अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि आपातकाल जैसे हालात

Uncontrolled, Population, Growth

जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न हुई

जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर वैचारिक विमर्श प्रारंभ होता है, तो कुछ लोगों की प्रतिक्रिया इस प्रकार होती है जैसे कि उनका हक छीना जा रहा हो। कुछ लोग इतने असहिष्णु हो जाते हैं मानो की उनके निजी जीवन पर हमला किया जा रहा हो। वहीं, एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे धार्मिक रूप – रंग देकर जरूरी मुद्दों के प्रति सामाजिक जागरूकता को भटकाने का प्रयास करता है, लेकिन जनसंख्या बृद्धि की समस्या इन सभी तर्कों से ऊपर है।  जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं का असर सब पर पड़ेगा। चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर देश में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनीं। अब तक सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई ठोस नीति बनाने के बजाय केवल नारों और स्लोगनों से ही काम चलाते आई हैं। ‘ हम दो हमारे दो ‘ जैसे नारों से लेकर परिवार नियोजन के सरकारी विज्ञापनों से बड़े – बड़े अभिनेता पैसा कमा कर चले गए, लेकिन जनसंख्या वृद्धि पर कोई असर नहीं हुआ।

वर्ष 2050 तक देश में चालीस करोड लोग और बढ़ जाएंगें।

आज जनसंख्या वृद्धि देश की हर समस्या के पीछे का मूल कारण बनती जा रही है। जैसे गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा स्वास्थ्य सेवाएं, अपराध, स्वच्छ पानी की कमी, इन सब के पीछे भी जनसंख्या बृद्धि एक बड़ा कारण है। देश के पास दुनिया की कुल जमीन का 2.4 फीसद हिस्सा है और इसमें दुनिया की अठारह फीसद आबादी निवास करती है। देश में जमीन के कुल साठ फीसद हिस्से पर खेती होने के बावजूद बीस करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं।देश की आबादी लगातार अनियंत्रित रूप से बढ़ने के कारण ट्रैफिक जाम भी भविष्य में देश की बड़ी समस्याओं में से एक होगा, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि से देश में वाहनों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के हिसाब से सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है। इसी कारण देश की बढ़ती आबादी का बोझ सड़कों पर आसानी से देखा जा सकता है। वर्ष 1950 में भारत की जनसंख्या 37 करोड़ थी। वर्तमान तक यह आंकड़ा 135 करोड़ के आसपास पहुंच गया होगा। इस वृद्धि से अनुमानत: वर्ष 2050 तक देश में चालीस करोड लोग और बढ़ जाएंगें।

  •  जून 2017 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2024 तक दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा
  •  देश में 10 से 35 वर्ष के मध्य आयुवर्ग के युवाओं की आबादी लगभग 60 करोड़ है।
  • इस युवा आबादी को सही दिशा और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हो तो, इनके माध्यम से देश रक्षा, चिकित्सा, अभियांत्रिकी में दुनिया का सिरमौर बन सकता है।
  • सच्चाई यह है कि देश में केवल अनपढ़ युवाओं की ही आबादी लगभग तीस करोड़ है और देश में दस करोड़ युवा ऐसे हैं, जो शिक्षित होने के बावजूद स्किल्ड नहीं है।
  •  बर्ष 2030 तक दस करोड नई नौकरियों की जरूरत होगी।
  • इसके लिए इतने स्किल्ड युवा तैयार करना भी एक चुनौती होगी। बढ़ती जनसंख्या लोगों की सोच और तंत्र की कमियों को दशार्ती है

जापान की राजधानी टोक्यो सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर

जापान की राजधानी टोक्यो सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है। टोक्यो की जनसंख्या तीन करोड़ सत्तर लाख है। जबकि वर्तमान में राजधानी दिल्ली की जनसंख्या दो करोड़ नब्बे लाख है। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक लगभग दस वर्षों में ही दिल्ली की जनसंख्या टोक्यो को भी पीछे छोड़ देगी। ऐसा नहीं है कि विस्फोटक रूप से जनसंख्या वृद्धि केवल दिल्ली में ही हो रही है। बल्कि पूरे देश की हालत ऐसी ही है। वैसे तो पूरी दुनियां की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ रहा है। ग्रामीण आबादी के रोजगार की तलाश में लगातार शहरों की ओर पलायन करने से, शहरी लोगों की जिंदगी भी मुश्किल बनती जा रही है। इसके लिए भी सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं। आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकारें कोई ऐसी नीति नहीं बना पाईं।

  •  देश में लोग गांव छोड़कर शहरों में पलायन कर रहे हैं
  • देश की सरकारें गांव में रोजगार, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कर पाईं।
  • संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक दुनिया की 68फीसद आबादी शहरों में रहने लगेगी।
  • वर्तमान में लगभग पचपन फीसद जनसंख्या शहरों में निवास करती है।
  • देश की आबादी इसी तरह विस्फोटक रूप से बढ़ती रहेगी, तो सबसे पहले दिल्ली में आपातकाल जैसे हालात पैदा होंगे।
  • 2021 का मास्टर प्लान लागू हो जाना चाहिए था। इस  के अनुसार 2021 तक दिल्ली में हर आदमी को रहने के लिए चालीस स्क्वायर मीटर जगह की आवश्यकता होगी।

2030 तक दिल्ली दुनियां का सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन जाएगा

जनसंख्या वृद्धि में दिल्ली सबसे आगे है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक दिल्ली दुनियां का सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन जाएगा। देश में जब भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर नीति निर्माण की चर्चा होती है तो कुछ बुद्धिजीवी चीन की जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहन देने की नीति का उदाहरण देकर, देश की जनसंख्या वृद्धि को उचित ठहराते हैं। इस परिपेक्ष्य में जनसंख्या नीति को लेकर भारत – चीन की तुलना उचित नहीं है। चीन की जनसंख्या नीति इसलिए लचीली है, क्योंकि चीन में कामकाजी युवाओं की आवश्यकता अनुसार अपर्याप्तता बढ़ती जा रही है। चीन ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2060 तक 60 वर्ष से ऊपर के प्रति दो बुजुर्गों पर तीन युवा होगें। ऐसे में संकट यह होगा कि युवा नौकरी करेंगे या बुजुर्गों की सेवा करेंगे। जबकि भारत एक युवा देश है जिसकी वर्तमान युवा आबादी साठ फीसद से अधिक है। ऐसे में भविष्य की आवश्यकता को देखते हुए भारत के संदर्भ में चीन की जनसंख्या नीति अनुपयुक्त है। चीन ने अपनी बढ़ती हुई आबादी को संसाधन मानकर, लोगों को अर्थव्यवस्था के विकास में भागीदार बनाया। इसलिए चीन आज दुनियां का सबसे बड़ा उत्पादक है।

अश्विनी शर्मा

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