पारदर्शिता से ही लगेगा भ्रष्टाचार पर अंकुश

एक बार फिर देश में सतर्कता जागरुकता स΄ताह का आगाज हो गया है। एक स΄ताह तक केन्द्र व राज्य सरकारों और इनके उपक्रमों में आयोजनों का दौर चलेगा, एक से एक भाषण होंगे और भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने का संकल्प होगा और रिश्वत नहीं लेने और नहीं देने की शपथ ली जाएगी। यह अंतहिन सिलसिला अनवरत रुप से देश में चला आ रहा है। हांलाकि देश में केन्द्रीय सतर्कता आयोग के फरवरी 1964 में गठन के साथ ही भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने का संकल्प किया गया। सतर्कता आयोग को 1998 से संवैधानिक दर्जा भी दिया जा चुका है। एक की जगह 3 सदस्यीय आयोग बन गया है। केन्द्रीय व राज्य सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति के साथ ही केन्द्र व राज्य सरकारों के कार्यालयों व उपक्रमों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति होने लगी है। इस सबके बावजूद परिणाम सामने हैं। जनवरी में जारी ट्रान्सपरेन्सी इन्टरनेशनल की रिपोर्ट में 168 देशों में हमारे देश की रेंकिंग 76 वीं है।
सूचना का अधिकार,सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए सतर्कता आयुक्तों की व्यवस्था, प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर से सतर्कता दिवस, स΄ताह, पखवाड़ों का आयोजन, भ्रष्ट आचरण न करने की शपथ और भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना जैसे आंदोलनों के बावजूद भ्रष्ट देशों की सूची में अभी हमारा देश काफी आगे हैं। पिछले दिनों ट्रान्सपरेन्सी इन्टरनेशनल द्वारा बर्लिन में जारी 168 देशों की नवीनतम सूची के अनुसार भारत अब 76 वीं नंबर पर है। दूसरी तरफ न्यूजीलैण्ड पहले नंबर पर है। दूसरे शब्दों में न्यूजीलैण्ड में भ्रष्टाचार सबसे कम है। आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में भ्रष्टाचार पर अंकुश पहली आवश्यकता बन गई है। देखने की बात यह है कि अब देश में भ्रष्टाचार का तरीका भी बदलने लगा है। एक समय था जब सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार के गढ़ माने जाते थे, पर अब उसका स्थान संस्थागत भ्रष्टाचार लेता जा रहा है। पहले दफ्तरों में रिश्वत बड़ी बात मानी जाती थी, आज भ्रष्टाचार के नए केन्द्र के रूप में स्पेक्ट्रम, गेम्स, रियल स्टेट या अन्य इसी तरह के केन्द्र सामने आ रहे है, जिसमें भ्रष्टाचार का वल्यूम भी अधिक देखने को मिलता है।
आर्थिक विश्लेषकों द्वारा विकास दर को लेकर चिंता व्यक्त की जाती रही है तो इस चिंता से भ्रष्टाचार पर रोक की चिंता को जोड़ लिया जाए तो निश्चित रूप से विकास दर को बढ़ाया जा सकता है, अपितु विकास दर में बिना कुछ अतिरिक्त किए ही दो से ढ़ाई प्रतिशत की वृद्धि अर्जित की जा सकती है। दरअसल भ्रष्टाचार के कारण निवेश का माहौल भी खराब होता है। निवेशक निवेश के समय अपनी सुविधाएं देखता है, निवेश का माहौल देखता है, आधारभूत सुविधाएं चाहता है और यह चाहता है कि उसका निवेश अनावश्यक रूकावटों की भेंट तो नहीं चढें। हांलाकि केन्द्र और उसकी पहल पर अब राज्य सरकारों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एकल विण्डों और अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। यहां तक की इस तरह का सिस्टम बनाया जा रहा है जिसमें सीधे आॅनलाईन ही आवेदन से लेकर स्वीकृति तक की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सके। इसकी नियमित मोनेटरिंग भी हो रही है पर अभी तक आशाजनक परिणाम दिखाई नहीं दे रहे हैं।
भ्रष्टाचार कोई नई समस्या नहीं है, पर पिछले वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ विश्वव्यापी माहौल बनने लगा है। अरब देशों में जिस तरह से भ्रष्टाचार के कारण क्रान्ति का बिगुल बजा और वर्षों से जमे सत्ताधारियों की सत्ता को हिला कर रख दिया, सत्ताधारियों के लिए यह इशारा काफी होना चाहिए। 20 अक्टूबर, 10 को ट्यूनिशिया से आंरभ भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश मिश्र, यमन, लीबिया और सीरिया तक फैल गया। अन्ना के प्रति जनसमर्थन से यह तो माना ही जा सकता है कि देश भ्रष्टाचार पर रोक चाहता है।
भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए विश्व प्रसिद्ध सामाजिक संस्था डेरा सच्चा सौदा, सरसा ने भी मुहिम चलाई हुई है। इसके अंतर्गत मौजुदा पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के आह्वान पर यहां के हजारों अनुयायी लिखित में रिश्वत न लेने व न देने का प्रण कर चुके हैं। इन लोगों में एक तरफ जहां बहुत से सरकारी कर्मचारी व वहीं हजारों की संख्या में आमजन है।
पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार के नए केन्द्र विकसित हुए है। यह सही है कि कृषि क्षेत्र अभी इससे अधिक प्रभावित नहीं है। पर रियल एस्टेट, टेलीकम, निर्माण क्षेत्र, प्रातिक संपदा के आवंटन और नीति निर्धारण ऐसे क्षेत्र उभरे हैं। सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए नए-नए रास्ते खोज रही है। सूचना का अधिकार व सार्वजनिक निर्माण कार्य स्थल पर विवरण चस्पा करने के साथ ही समय पर काम होने के लिए नागरिक अधिकार पत्र व कुछ प्रदेशों में समय पर काम नहीं करने पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने जैसे प्रावधान किए गए है। राज्यों में मुख्य सतर्कता आयुक्तों के साथ ही कमोबेस सभी सरकारी कार्यालयों में सतर्कता आयुक्तों की व्यवस्था है। यह व्यवस्था अभी तक अपना प्रभाव नहीं छोड़ पायी है।
सर्तकता दिवस पर संदेश जारी हो जाता है, सतर्कता स΄ताहों, पखवाड़ों का आयोजन हो जाता है पर संभवत: केन्द्रीय मुख्य सतर्कता आयुक्ता या किसी सतर्कता आयुक्त द्वारा स्वप्रेरणा से भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया हो, ऐसा उदाहरण अभी सामने नहीं आया है। राज्यों में लोकायुक्त जांच होती भी है तो उस पर ठोस कार्यवाही नहीं दिखती।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार भ्रष्टाचार के प्रति सजग है और देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए वचनवद्घ भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्यवस्था को पारदर्शी बनाने पर जोर दिया है। सही भी है कि समय पर पारदर्शी तरीके से काम होने लगे तो भ्रष्टाचरण ही नहीं अन्य कई समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। काम में देरी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। सही समय पर काम हो तो आमजन का विश्वास जमता है। अब आम जन में भी भ्रष्टाचार के विरूद्घ खुलकर आवाज उठने लगी है, ऐसी स्थिति में समय रहते ठोस प्रयास करते हुए सार्वजनिक जीवन में शुचिता लानी होगी। भ्रष्टाचार के मामलों के उजागर होने पर उनसे सख्ती से निपटना होगा।
डॉ़ राजेन्द्र प्रसाद शर्मा