‘आत्मा, ओम-हरि का एक अंश है, कभी नहीं होती खत्म ’

Ram Rahim

बरनावा। वीरवार को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से साध-संगत को दर्शन दिए। पूज्य गुरु जी ने रूहानी सत्संग के दौरान साध-संगत के प्रश्नों का रूहानी जवाब दिया।

आॅनलाइल गुरुकुल में डॉ एमएसजी ने दिये, रूहानी जवाब

सवाल: पवित्र ग्रंथों में जो ‘राम’ शब्द आता है वह कौन सा राम हैं?
जवाब: राम वैसे तो चार हैं सूफियत के अनुसार, ‘‘एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट-घट बोले, एक राम का सकल पसारा, एक राम त्रिगुण से न्यारा’’। एक राम विष्णु जी के अवतार श्री राम जी हुए हैं। राजा दशरथ जी के पुत्र, एक राम मन है, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं। आपने सुना ही होगा कि मेरा मन ही राम नहीं मानता, तो वो हकीकत है। मन को भी धर्मों में कहीं राम का दर्जा दिया गया है। ये बड़ा पावर फुल है। आसानी से नहीं मानता, जिस आदत के स्वामी आप बन गए। उसे आप छोड़ोगे नहीं। और तीसरा राम सकल पसारा, काल। महाकाल, त्रिलोकीनाथ, जिसने सारी त्रिलोकियों को बहारी रूप से बनाया है और चौथा राम त्रिगुण न्यारा राम, रझौ, तमौ, सतौ, तीन गुणों से इंसान की पहचान, और तीनों गुणों से जो महान है, वो ओम, सुप्रिम पावर उसे ‘राम’ कहा गया है।

सवाल: क्या स्वर्ग और नर्क इसी जमीन पर हैं, या कहीं ओर भी हैं?

जवाब: हमें लगता है दोनों जगह हैं। यहां पर भी आदमी गलत कर्म करता हैं तो दु:खी रहता है, परेशान रहता है। सब कुछ होते हुए भी कंगाल रहता है, टेंशन में, दु:ख में, बीमारी में, परेशानी में लाचार रहता है। तो एक तरह से नर्क जैसा वो यहां भोग रहा है। और दूसरा वहां रूहानी मंडलों में, हकीकत है, वहां आत्मिक तौर पर, शरीर नहीं जाया करते, सिर्फ आत्मा के लिए निश्चित है। जैसे कर्म यहां किये, जो आप नहीं भोग पाये, जो माफ नहीं हो पाये, तो वहां आगे भी भोगने पड़ते हैं और अच्छे कामों के लिए यहां भी सुख है, और आगे आत्मा को अच्छे कर्म से स्वर्ग मिलता है, लेकिन मुक्ति सिर्फ राम नाम से मिलती है और कोई तरीका नहीं। अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड का नाम लेना पड़ता ही है।

सवाल: क्या ईष्या, नफरत धर्मों की देन है?
जवाब: जी नहीं, ये इंसान की देन है। मन शैतान की देन है।
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सवाल: आत्मा क्या है, ये कैसे पैदा होती है, और कैसे खत्म होती है?
जवाब: आत्मा, ओम, हरि, अल्लाह, गॉड का एक अंश है। एक नूर का कण है और ये कभी खत्म नहीं होती। ये मालिक में समा सकती है, जब कोई भक्ति, इबादत करता है। लेकिन उसकी पहचान भी वहां भी बनी रहती है। मालिक के अंदर समा कर भी वो एक पहचान रखती है।
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सवाल: जब भी कोई पीर, फकीर, इस धरा पर आए, मौकिकी हुकूमत ने उन पर जुल्म ढाए, बेशक बाद में उनको भगवान की तरह पूजा जाता है। क्या कभी ऐसा भी समय आएगा, जब मौकिकी हुकूमत मौके के पीर फकीरों का सम्मान करेगी?
जवाब: समय का जो राजा है वो ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम है। तो आज अगर हम कुछ बोलें, तो वो गलत है। हम आपको सौ प्रतिशत सच कहते हैं कि वो जो करता था, सही है, जो कर रहा है सही है, और जो करेगा वो भी सही है। वो कभी अपने भक्तों का या संतों का, पीर फकीरों का गलत नहीं करता।

