाखों पेड़ों की बलि ने इसे और विकराल रूप बना दिया है। प्राकृतिक असंतुलन से मानव जाति प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी तो बेजुबानों पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक हैं।

मानव तो अपने विपरीत हालातों से समझौता कर अपने अनुकूल मशीनरी के द्वारा समझौता कर सकता है पर इन बेजुबान पक्षी व जानवर अपनी व्यथा किसे सुनाएं। उन्हें तो अपने हालातों से जूझना ही पड़ता है। भूखे प्यासे ये जानवर जहां कीटनाशकों का काल बन रहे हैं वहीं शिकारियों की पैनी नजर भी इन पर बनी रहती है। राजस्थान के कई हिस्सों में हिरण व पैंथर पानी की तलाश में ही अपनी जान गवा देते हैं। आमजन व समाजसेवी संस्थाओं को चाहिए कि तालाबों व पोखरों में पीने का प्रबंध करें व जहां पानी हैं उसे कचरा डालकर खराब ना करें।

इन बेजुबानों की अगर हर कोई सहायता कर सकता है तो वो हैं इनके लिए पानी व भोजन का प्रबंध करना। इन बेजुबानों की सुध लेने की जागरूकता का काम किया है डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने। पूज्य गुरूजी के सिखाए मार्ग पर चलते हुए डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों ने पहल की और अपने घरों की छत्तों पर पानी के कटोरे व चोगा रखना शुरू किया। डेरा सच्चा सौदा का यह प्रयास रंग लाया और अनुयायियों के घरों की मंडेर पर मंडराते पक्षियों को देख उनके पड़ौसी भी अपने घरों की छत्तों पर कटोरे व चोगा रखने लगे। डेरा सच्चा सौदा का अनुसरण किया समाजसेवी संस्थाओं ने।

आज देश की अनेक समाजसेवी संस्थाए एक अभियान के रूप में पार्कों व घरों में कटोरे बांधने लगी है तो कहीं पर पक्षियों के लिए भोजन भी रखने लगे हैं। पर दुख होता हैं जब समाजसेवी संस्थाओं द्वारा लगाए गए कटोरे ज्यादतर पानी को तरसते रहते हैं। इसलिए इन संस्थाओं को चाहिए कि कटोरे टांगने के साथ साथ उनमें पानी भरने के लिए भी अपने स्वयंसेवकों की ड्यूटी लगाएं।

इसके अलावा सरकार को भी चाहिए कि वह इन बेजुबानों के लिए बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों के साथ साथ स्थानीय निकाय के पार्कों में पक्षियों के लिए कटोरे लगाकर उनमें पानी डालने की व्यवस्था करवाएं व हो सके तो इन स्थानों पर जनसहयोग से पक्षियों के लिए भोजन भी रखा जा सकता है। बस जरूरत हैं जागरूकता की। एक जागरूकता की मुहिम व सरकार का सार्थक प्रयास ही इन बेजुबानों का सहारा बन सकता है।

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