जीतता वही है, जिसे खुद पर भरोसा हो

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गत 23 जून को 11 से 16 साल आयु के 12 बच्चे और एक कोच लगभग 10 हजार 316 मीटर लम्बी तथा थाईलैंड की चौथी सबसे बड़ी गुफा ‘टैम लूंग’ में फंस गए। ये बच्चे फुटबाल के अभ्यास के बाद इस गुफा को देखने गए थे और भारी बारिश के कारण इसमें फंस गए। संकरे टेढ़े-मेढ़े रास्तों, घुप अंधेरे और पानी से लबालब गुफा में बच्चे दो हफ्तों से भी अधिक समय तक रहे।

इस दौरान लगातार बारिश हो रही थी। बच्चों को तैरना नहीं आता था। गहराई होने के कारण आॅक्सीजन की कमी हो रही थी। बच्चों में संक्रमण का खतरा था। गुफा में चमगादड़ और अन्य जानवरों के काटने से गंभीर बीमारियां हो सकती थीं। परिस्थितियों की भयावहता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि गुफा में फंसे इन बच्चों को सामान पहुंचाने गए गोताखोर समन गुनन लौटते वक्त बेहोश हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई।

नि:संदेह इन बच्चों को सुरक्षित निकालना थाईलैंड के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। परिस्थितियां बेहद मुश्किल थीं और विकल्प सीमित। बच्चे गुफा के मुख से करीब चार किलोमीटर भीतर थे, तो पहाड़ की चोटी से लगभग एक किलोमीटर नीचे। लगातार हो रही बारिश के कारण गुफा के प्रवेश द्वार पर बाढ़ जैसे हालात हो गए। परिस्थितियां बेहद मुश्किल हो गई थीं, हालांकि थाईलैंड द्वारा घटना की जानकारी के बाद से ही बचाव अभियान प्रारम्भ कर दिया गया, लेकिन यह प्रयास नाकाफी थे।

संकट के इस दौर में दुनिया के अनेक देशों ने मदद के लिए पहल की। प्रवेश द्वार बंद हो जाने के कारण दूसरे वैकल्पिक रास्ते खोजे गए। पहाड़ों में ड्रिलिंग की गई। थर्मल कैमरे वाले ड्रोन से संभावित रास्ता ढूंढा गया। पानी की गहराई का पता लगाने के लिए रोबोट और बच्चों के कपड़ों की गंध पहचानने के लिए खोजी कुत्तों की मदद ली गई।

घटना के नौवें दिन ब्रिटेन के ‘केव एक्सपर्ट’ जॉन वोलेंनथन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय बचाव दल ने नियोजित तरीके से कार्य शुरू किया। पहली बार बच्चों की लोकेशन पता चली और उनसे पूछा गया कि वे कैसे हैं तो एक बच्चे ने जवाब दिया, ‘आप चिंता मत कीजिए…….हम सभी बहादुर बच्चे हैं।’

बस फिर क्या था, थाईलैंड की नौसेना और वायुसेना के लगभग 40 तथा ब्रिटेन, चीन, म्यामार लाओस, आस्ट्रेलिया, अमरीका और जापान सहित दुनिया के अनेक देशों के 50 सहित कुल 90 विशेषज्ञों की टीम ने इस ‘मिशन इंपोसिबल’ को संभव बनाने की ठान ली। यह गोताखोर रस्सियों के सहारे पानी में तैरते हुए आगे बढ़े। एक बच्चे पर दो-दो गोताखोर तैनात किए गए। चैम्बर थ्री नाम से एक नया बेस बनाया गया।

गुफा में आॅक्सीजन लाइन बिछाई गई, जिससे बच्चों को सांस लेने में तकलीफ नहीं हो। बच्चों के लिए खाना, पानी और दवाइयां भी पहुंचाई गई। बच्चों के साथ फंसे हुए कोच थाम लुआंग नांग ने बच्चों को लगातार मॉटिवेट किया, जिससे उनके आत्मविश्वास में कमी नहीं आए। इस दौरान बचाव दल ने पूरी बहादुरी से कार्य किया और पहले चरण में एक दर्जन से अधिक बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया।

अब भी चार बच्चे और कोच गुफा में फंसे थे, लेकिन बचाव दल ने हार नहीं मानी और बेहद मुश्किल परिस्थितियों पर अतंत: मानवीय उम्मीद और हौंसले की जीत हुई। सभी बच्चों और कोच को सुरक्षित बाहर निकाल लिया है तथा लगभग 18 दिनों तक विकट हालातों में रहे बच्चों का इलाज एक अस्पताल में चल रहा है। शीघ्र ही उन्हें डिसचार्ज कर दिया जाएगा।

नि:संदेह इस पूरी घटना ने अनेक संदेश दिए। पहला, समस्या कभी बताकर नहीं आती। दूसरा, मुश्किल परिस्थितियों में हथियार नहीं डालने चाहिए। ऐसे दौर में अगर व्यक्ति अपना आत्मविश्वास बुलंद रखे तो उस परिस्थिति से निकला जा सकता है। तीसरा, संकट के ऐसे समय में मदद करने वालों को भी पहल करनी चाहिए। इसके लिए देश और धर्म की सीमाओं को लांघकर आगे बढ़ने की जरूरत होती है।

नि:संदेह ऐसी विकट परिस्थिति पर विजय हासिल करने में अनेक बाधाएं आती हैं, लेकिन इन बाधाओं से डरता नहीं है अंतत: वही जीतता है। यहां बच्चों की बहादुरी की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। लगभग 18 दिन ऐसे स्थान और परिस्थितियों में रहना, जिससे निकलकर आना लगभग नामुंकिन था, बावजूद इसके बच्चों ने हिम्मत का परिचय दिया।

हरि शंकर आचार्य

 

 

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