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सवाल: कई बार कम मेहनत करने वाले सफल हो जाते हैं और बहुत ज्यादा मेहनत करने वाले असफल, ऐसे में लगता है इंसान के जीवन में किस्मत का अहम योगदान है, क्या ये सच है?
जवाब: संचित कर्मों का चक्कर होता है, जो राम नाम से कट सकते हैं। और कई बार बहुत मेहनत का फल थोड़ा और थोड़े का ज्यादा, कई बार भाग्य का भी उसमे सहारा होता है। तो दोनों बाते हैं। आपकी मेहनत में हो सकता है कोई कमियां हो, तजुर्बें के बिना की गई मेहनत, अब धरती में पानी है, अगर आप उसे तिनके से खोदना शुरू कर दो, कि मैं अब धरती से पानी निकालूंगा, अब मेहनत तो आप दिन रात कर रहे हैं। पर एक छोटा सा तिनका लेकर, आप कब तक कुआं खोदोगे, कब पानी आएगा। अगर कस्सी, फावड़ा ले लिया तो ओर तेजी से पानी आएगा। और अगर पाईप डालकर बॉरिंग कर दी तो कुछ दिनों में ही पानी आ जाएगा। तो ये मेहनत करने का ढंग है। तजुर्ब से मेहनत अगर की जाए तो उस काम के लिए और साथ में राम का नाम हो तो जल्दी सफलता मिल जाती है। हां भाग्य का सहारा जरूर होता है। भाग्य साथ जरूर देता है। संचित कर्म उसी का एक अंश हैं।
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सवाल: गुरु जी, बच्चों को अच्छे संस्कार कैसे दें ?
जवाब: आप खुद अच्छे बनिये, उनके सामने एक मिशाल रखिये, खुद झूठ न बोलिये, तो ही बच्चा झूठ नहीं बोलेंगे, खुद गालियां न दें उनके सामने, तो ही बच्चा गाली नहीं देगा, तो अच्छे संस्कार सबसे पहले मां और फिर बाप, बहन भाई दे सकते हैं। वहां से शुरूआत कीजिये, खाना नाम जपकर बनाईये, सही धर्मों के अनुसार चलिये। आप पहले मास्टर, टिचर हैं जिनसे बच्चा संस्कार सिखता है।
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सवाल: जाति पाति का भेदभाव दिल से कैसे मिटाया जा सकता है ताकि सभी एक समान हो सकें?
जवाब: जाति-पाति का भेदभाव सुमिरन के द्वारा मिटाया जा सकता है। भक्ति के द्वारा मिटाया जा सकता है। और धर्मानुसार चलकर मिटाया जा सकता है।
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सवाल: बच्चों के रिश्ते करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिये?
जवाब: बच्चों के रिश्ते करते समय अगर धर्म को ध्यान में रखें तो ये देखना चाहिये कि कोई नशा न करता हो, कोई बुरे कर्म न करता हो, कोई शैतान न हो, इंसानियत पर चलने वाला हो। और डॉक्टरी लिहाज से देखें तो उनके ब्लड सैंपल भी जरूर चेक होने चाहिये। क्या पता कोई ऐसी बीमारी न हो, जिसकी वजह से वो बीमारी बच्चों में आ जाए। जैसे बॉडी मसल की बीमारी होती है कुछ ब्लड आपस में ऐसे होते हैं, ज्यादा तो डॉक्टर बता सकते हैं, जिनका मिलाप होने से, अगर लड़का होगा तो उसके मसल डेड हो जाते हैं और अगर लड़की है तो उसके मसल सही रहते हैं। तो इन्हीं वजह से इस बात ध्यान रखना चाहिये।
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सवाल: आज कल की लड़कियां अपने सांस-ससुर की जगह अपने मां-बाप को ज्यादा अहमियत देती हैं। ऐसे में कैसे ताल-मेल रखा जाए?
जवाब: लड़कियों के लिए ये जरूरी है कि वो बेटियां, जिस घर में जाती है। वो अपने मां-बाप की तरह ही उन्हें समझें। और सास ससुर को भी चाहिये कि वो मां-बाप की तरह उस बेटी का सम्मान करें, सत्कार करें। क्योंकि दोनों के बिना बात नहीं बनेगी। ताल मेल बिगड़ गया तो झगड़े होंगे। और आप अगर अपनी आई हुई बहू-बेटी से कुछ उपेक्षा रखते हो तो जरूरी है कि आप भी पहले अच्छा बनकर दिखाइये। अगर आपका उदाहरण उनके सामने गंदा है तो उससे उपेक्षा कैसे कर सकते हैं। तो दोनों का तालमेल जरूरी है।


