Uniform Civil Code: एक देश, एक कानून, Coming Soon !

Uniform Civil Code
Uniform Civil Code एक देश, एक कानून, Coming Soon !

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। Law Commission On UCC: देश की राजधानी दिल्ली से बड़ी खबर सामने निकल कर आ रही है। जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार समान नागरिक संहिता (UCC) लाने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने आम जनता से विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

वहीं इस पर आयोग द्वारा जनता, सार्वजनिक संस्थान और धार्मिक संस्थानों व संगठनों के प्रतिनिधियों से एक महीने में इस मुद्दे पर राय मांगी है। गौरतलब हैं कि इससे पहले 2016 में विधि आयोग ने इस मुद्दे पर गहन विचार विमर्श प्रक्रिया शुरू की थी। 2018 मार्च में 21वें विधि आयोग ने जनता के साथ विचार विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फिलहाल देश में इस कॉमन सिविल कोर्ड की जरूरत नहीं है। लेकिन पारिवारिक कानून यानी फैमिली लॉ में सुधार की बात जरूर की थी।

क्या है समान नागरिक संहिता | Uniform Civil Code

समान नागरिक संहिता से तार्त्प्य है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य कानूनों का एक समान सेट प्रदान करना है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है।

समान नागरिक संहिता वाले पंथनिरपेक्ष देश | Uniform Civil Code

विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। समान नागरिक संहिता से संचालित पन्थनिरपेक्ष देशों की संख्या बहुत अधिक है:-जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है।

भारत की स्थिति

भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के लिये एक व्यक्तिगत कानून है, जबकि मुसलमानों और इसाइयों के लिए अपने कानून हैं। मुसलमानों का कानून शरीअत पर आधारित है, अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।

भारत में व्यक्तिगत कानूनों का इतिहास |Uniform Civil Code:

भारत में यह विवाद ब्रिटिशकाल से ही चला आ रहा है। अंग्रेज मुस्लिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव कर उससे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे। हालाँकि विभिन्न महिला आंदोलनों के कारण मुसलमानों के निजी कानूनों में थोड़ा बदलाव हुआ। प्रक्रिया की शुरूआत 1882 के हैस्टिंग्स योजना से हुई और अंत शरिअत कानून के लागू होने से हुआ। हालाँकि समान नागरिकता कानून उस वक्त कमजोर पड़ने लगा, जब तथाकथित सेक्यूलरों ने मुस्लिम तलाक और विवाह कानून को लागू कर दिया। 1929 में, जमियत-अल-उलेमा ने बाल विवाह रोकने मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की। इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस समझौते के बाद हुआ जिसके तहत मुस्लिम जजों को मुस्लिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई।

1993 में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए बने कानून में औपनिवेशिक काल के कानूनों में संशोधन किया गया। इस कानून के कारण धर्मनिरपेक्ष और मुसलमानों के बीच खाई और गहरी हो गई। वहीं, कुछ मुसलमानों ने बदलाव का विरोध किया और दावा किया कि इससे देश में मुस्लिम संस्कृति ध्वस्त हो जाएगी।