मानवता के सच्चे योद्धा रहे हैं महाशहीद अमृतपाल

Humanity ke Are true warrior Mahashhid Amritpal

मानवता के मसीहा अमृतपाल शहादत का जाम पीकर आज भी सैंकड़ों जरूरतमंद लोगों को रक्त व भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं। मानवता की सेवा में अमिट छाप छोड़ने वाले महाशहीद अमृतपाल ने हमेशा बिना किसी स्वार्थ के कार्य किया। जिसके चलते उन्होंने मात्र कुछ ही समय में डेरा के कर्मठ सेवादारों में अपना नाम शामिल करवा लिया था। उन्होंने अपने कार्यों को बढ़ाते हुए डेरा की शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सदस्यों में जगह बना ली। यही नहीं उन्होेंने सेवा कार्यों के साथ-साथ डेरा द्वारा चलाए गए 133 मानवता भलाई कार्यो में नशा छोड़ो अभियान, नामदान अभियान सहित सामाजिक बुराइयों को छुड़वाने में भी मुख्य भूमिका निभाई। इतना ही नहीं वह जाखल ब्लॉक की ओर से लगने वाली सेवा में सत्संग पर शाही कैंटीन में भी सेवादारों के साथ जाकर सेवा करता रहा। ब्लॉक द्वारा किए गए मानवता भलाई कार्यों में जैसे मकान बनाकर देना, श्मशान घाट की चार-दीवारी बनाना, रक्तदान करना, सड़कों पर मिट्टी डालना इत्यादि कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे।

जन्म एवं माता-पिता : 26 मई 1984 को मूर्ति देवी की कोख से रामस्वरूप के घर का चिराग बनकर आए अमृतपाल के जन्म पर ढेरों खुशियां मनाई गई। आस-पड़ोस व रिश्तेदारों में मिठाइयां बांटी गई। बहन उषा व प्रीति के पश्चात बड़ी मन्नतों के बाद जन्मे अमृतपाल घर में सबके लाडले थे। अमृतपाल जहां माता-पिता की आंखों का तारा था वहीं बहनों को भी उनसे अधिक प्यारा था। पिता रामसरूप ने उसे बचपन से ही अच्छे संस्कारों में ढाल कर हमेशा दीन-दुखियों की सेवा करने तथा पढ़-लिख कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसी के चलते उन्होंने अपने तमाम कारोबार की जिम्मेवारी स्वयं अपने कंधों पर ली हुई थी। उन्होने 2005 में टोहाना के इंदिरा गांधी कॉलेज से बीए की परीक्षा पास की। घर, गृहस्थी के साथ-साथ सेवा करते हुए उन्होंने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा व इसके बाद भी शिक्षा को बदस्तूर जारी रखते हुए उन्होंने पंजाब से पीजीडीसीए की कक्षा वर्ष 2008 में उत्तीर्ण की।
गुरुमंत्र : इसी बीच लगभग 11 वर्ष की आयु में 31 जनवरी 1995 को पंजाब के मूनक शहर में डेरा सच्चा सौदा की ओर से आयोजित सत्संग में उन्होंने अपनी दो बहनों उषा रानी व प्रीति रानी व माता मूर्ति देवी तथा मित्र राजेंद्र बारू सहित पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से गुरुमंत्र (नामदान) ग्रहण किया। 29 अप्रैल 2007 को जाम -ए-इन्सां के ऐतिहासिक दिन ही रूहानी जाम पीया।

शहादत : 28 जुलाई 2009 को इंसानियत के दुश्मनों की गोली का शिकार हुए आलमपुर मंदरा निवासी एवं डेरा सच्चा सौदा की जिला मानसा के 15 सदस्यीय कमेटी के सदस्य महाशहीद लिल्ली कुमार इन्सां की अंतिम शवयात्रा में शामिल होने गए जाखल मंडी निवासी अमृतपाल इन्सां भी दहशतगर्दों की गोली का शिकार हो गए। गोली लगने के पश्चात भी उन्हें गोली का आभास नहीं हुआ। बल्कि मामूली से पेट दर्द की शिकायत की। जब साथी सेवादारों ने उसके पेट को देखा तो उसे गोली लगी पाया। जिसे तुरंत बाद उपचार हेतु मानसा के सिविल अस्पताल में ले जाया गया। अमृतपाल की गंभीर अवस्था को देखते हुए चिकित्सकों द्वारा उसे तुरंत लुधियाना के डीएमसी अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया। लेकिन मानवता का मसीहा रास्ते में ही शहादत का जाम पीते हुए महाशहीद की भांति सभी को छोड़कर कुल मालिक के चरणों में विलीन हो गया।

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