आतंकवाद मिटाने को ‘राम’ बनायें

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विजय दशमी (दशहरा) विशेष

भारत भूमि को आतंक की पीड़ा सदैव ही सहनी पड़ी है। चाहे वह सतयुग हो, त्रेता युग हो या द्वापर युग हो। इन आतंकियों को तब असुर, राक्षस, दानव, दैत्य, निशाचर जैसे नामों से पहचाना गया था। हिरण्यकश्यप, रावण, कंस ये सभी व ऐसे ही राक्षसवृत्ति के चरित्रों का हमारे यहां ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।

भारत धरा पर बाहरी हमले हुये, कभी सिकन्दर तो कभी गौरी, गजनी, फिर मुगल बाद में अंग्रेज भी। जब भी ये आक्रांता इस भू पर आये, तब इनके द्वारा लूटपाट, मारकाट, ध्वंस व जबरन धर्म परिवर्तन के कारनामों को अंजाम दिया गया। इसी तरह देश की धरती पुन: आतंकी चपेट में आ रही है। इन्हें नक्सली कहो, आतंकवादी कहो, जेहादी कहो, अलगाववादी कहो, उग्रवादी कहो…। ये सभी दहशत को फैलाने वाले मानवता के दुश्मन हैं जहां भाईचारे, दया, धर्म, अहिंसा, धैर्य, क्षमा का कोई काम नहीं है। अत: संसार से वर्तमान आतंक का साया हटाना है तो हमें फिर से एक ‘राम’ बनाना होगा।

‘राम’ ही क्यों बनायें, इस पर संक्षिप्त चर्चा करना चाहूंगा। रावण शब्द से ही एक क्रूर, आतंकवादी, आततायी सताने वाले आदमी का चेहरा सामने आ जाता है। रावण पंडित था साथ में परम प्रतापी, दुस्साहसी वीर, अद्भुत साहसी, वैज्ञानिक, औषधियों का ज्ञाता, वेदों का जानकार, महत्वाकांक्षी, कूटनीतिज्ञ था पर अत्याचार के कई रूप उसमें समाहित थे।

वह तकनीकी ज्ञान का विशेषज्ञ था। सर्वगुण सम्पन्न होने पर भी वह अपनी लिप्सा के अधीन था। वह नहीं चाहता था कि विश्व में ब्रह्मांड में कोई उसकी बराबरी कर सके, उससे टक्कर ले सके। अपने बलबूते से कई सिद्धियां, तपस्या से कई वरदान (शक्तियां) प्राप्त कर वह एक तरह से अजेय बन चुका था। जिसके पास भी कुछ अच्छा होता था वह सब छीन लेता था।

जब उसे आभास होता था कि कोई उससे शक्ति में और विज्ञान में आगे जाने वाला है तभी वह उसके विनाश का उपक्रम कर नष्ट कर देता था या अपने अधीन कर लेता था। इसी तरह आज के आतंकी आकाओं की महत्वाकांक्षायें भी हैं।

रावण भारत खंड से बहुत ही आतंकित रहता था। यहां तपस्वी, वीर, वैज्ञानिक, वैद्य सभी तरह की शक्तियों के ज्ञाता रहते थे पर ये योद्धा लड़ाका नहीं थे। कई ऋषियों के पास अस्त्र-शस्त्रों की शक्तियां थीं। उनके प्रयोग मानव हित के लिये होते थे। मुनियों ने शब्द शक्ति को प्राणवान, ऊर्जावान बनाया। मंत्र बल की सिद्धियों से सक्षम बने परन्तु अकेला एक रावण अपने पास इतनी सिद्धियां, शस्त्र शक्ति समेटे हुये था कि ये सब उसके सामने तुच्छ थे।

रावण ने अपना आतंक यज्ञ विध्वंसों के द्वारा व तपस्वियों को मारकर बनाया हुआ था। इस आतंकवादी कारनामों के कारण सभी दबे हुए थे। त्रस्त थे। सब चाहते थे कि कोई शक्ति, कोई ताकत, बल या युक्ति मिले, ताकि इस रावण से मुक्ति मिले।

समय के इस कालखंड को मनीषियों ने ‘त्रेता युग’ का नाम दिया है। इस समय अयोध्या में राजा दशरथ के यहां चार पुत्रों का जन्म हुआ। जैसे कि कहावत है ‘पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं।’ बचपन से ही श्री राम जी की प्रतिभा, कौशल का दर्शन दिखाई देने लगा था। विद्या पाने के लिए उस समय के सर्वगुणसंपन्न गुरु वशिष्ठ जी से शिक्षा पायी।