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सवाल: आज कल की युवा पीढ़ी अपने मां-बाप व बुजुर्गों की बात का मजाक उड़ाती है उन्हें कैसे समझाया जाये?
जवाब: ये गलत चीज है। अपने मां-बाप का मजाक उड़ाना, एक तरह से अपने ही खून की खिल्ली उड़ा रहे हैं।
आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। बल्कि सुमिरन से, भक्ति से, इबादत से, आप सत्कार करना सिखाइये। राम नाम के बिना हमें नहीं लगता कि कोई बच्चा, ज्यादा समझ पायेगा। और दूसरी बात, आप टाइम नहीं देते बच्चों को शुरू से, तो कहीं न कहीं इरिटेट होकर आपके खिलाफ हो जाते हैं। तो हमें लगता है बचपन से बच्चों को सहीं संस्कार दो, आप अपने मां बाप की इज्जज उनके सामने करते रहो, तो यकीनन वो आपसे ही सिखेंगे। जो जरूर संभव हो सकता है।
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सवाल: एक युवा का रहन-सहन और पहनावा कैसा होना चाहिये?
जवाब: संसार में जो चीज अच्छी लगती हो, नंगापन न हो, धर्म कहते हैं, उसको पहनो और खाओ। वो जो खुद को अच्छा लगता हो। दुनिया में तो पता नहीं किस को क्या चीज अच्छी लगती है। आपके शरीर के लिए क्या पता साइड इफेक्ट करती हो, एलर्जी करती हो। तो अच्छा पहनावा हमारे अनुसार वहीं है। चाहे आप फैशन करें, लेकिन जिसमें देखने वाले को पॉजीटिव वेबस आनी चाहिये। कर्इं लोग ऐतराज करते हैं कि बेटियों के कम कपड़े होते हैं, आदमी की गंदी सोच होती है, जी नहीं। हमारे धर्मों में बेटी को हीरा कहा गया है। और हीरे को कोई नंगा या खुला नहीं छोड़ता। आज समाज इस दिशा में जा रहा है, संस्कृति हमारी गुम होती जा रही है, संस्कृति में बदलाव बहुत आते जा रहे हैं। लोग फॉरन कल्चन को अपनाते जा रहे हैं। हम ये नहीं कहते कि आप कैसे कपड़े पहनो, वो आपकी मर्जी है। लेकिन हम धर्मानुसार ये ही कहेंगे कि बेटा ऐसा कपड़े पहनो जिससे पॉजीटिव वेवस आए, न कि कुछ नेगटिवी आये। बेटियों को हीरा कहा गया है, ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं, बहुत बड़ा दर्जा दिया गया है। और हीरे को हमेशा संभाल कर रखा जाता है, ढांपकर रखा जाता है, इसलिये हमारे धर्र्मों में कहा गया है कि पर्दा यानी उस तरह के कपड़े पहनों, जिससे समाज में एक अच्छी वेवस आए, ये सभी के लिये हैं चाहे लड़का हो या लड़की हो।
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सवाल: आज के समय में लड़का और लड़की की मित्रता कितनी सही है?
जवाब: अगर आत्मिक मित्रता है तो हर जगह चाहे कोई भी रिश्ता क्यों न हो वो सही है। और अगर आत्मिक मित्रता खत्म हो जाती है और शारीरिक मित्रता आ जाती है तो गलत ही गलत है। हां पति पत्नी का रिश्ता जायज है। उसके अलावा अगर आप शारिरीक रिश्ता किसी के साथ बनाते हो तो वो बिलकुल गलत है।

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