ध्वस्त होना चाहिए टेरर फंडिग नेटवर्क

Terror Funding Network, Destroy

पड़ोसी देश पाकिस्तान हमेशा हमारे देश भारत में अशांति फैलाने की फिराक में रहता है। सीमा पार से आंतकी घुसपैठ के अलावा टेरर फंडिग तक का हर नापाक हथकंडा पाकिस्तान अजमाने में गुरेज नहीं करता है। भारत में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान किस तरह से जाल फैलाता जा रहा है, इसका खुलासा लश्कर-ए-तैयबा और आइएसआइ के लिए काम करने वालों की गिरफ्तारी से हुआ है।

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने ऐसे दस लोगों को गिरफ्तार किया है जो आतंकियों को पैसा पहुंचाने का काम करते थे। यह पैसा पाकिस्तान से आता था। आतंकियों के लिए काम करने वाला यह गिरोह उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ज्यादा सक्रिय है। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है जब आतंकियों को मदद पहुंचाने की पाकिस्तान की करतूत का पदार्फाश हुआ हो। पहले भी कई बार इस तरह की गिरफ्तारियां हुई हैं।

पकड़े गए लोगों के पास भारी नगदी, एटीएम कार्ड, स्वाइप मशीनें, मैग्नेटिक कार्ड रीडर, लैपटॉप, पिस्तौल, कारतूस जैसी चीजों का मिलना इस बात का प्रमाण है कि कितने सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र रचे जा रहे थे। ऐसी साजिशों को समय रहते नाकाम करना हमारे सुरक्षा बलों और खुफिया एजंसियों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे हालातों में देश में हमेशा किसी न किसी आंतकी वारदात के घटने की आशंका बनी रहती है।

आतंकियों को पैसा पहुंचाने वाला नेटवर्क लाहौर और दूसरे पाकिस्तानी ठिकानों से संचालित होता है। क्या पता हमारे बैंकों और दूसरे स्थानीय महकमों में काम करने वाले कुछ लोगों की भी इसमें मिलीभगत हो! या, यह सिर्फ लापरवाही का मामला है? यह गंभीर जांच का विषय है। पर इतना साफ है कि जिस प्रकार इस तरह का नेटवर्क काम करता है, वह किसी एक या बस दो-चार लोगों का काम नहीं हो सकता। पकड़े गए लोग बैंकों में फर्जी नाम से खाते खोलते थे।

इन खातों में पाकिस्तान, कतर और नेपाल से पैसा डाला जाता था और फिर यह पैसा निकाल कर आतंकियों तक पहुंचाया जाता था। काम करने वालों को मेहनताने के रूप में कमीशन दिया जाता था। ऐसे में सवाल उठता है कि जो लोग फर्जी खाते खोल रहे हैं वे पकड़ में क्यों नहीं आ रहे? हालांकि आजकल बिना आधार और पैन कार्ड के खाते नहीं खुलवाए जा सकते।

फिर भी आए दिन फर्जी पहचान-पत्र, फर्जी आधार कार्ड और फर्जी पैन कार्ड बन जाने की खबरें सामने आती रहती हैं। जाहिर है, बिना मिलीभगत के इस तरह के काम संभव नहीं होते। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान पैसे का लालच देकर किस तरह कुछ लोगों को विध्वंसक गतिविधियों में शामिल कर रहा है।

बीते फरवरी को आतंकवाद को शह देना पड़ोसी देश पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ा था। सूत्रों के अनुसार, पेरिस में फायनांशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की मीटिंग में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में शामिल करने का फैसला हुआ है। ग्रे लिस्ट में शामिल देशों पर टेरर फंडिग के लिए कड़ी निगरानी रखी जाती है। सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान के खिलाफ अमरीका द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव का भारत, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने समर्थन किया।

खास बात यह है कि पाकिस्तान के सदाबहार दोस्त चीन ने भी ऐन वक्त पर उसका साथ छोड़ते हुए प्रस्ताव पर अपनी आपत्तियां वापस ले लीं। एफएटीएफ का यह कदम पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर होगा, जिसकी हालत पहले से ही काफी खस्ता है। पाकिस्तान के साथ व्यापार करने की इच्छुक अंतरराष्ट्रीय कंपनिया, बैंक और ऋण देने वाली अन्य संस्थाएं वहां निवेश करने से पहले कई बार सोचेंगी। पाकिस्तान के लिए भी विदेशी निवेश लाना काफी मुश्किल हो जाएगा।