जहां से तपकर निकले तथा राजनीति, समाजशास्त्र, रण कौशल के साथ युद्ध विद्या की बारीकियों को समझकर अयोध्या आये। तब तक उनके कौशल, व्यावहारिकता और शौर्य की गाथायें चहुंओर फैल चुकी थीं। ऋषि, मुनि, महात्माओं आदि की नजर श्री राम जी पर ठहर गयी।

मुनि विश्वामित्र के यज्ञों को रावण के आतंकी ताड़का, मारची, सुबाहु जैसे राक्षस ध्वंस कर रहे थे। ऐसे में धैर्यवान, शौर्यमान गुणवान योद्धा श्री राम जी ही संबल बन सकते थे। तब विश्वामित्र श्री राम जी व लक्ष्मण जी को अपने यज्ञ की रक्षार्थ लेकर आये और उन्होंने राक्षसों को मारकर, खदेड़कर यज्ञ की रक्षा की। यह श्री राम की पहली परीक्षा थी। इनके नाम का डंका चारों तरफ पिट गया। इसी समय राजा जनक ने मिथिला में सीता स्वयंवर रखा। यहां श्री राम ने शिव धनुष को तोड़कर दूसरी सफलता से ब्रह्मांड में तहलका मचा दिया।

अब बारी आती है श्री राम के राजतिलक की। रावण की शक्ति के विनाश की चाह रखने वालों को लगा कि यदि श्री राम का राज तिलक हो गया तो राक्षसों (आतंकियों) का विनाश कैसे होगा? अयोध्या के महल की कमजोर कड़ी मंथरा के माध्यम से कैकेयी को साध्य बनाकर श्री राम का वन गमन करवाया गया। श्री राम जी को वन में ऋषि भारद्वाज से मार्गदर्शन मिला। अगस्त मुनि से अक्षय तरकस वाला दिव्य धनुष मिला व अन्य शक्तियां मिलीं।

पूर्व में विश्वामित्र जी से बला-अतिबला नाम की सिद्धियों के साथ अन्य युद्ध में काम आने वाले शस्त्र भी श्री राम जी को मिले। इस तरह वन में जिनके पास जो भी विशेष था, वह सब श्री रामचन्द्रजी को मिलता गया, फिर सुग्रीव जैसा समर्पित विश्वासी मित्र का साथ मिला वानर सेना के साथ। युक्ति, भक्ति व शक्ति के पुंज पवनपुत्र हनुमान जैसा आराध्य सेवक मिला।

विभीषण से रावण की कमजोरियों के साथ कई भेद मिले। समय-समय पर देवताओं द्वारा भी व्यक्त व अव्यक्त रूप से शक्तियां मिलीं। श्री राम साहसी वीर योद्धा थे। इन शक्तियों द्वारा ही रावण का विनाश करने में सफल हुये। इसी तरह आज के ‘आतंक’ रावण को मारने के लिए एक ‘राम’ बनाना होगा, जिसके पास इस आतंक को मिटाने हेतु सभी तरह की शक्तियां भौतिक, चारित्रिक, साहसिक के साथ आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों, जिनसे युद्ध लड़ा जा सके, होना चाहिए।

पूर्व राष्टÑपति श्री कलाम वैज्ञानिक थे, उन्होंने शक्तिशाली मिसाइलें बनायी हैं, पर वे लड़ाका (योद्धा) नहीं थे। इनका प्रयोग एक शक्तिशाली निपुण, पारंगत, योद्धा ही कर सकता है। अत: राम बनायें। सभी तरह के सहयोग के साथ मित्रता के विश्वासी हाथ भी दें। इस आतंक के वर्तमान स्वरूप के खात्मे के लिए निर्विवाद होकर एकजुट हों। भ्रमित करने वाले उन स्वर्णमृगों का सफाया हो, जो आतंक के नाम पर मानवता को कलंकित कर रहे हैं। मानव सभ्यता मनुजता से अलंकृत हो, पुष्पित हो, पल्लवित हो। आओ सब मिल एक ‘राम’ बनायें।

-बाबूलाल खण्डेलवाल

 

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