दौरा व मुआवजा नहीं हो स्थाई हल

Tour and compensation are not permanent

अभी तो अनुमान से ज्यादा मानसून भी नहीं आया कि नदियों में बह रहे पानी ने केंद्र व राज्य सरकारों के विकास के दावों की सच्चाई उजागर कर दी। मिसाल तीन राजधानियों की है। एक देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है और दूसरी बिहार की राजधानी पटना और तीसरी महाराष्टÑ की राजधानी मुंबई है। पटना के सरकारी अस्पताल में बारिश का पानी भर गया है और मरीज बैड से नीचे नहीं उतर सकते। आईसीयू में मछलियां तैर रही हैं। दूसरी तरफ यमुना नदी में बढ़ रहा पानी दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ है। प्रशासन ने 1500 से अधिक घर खाली करवा लिए हैं।

लोगों के लिए अस्थाई रिहायश का भी प्रबंध कर दिया है। केवल मुंबई में आम की अपेक्षा अधिक बारिश जरूर हुई है। प्रत्येक तीन सालों के बाद मुंबई में ऐसा होता है लेकिन बीते समय से अभी तक सबक नहीं लिया और न ही मुंबई के लिए कोई योजना तैयार की। हालांकि मुंबई देश का आर्थिक महानगर है। आश्चर्यजनक बात यह है कि 21वीं शताब्दी में देश के हालात यह हैं कि देश की राजधानी के लोग बेबस हैं। विकासशील देशों ने आज से कई दशक पहले केवल बाढ़ बचाओ प्रबंध ही नहीं किए बल्कि बारिश के अतिरिक्त पानी का उचित प्रयोग भी किया। हमारा देश एक ही समय सूखे व ज्यादा पानी की समस्या का सामना करता है।

तकनीक के युग में यमुना में बाढ़ का खतरा बीते समय की बात होना चाहिए थी। हमारे ही देश ने मिसाइलों, हवाई जहाजों, समुद्री जहाजों व अंतरिक्ष जांच में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की है। अंतरिक्ष में हम कई देशों के सैटेलाइट छोड़ने में मदद कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ नदियों का पानी हमारे लिए खतरा बना हुआ है, जो बेहद उपयोगी है। दरअसल सारी उलझन तकनीक की सभ्य व उचित प्रयोग न करने व संतुलित विकास की कमी के कारण है।

बाढ़ से प्रभावित तो हर कोई होता है लेकिन सबसे अधिक मार गरीब वर्ग को पड़ती है। गरीब को मुआवजा देकर चुप करवाया जाता है। राजनीतिक कल्चर का दूसरा नाम मुआवजा व्यवस्था और दौरा कल्चर है। जनता को आवश्यकता मुआवजे की नहीं बल्कि बाढ़ के स्थायी समाधान की है। देश के लिए शाइनिंग इंडिया, नया भारत और कई अन्य राजनीतिक नारे तो सुने जाते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर सुधार की भारी मांग है।

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