पराली का मामला उलझा

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धान की पराली के मुद्दा को लेकर पंजाब व हरियाणा में काफी तनातनी हो रही है। किसान पराली जलाने पर अड़े हुए हैं, वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सरकारों पर लगातार सख्ती बरत रहा है। इन राज्यों में किसान संगठन मीटिंगों के दौरान पराली जलाकर अपना स्पष्टीकरण रख रहे हैं। कुछ राजनीतिक पार्टियों ने किसानों का समर्थन कर मामले को तूल दे दियाहै फिर भी मामला किसी किनारे लगता नजर नहीं आ रहा।

यहां किसान व सरकारें दोनों पक्ष मामले को गहराई से विचार करें व जिम्मेवारी वाला रवैया अपनाएं। किसानों की इस दलील को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पराली की संभाला खर्चीली व आगामी फसल की बिजाई में देरी का कारण बनती है। पराली को खेत में नष्ट करने के लिए कृषि औजार इतने महंगे हैं कि प्रत्येक किसान यह औजार खरीद नहीं सकता।

किसानों पर केवल सख्ती करना व मामले दर्ज करने से समस्या हल नहीं होगा। लेकिन जिस प्रकार किसान अड़े हुए हैं उसका संदेश भी सही नहीं जा रहा। किसान पराली जलाने के लिए मुआवजे के लिए संघर्ष करें तो बेहतर होगा। राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की नीति छोड़कर टकराव वाले हालात पैदा न करें। यह तो स्पष्ट है कि पराली को आग लगाना किसानों के लिए नुकसानदायक है।

जमीन के उपजाऊ तत्वों का नष्ट होना, मित्र कीड़ों का जलना इत्यादि से आगामी फसलों को नुकसान पहुंचता है। दूसरी तरफ सरकारों को यह बात समझनी चाहिए कि घाटे की कृषि के कारण पहले ही बुरे दौर से गुजर रहे किसानों पर सरकारों को बोझ नहीं बढ़ाना चाहिए। सरकार पराली से बिजली बनाने जैसे प्रोजैक्ट को उत्साहित करे ताकि आफत बनी पराली राहत बन जाए। राष्टÑीय स्तर पर यह सोच भी बननी चाहिए है कि यदि पराली बड़ी समस्या है तो किसानों को धान के चक्कर से ही क्यों नहीं निकाला जाता।

कभी शैलरों के नजदीक धान के छिलके के ढेरों को आग लगाई जाती थी व बाद में बची राख राहगीरों के लिए मुसीबत बन जाती थी। पराली के मामले में भी सरकार को ऐसी तकनी इजाद करनी चाहिए है। दरअसल पराली कानून व व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि कृषि के संकट की उपज है जिसके लिए सरकार को नीतियां व कार्यक्रमों में परिवर्तन करना चाहिए।

 

 

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