ट्रम्प को समझना होगा भारत का महत्व

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डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहली बार अमेरिका की यात्रा कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की यह यात्रा उनकी पूर्ववर्ती यात्राओं से कई मायनों में अलग होगी। अलग इसलिए, क्योंकि भारत-अमेरिकी संबंधों में फिलहाल वैसी गर्मजोशी नहीं रही, जो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में थी।

दोनों देशों के बीच अभी व्यापार, वीजा और आउटसोर्सिंग सहित कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर राष्ट्रपति ट्रम्प असहज हैं। रही सही कसर पेरिस जलवायु समझौते के मुद्दे पर ट्रम्प ने यह कहकर पूरी कर दी कि भारत अपने लालच की पूर्ति के लिए समझौते में बना हुआ है। साफ देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की यात्रा को लेकर दोनों ही देशों के माहौल में ठंडापन है।

न तो वाशिंगटन मेंं इस यात्रा को लेकर कोई खास उत्साह का माहौल है और न ही भारत इस यात्रा को लेकर कोई बहुत बडे दावे कर रहा है। इसका अर्थ है कि यात्रा की सफलता काफी हद तक दोनों नेताओं के बीच होने वाली बातचीत पर निर्भर करेगी। यह तभी होगा, जब दोनों नेता यात्रा से पहले निर्मित हो चुके दायरों को लांघ कर मुक्त हृदय से बातचीत की टेबल पर आएंगे।

हालांकि प्रधानमंत्री की यात्रा से कुछ ही घंटों पहले अमेरिका ने भारत को 22 गार्जियन ड्रोन की बिक्री को मंजूरी देकर इस बात का संकेत दे दिया है कि अमेरिका अभी भी भारत को अपनी महत्वपूर्ण जरूरत मानता है। ड्रोन की बिक्री से संबंधीत यह समझौता करने वाला भारत ऐसा पहला देश है, जो नाटो का सदस्य नहीं है। अब तक अमेरिका ने इस तरह का समझौता केवल नाटो देशों के साथ ही किया है।

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार इस सौदे को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। इस सौदे के बाद भारत-अमेरिकी रिश्ते और मजबूत होने की उम्मीद की जा रही है। इसके अलावा ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन पर दोनों देश समान राय रखते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सब कुछ एक अकेले ट्रम्प पर निर्भर करेगा। भारत को भी कुछ मामलों में अपनी ओर से पहल करनी पड़ सकती हैं।

हालांकी अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रम्प ने कई अवसरों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत की प्रंशसा करते हुए कशिदे कढ़े थे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उनके स्वर बदल गए। सत्ता में आने के तीन माह के भीतर ही ट्रंप ने भारतीय आईटी कंपनियों पर नकेल कसने संबंधी प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा भारत की आईटी कंपनियों को सकते में डाल दिया है।

एच1-बी वीजा पर ट्रम्प प्रशासन ने जो रवैया अपनाया है, उससे भारतीय आईटी पेशवरों के सामने मुश्किलें खड़ी होंगी। हालांकि प्रधानमंत्री की यात्रा से ठीक पहले ट्रम्प ने बड़ी आईटी कंपनियों के संचालकों के साथ बैठक कर इस बात के संकेत दिये हैं कि वे वीजा नियमों में जरूरी संशोधन कर कुछ राहत दे सकते हैं।

इसके अलावा पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों के ठिकानों पर ड्रोन हमले किए जाने की बात भी उन्होंने कही है। मोदी की यात्रा से पहले यकायक ट्रंप के रवैये में आया बदलाव यह दिखाता है कि एशिया में अमेरिकी दखल को बनाए रखने के लिए वे भारत की अनदेखी नहीं कर सकते।

ट्रम्प इस तथ्य से भी परिचित हैं कि सुरक्षा क्षेत्र में भारत का अमेरिका के साथ हमेशा से अच्छा रिश्ता रहा है। अमेरिका से हथियारों की खरीद के मामले में भारत चौथे नंबर पर है। सैन्य रणनीति के मामलों में भी दोनों देशों के बीच ठोस आधार है। अमेरिका अभी भी भारत को एक बडे रक्षा भागीदार के रूप में देखता है। वह इस बात को भी अच्छे से समझते हैं कि समुद्री सुरक्षा से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ रहे आतंकवाद से निपटने के लिए भारत बड़ी जरूरत साबित हो सकता है।

इसके अलावा एशिया में चीन, रूस और पाकिस्तान के बीच पनपते त्रिगुट की पृष्टभूमि में भी भारत-अमेरिका की जरूरत बनकर उभरेगा। वे जानते हैं कि एशिया में चीन के प्रभाव को रोकना है, तो उन्हें भारत को साथ लेकर चलना होगा। ट्रंप अपने अब तक के कार्यकाल में जिस छवि को लेकर उबरे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि उनके स्वभाव की तरह उनकी नीतियों में भी स्थायित्व नहीं है।

वे द्विपक्षीय संबंधों को नए सिरे से तय कर रहे हैं और कुछ मामलों में पाला भी बदल रहे हैं। कतर का मामला हमारे सामने हैं। ऐसे में जब वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत की टेबल पर आएंगे, तो असल परीक्षा हमारे प्रधानमंत्री की ही होगी। प्रधानमंत्री मोदी अपनी बॉडी लैंग्वेज, वाक्पटूता और प्रभावशाली शब्दावली के लिए विश्वभर में जाने जाते हैं।

ऐसे में मोदी के लिए यह ज्यादा मुश्किल नहीं होगा कि वे ट्रम्प को अपने रंग में न रंग पाएं। हालांकि दोनों नेताओं के बीच कुछ अवसरों पर अनौपचारिक बातचीत जरूर हो चुकी है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से दोनों नेता पहली बार मिल रहे हैं। बातचीत के दौरान दोनों के बीच पाक-प्रायोजित आतंकवाद और अन्य अतंरराष्ट्रीय मुद्दों सहित क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति पर चर्चा होने की उम्मीद है। आपसी व्यापार बढ़ाने के अलावा दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों पर भी चर्चा हो सकती है।

दोनों नेताओं की मुलाकात के दौरान भारत-अमेरिका के बीच स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप को आगे बढ़ाए जाने पर चर्चा होने की संभावना है। आतंकवाद के मसले पर भी दोनों देशों के विचार मेल खाते हैं।

आतंकवाद के खिलाफ साझा अभियान और रक्षा संबंधों के विस्तार पर भी चर्चा की संभावना है। इसके अलावा अफगानिस्तान-पाकिस्तान रीजन में आतंकवादी संगठनों के बढ़ते नेटवर्क और अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थिति पर प्रमुखता से बात हो सकती है। मोदी-ट्रम्प की मुलाकात में पश्चिम एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा भी उठ सकता है।

यात्रा के दौरान मोदी हम्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर भी जा सकते है। मोदी का अंतरिक्ष कुटनीति में लगाव है। बताया जा रहा है कि भारत और अमेरिका 2021 में ज्वाइंट सैटेलाइट लॉच करने की भी योजना है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राष्ट्रवादी सोच के दोनों ही नेताओं के लिए अपना राष्ट्र प्रथम है।

ट्रम्प ’मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के तहत अमेरिका को महान बनाना चाहते हैं और प्रधानमंत्री मोदी ’मेक इन इंडिया’ के तहत भारत को निर्मित करना चाहतें है। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच बन रही बहुआयामी रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत किया जा सकेगा, इसमें संदेह नहीं हैं।

-एनके सोमानी