पाक खिलाफ भारत की कार्यवाही जरूरी थी

Pakistan

पुलवामा हमले के बाद जिस प्रकार पाकिस्तान ने बहानेबाजी की उससे यही लग रहा था कि भारत के नुकसान का पाक शासकों पर पर कोई प्रभाव नहीं। इन हालातों में सैनिक कार्यवाही के सिवाय भारत के लिए कोई ओर चारा भी नहीं बचा था। आखिर भारत ने बालाकोट में जैश में चल रहे आतंकी कैंपों पर हमला कर अपनी ताकत का एहसास करवा दिया। भारत की यह कूटनीतिक व रणनीतिक जीत भी है कि पाक के मित्र चीन सहित विश्व के ताकतवर देशों ने भारत के हमले को जायज करार दिया है। पुलवामा हमले के बाद 7-8 दिन बाद अमेरिका व ओर देशों को हालातों से अवगत करवाकर उनसे सैद्धांतिक समर्थन प्राप्त कर लिया था।

वास्तव में सर्जिकल स्ट्राईक (2016) के साथ ही यह साबित हो गया था कि भारत का आतंकियों के खिलाफ नजरिया बदल चुका है लेकिन पाकिस्तान में नवाज शरीफ सरकार बदल गई और नई इमरान सरकार ने सर्जिकल स्ट्राईक को गंभीरता से नहीं लिया। इमरान खान ने चुनावों में उलटा तालिबानों व जैश की मदद भी ली। इन हालातों में इमरान से आतंकवाद के खिलाफ किसी कार्रवाई की उम्मीद करना मुश्किल थी।

अब पाक के शासक सेना प्रमुख व पूर्व सेना प्रमुख परवेज मुसर्रफ भले ही भारत के खिलाफ कितने भी तलख बयान दें लेकिन उनकी यह तल्खी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाक के बदनाम चेहरे को नहीं बदल सकती। आतंकवाद की नर्सरी बन चुके पाकिस्तान को आतंकवाद से मुक्त करवाने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग आवश्यक है क्योंकि वहां सत्ता की खातिर राजनैतिक पार्टी आतंकवाद को अपनी विदेशी नीति का अटूट अंग मानकर चल रही है।

अब पाक के लिए आतंक के खिलाफ एक निर्णायक समय है। पाक आतंकवाद को छुपा नहीं सकता और न ही वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बच सकता है। बेहतर हो यदि पाक के शासक गिद्दड़ धमकियां देने की बजाय आतंकवादियों के खिलाफ खुद ही कार्यवाही करें नहीं तो, भारत आतंक के खिलाफ इसी तरह हथियार उठाने के लिए मजबूत करेगी। चीन सहित कोई भी देश आतंकवाद का समर्थन नहीं कर सकता।

आतंकवाद किसी भी देश की भलाई नहीं कर सकता। इस्लाम इंसानियत का संदेश देता है, जेहाद के नाम पर आतंकवाद को फैलाना इस्लाम का अपमान है। आतंकवाद और धर्म का कोई संबंध नहीं, बल्कि धर्म आतंकवाद के खिलाफ है व इंसानियत के लिए मर मिटने का नाम है। पाक के शासकों को समझ लेना चाहिए कि अरब के मुस्लमान देश अमन शांति के रास्ते पर ही विकास कर रहे हैं।

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