मृतकों के परिजनों को मिले उचित मुआवजा

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कोविड-19 महामारी के कारण मारे गए व्यक्तियों के परिजनों के लिए मुआवजा तय करने और इस संबंधी नियम बनाने के आदेश दिए हैं। दरअसल यह संवेदनशील व सरकारों को जिम्मेदारियों का है, तो इसको पूरी गंभीरता से लिया जाए। चाहे इस मामले में केंद्र सरकार व राज्य सरकार को पहले ही फैसला कर लेना चाहिए था, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर होकर सरकार को मंथन कर मुआवजा तय करने के लिए कहा है। कोर्ट के आदेश से पूर्व ही दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और पंजाब की कांग्रेस सरकार ने मृतकों के परिजनों के लिए पैंशन व सहायता राशि देने की घोषणा कर चुकी है, जो आवश्यकता अनुसार बहुत कम है। केजरीवाल सरकार का 2500 रुपए और अमरेन्द्र सरकार का 1500 रुपए पेंशन देने का ऐलान खानापूर्ति जैसा प्रतीत होता है।

कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस तरह का कहर ढाया कि कई परिवार उजड़ गए और सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए। किसी ने अपने पिता को खोया तो किसी ने अपनी मां को और किसी ने माता-पिता दोनों खो दिये। नि:संदेह कोविड-19 महामारी में सैकड़ों लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं, साथ ही उपचार के लिए आर्थिक नुक्सान भी झेला। कई परिवारों में तो सभी बड़े लोगों की मृत्यु हो गई। घरों में केवल बच्चे ही बचे हैं, जिनके लिए अब तक रोजी-रोटी की कोई व्यवस्था नहीं की गई। कई ऐसे भी परिवार हैं, जिनके घरों के मुख्य यानि घर के कमाने वाले एकमात्र सदस्य की मृत्यु हो गई। साथ ही महंगे इलाज का खर्चा भी सहन करना पड़ा। वह परिवार भारी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे परिवारों को इलाज का खर्चा अलग तौर पर भी अदा करना चाहिए। इस बात का भी संज्ञान लेना बनता है कि बीमारी की दूसरी लहर में सरकारी अस्पतालों में बैड न मिलने के कारण मरीजों को प्राईवेट अस्पतालों में महंगा इलाज करवाना पड़ा है।

लॉकडाउन में काम-धंधे ठप्प होने के कारण ऐसे परिवारों की हालत ओर बुरी हुई है। जिन मरीजों ने प्राईवेट अस्पतालों में इलाज करवाया उनका सारा खर्चा केंद्र व राज्य सरकारें वहन करे, इस पर भी विचार होना चाहिए। स्वास्थ्य मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है जिसके किसी भी हाल में अनदेखा नहीं किया जा सकता, विशेष तौर पर तब जब सरकारी प्रबंध छोटे पड़ गए हों लेकिन मरीजों को अपने पैसे से स्वास्थ्य सुविधाएं लेनी पड़ रही हों। सीमित प्रबंध का खमियाजा मरीजों को भुगतना नहीं चाहिए। साथ ही सरकारें अनाथ एवं बेसहारा बच्चों के अच्छे पालन-पोषण की व्यवस्था करे। समस्या काफी बड़ी है लेकिन सरकार एवं समाज अगर चाहे तो इन बच्चों के अभावों, दु:ख-दर्दों, पीड़ाओं को दूर कर उन्हें भारत का श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है।

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