भ्रष्टाचार के बढ़ते मामले चिंता का विषय

Corruption

भ्रष्टाचार के खेल ने दुनिया के सारे लोकतंत्रों को खोखला कर दिया है। भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इसलिए इसकी साफ-सफाई ज्यादा जरूरी है। इन दिनों गैरभाजपा प्रांतों में भ्रष्टाचार के मामले बड़ी संख्या में उजागर हो रहे हैं। पहले दिल्ली में आम आदमी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन और अब पश्चिम बंगाल में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी एवं अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करें, लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों एवं विभिन्न प्रांतों की सरकारों में भ्रष्टाचार की बढ़ती स्थितियां गंभीर चिन्ता का विषय है, चिन्ताजनक स्थितियां भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर किसी सार्थक एवं राष्ट्रहित की बहस का न होकर राजनीति का होना भी है।

राजनीतिज्ञों की साख गिरेगी, तो राजनीति की साख बचाना भी आसान नहीं होगा। हमारे पास राजनीति ही समाज की बेहतरी का भरोसेमंद रास्ता है और इसकी साख गिराने वाले कारणों में अपराधीकरण और भ्रष्टचार के बाद तीसरा नंबर इस कीचड़ उछाल का भी है। ये तीनों ही राजनीति के औजार नहीं हैं, इसलिए राजनीति को तबाही की ओर ले जाते हैं। अपराधीकरण और भ्रष्टाचार का मसला काफी गहरा है और इससे खिलाफ लड़ाई के लिए काफी वक्त और ऊर्जा की जरूरत है, लेकिन कीचड़ उछाल से परहेज करके और सार्थक बहस चलाकर देश की राजनीति का सुधार आंदोलन शुरू किया जा सकता है। राजनैतिक कर्म में अपना जीवन लगाने वालों से इतनी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। आज हम जीवन नहीं, राजनीतिक मजबूरियां जी रहे हैं। राजनीति की सार्थकता नहीं रही। अच्छे-बुरे, उपयोगी-अनुपयोगी का फर्क नहीं कर पा रहे हैं।

मार्गदर्शक यानि नेता शब्द कितना पवित्र व अर्थपूर्ण था पर नेता अभिनेता बन गया। नेतृत्व व्यवसायी बन गया। आज नेता शब्द एक गाली है। जबकि नेता तो पिता का पर्याय था। उसे पिता का किरदार निभाना चाहिए था। पिता केवल वही नहीं होता जो जन्म का हेतु बनता है अपितु वह भी होता है, जो अनुशासन सिखाता है, ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है, विकास की राह दिखाता है। आगे बढ़ने का मार्गदर्शक बनता है। आखिर भ्रष्टाचार के वैश्विक सूचकांक में भारत की स्थिति दयनीय यों ही नहीं बनी हुई है! बात केवल आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस की ही नहीं है, भ्रष्टाचार जहां भी हो, उसकी खिलाफ बिना किसी पक्षपात के कार्रवाई की जानी चाहिए। भाजपा एक राष्ट्रवादी पार्टी है, नये भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने के लिये तत्पर है तो उसकी पार्टी के भीतर भी यदि भ्रष्टाचार है तो उसकी सफाई ज्यादा जरूरी है। एक नये राजनीतिक परिवेश से भारत का लोकतंत्र समृद्ध हो सकेगा।

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