बता दें कि पाकिस्तान ने मंगलवार को दावा किया था कि एफएटीएफ की मीटिंग में उसे तीन महीनों की मोहलत दिए जाने का फैसला हुआ है, लेकिन गुरुवार को पाकिस्तान के इस दावे पर उस वक्त सवाल खड़े हो गए थे, जब अमरीकी मीडिया के हवाले से यह खबर सामने आई कि आखिरी फैसला होना अभी बाकी है। सूत्रों के मुताबिक, अमरीका के दबाव में इस प्रस्ताव पर फिर से वोटिंग कराई गई, जिसमें ज्यादातर देशों ने पक्ष में वोट डाला। पाकिस्तान को फिलहाल तीन महीने के लिए ग्रे लिस्ट में डाला गया है।

जून में एक बार फिर इसकी समीक्षा की जाएगी। अमरीका का साफ कहना है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को फंडिंग रोकने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों को लागू करने के लिए उचित कदम नहीं उठाया है। पिछले महीने ही अमरीका ने पाकिस्तान को मिलने वाली करोड़ों डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी थी। भारत भी सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर बेनकाब करता रहा है। हालांकि पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है।

बता दें कि एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो विभिन्न देशों के बीच मनी लांड्रिंग और टेरर फंडिंग जैसे मामलों को देखता है। एफएटीएफ गैरकानूनी फंड के खिलाफ मानक तय करती है। पाकिस्तान को इसके पहले साल 2012 से 2015 तक इस लिस्ट में डाला गया था। पाकिस्तान को पता था कि इस बार एफएटीएफ की मीटिंग में उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, इसलिए उसने जमात-उद-दावा चीफ हाफिज के खिलाफ कार्रवाई का नाटक किया था। बावजूद इसके पाकिस्तान सुधरने को तैयार नहीं है।

जून 2017 में पाकिस्तान की करतूत सामने आयी थी। असल में पाकिस्तान हमेशा से ही आतंकवादियों का पनाहगार रहा है यह बात किसी से छुपी नहीं है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान दरगाहों से मिलने वाले चंदे के पैसे से भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए फंडिंग करता है। राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक सुदूर गांव से आईएसआई के जासूस दीना खान को गिरफ्तार किया था। उसने ही खुफिया अधिकारियों के समक्ष इस बात को कबूला था। राज्य की खुफिया और सुरक्षा एजेंसी के एक सीनियर आॅफिसर ने बताया, खान ने बताया कि वह बाड़मेर जिले के चोहटान गांव में स्थित एक छोटी मजार का प्रभारी था।

उसने मजार पर चंदे से प्राप्त पैसों में से करीब 3.5 लाख रुपये अन्य जासूसों जैसे सतराम माहेश्वरी और उनके भतीजे विनोद माहेश्वरी को दिए। दीना खान पाकिस्तान में बैठे आईएसआई के हैंडलर्स से फोन पर बात करता था, जहां से उसे पैसे बांटने का निर्देश दिया जाता था। पुलिस को संदेह है कि आईएसआई ने अपनी जासूसी गतिविधियों के लिए फंड जुटाने के मकसद से सीमावर्ती क्षेत्रों के कई स्थानों पर दान पेटियां डाली होंगी। अधिकारी ने बताया, हवाला नेटवर्क के जरिए पैसा बांटना मुश्किल है क्योंकि यह पकड़ में आ जाता है।

इसलिए पैसा जुटाने और जासूसों के बीच बांटने के लिए दान पेटी बहुत आसान रास्ता है। बता दें सीमा पर आतंकवादी लगातार घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं और भारतीय सेना की मुस्तैदी से आतंकियों की घुसपैठ की कई घटनाओं को नाकामयाब कर दिया है। भारतीय सेना अपनी कार्रवाई से आतंकवाद और आतंकियों को माकूल जवाब दे रही है।

पिछले साल राष्ट्रीय जांच एजंसी (एनआइए) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग और हवाला रैकेट का खुलासा किया था। उसके बाद ही पता चला कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में आइएसआइ के एजंट और आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल काम कर रहे हैं। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने पाकिस्तान यही कहता फिरता है कि ऐसी घटनाओं से उसका कोई लेना-देना नहीं है। आतंकियों के इन मददगारों के तार कहां-कहां फैले हैं, यह तो गहन जांच के बाद ही पता चलेगा।

ऐसे में जरूरी है कि सुरक्षा बलों, खुफिया एजंसियों और स्थानीय पुलिस में बेहतर तालमेल बने और समय रहते ऐसे नापाक मंसूबों का पदार्फाश किया जा सके! टेरर फंडिग की जड़े बहुत गहरे तक फैली हैं। सुरक्षा एजेंसियों को मुस्तैदी बढ़ाने की जरूरत है। पाकिस्तान के नापाक टेरर फंडिग नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने की जरूरत है।

संतोष भार्गव

 

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