चीन से निकले मौत के वायरस के कृत्रिम होने की शंकाएं?

Doubts the death virus coming out of China is artifical?
चीन की वुहान प्रयोगशाला से निकले कोरोना, कोविड-19 वायरस ने दुनिया में मौत का तांडव रचकर यह जता दिया है कि विज्ञान को अंतत: प्रकृति के तुच्छ कण पर भी नियंत्रण पाना मुश्किल है ? यह तुच्छ कण अर्थात सूक्ष्म जीव तब और विध्वंसकारी सिद्ध हो सकता है, जब इसे किसी विषाणु प्रयोगशाला में अनुवंशकीय परिवर्तन करके वैज्ञानिकों ने नए व खतरनाक रूप में ढाल दिया हो ? बीते छह माह से इसका आक्रमण झेलते रहने के बाद अब जीव वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इसे जीन तकनीक के जरिए कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है। इसीलिए इसकी न तो ठीक से पहचान संभव हो रही है और न ही इसकी दवा अथवा टीका बनाने में सफलता मिल रही हैं।
चिकित्सा विज्ञान के नए-नए आविष्कार, परीक्षण की प्रौद्योगिकी और उपचार की आधुनिकतम विधियों के वाबजूद मानव आबादी को जानलेवा बीमारियों से मुक्ति नहीं मिली। चिंता की बात यह भी है कि जिन महामारियों के दुनिया से समाप्त होने की हुंकार भरी जा रही थी, वे नए रूपों और आकारों में अवतरित होती दिख रही हैं। जिन रोगाणुओं की समाप्ति के उपाय चिकित्सा विज्ञानियों ने दवा और टीका के रूप में खोजे थे, उनकी मारक क्षमता इसलिए कम लगने लगी है, क्योंकि ये खुली आंख से नहीं दिखने वाले अदृश्य शत्रु बेकाबू हो रहे हैं। साथ ही चीन की वुहान प्रयोगशाला से निकले कोरोना, कोविड-19 वायरस ने दुनिया में मौत का तांडव रचकर यह जता दिया है कि विज्ञान को अंतत: प्रकृति के तुच्छ कण पर भी नियंत्रण पाना मुश्किल है ? यह तुच्छ कण अर्थात सूक्ष्म जीव तब और विध्वंसकारी सिद्ध हो सकता है, जब इसे किसी विषाणु प्रयोगशाला में अनुवंशकीय परिवर्तन करके वैज्ञानिकों ने नए व खतरनाक रूप में ढाल दिया हो ? बीते छह माह से इसका आक्रमण झेलते रहने के बाद अब जीव वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इसे जीन तकनीक के जरिए कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है। इसीलिए इसकी न तो ठीक से पहचान संभव हो रही है और न ही इसकी दवा अथवा टीका बनाने में सफलता मिल रही हैं।
फ्रांस के नोबेल पुरुस्कार विजेता वैज्ञानिक लूक मांटेग्नर ने इस दावे का समर्थन किया है कि कोविड-19 महामारी फैलाने वाले नोवल कोरोना वायरस की उत्पत्ति प्रयोगशाला में की गई है और यह मानव निर्मित है। उनका यह भी दावा है कि एड्स बीमारी को फैलाने वाले एचआइवी वायरस की वैक्सीन (टीका) बनाने की कोशिश में यह अधिक संक्रामक और घातक वायरस तैयार किया गया है। फ्रांस के सी न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में एचआइवी (ह्यूमन इमोनोडिफिशियंसी वायरस) के सहायक खोजकर्ता लूक ने बताया है कि इसीलिए कोरोना वायरस की जीन कुंडली में एचआइवी के कुछ तत्वों और यहां तक कि मलेरिया के भी कुछ तत्व मौजूद हैं। एशिया टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार चीनी शहर वुहान की प्रयोगशालाओं को वर्ष 2000 से कोरोना वायरस के गुण व दोषों की विशेषज्ञता हासिल है। याद रहे कि प्राध्यापक लूक मांटेग्नर को मेडिसन में एड्स के वायरस की पहचान करने के लिए 2008 में नोबेल पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। उनके सहयोगी रहे प्राध्यापक फ्रैन एग्वोज बैग-सिनोसी को भी नोबेल से सम्मनित किया गया था।
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 वायरस का जन्म वुहान की प्रयोगशाला से हुआ है, यह चर्चा लगातार पूरी दुनिया में चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी निरंतर कह रहे है कि यह विषाणु चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वॉयरोलॉजी प्रयोगशाला में बनाया गया है। दरअसल फॉक्स न्यूज की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस प्रयोगशाला में यह वायरस चमगादड़ से इंसानों में आया है। दुनिया का पहला संक्रमित मरीज भी इसी प्रयोगशाला का एक कर्मचारी था, जो गलती से संक्रमित हो गया। अमेरिका का यह दावा सत्य के निकट इसलिए हो सकता है, क्योंकि चीन की इसी प्रयोगशाला को अमेरिका अनुसंधान के लिए आर्थिक मदद देता रहा है। अमेरिकी अखबार ‘डेली मेल’ ने 12 अप्रैल 2020 को खुलासा किया था कि अमेरिकी सरकारी एजेंसी ‘नेशनल इंस्टीटृयूट ऑफ़ हेल्थ’ ने वुहान की इस प्रयोगशाला को करीब 29 करोड़ रुपए की मदद की है। यह मदद इसलिए कि गई ताकि यह शोध जारी रहे कि क्या कोरोना वायरस गुफाओं में रहने वाले चमगादड़ से फैला है।
इस शोध की तह तक जाने के लिए वुहान से करीब एक हजार मील दूर युन्नान से कुछ चमगादड़ों को पकड़ा गया और इनके जीनोम पर प्रयोगशाला में कई तरह के प्रयोग किए गए। प्रयोग से निकले निष्कर्ष के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि इन्हीं चमगादड़ो में यह वायरस पाया गया। फिर यही से वुहान के मांस बाजार में पहुंचा और फिर यहीं से इसका मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण शुरू हुआ जो पूरी दुनिया में फैल गया। अमेरिका के विस्कोसिन-मेडिसन विवि के वैज्ञानिक योशिहिरो कावाओका ने स्वाइन फ्लू के वायरस के साथ छेड़छाड़ कर उसे इतना ताकतवर बना दिया है कि मनुष्य शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। मसलन मानव प्रतिरक्षा तंत्र उस पर बेअसर रहेगा।
यहां सवाल उठता है कि खतरनाक विषाणु को आखिर और खतरनाक बनाने का औचित्य क्या है ? कावाओका का दावा है कि उनका प्रयोग 2009 एच-1, एन-1 विषाणु में होने वाले बदलाव पर नजर रखने के हिसाब से नए आकार में ढाला गया है। वैक्सीन में सुधार करने के लिए उन्होंने वायरस को ऐसा बना दिया है कि मानव की रोग प्रतिरोधक प्रणाली से बच निकले। मसलन रोग के विरुद्ध मनुष्य को कोई सरंक्षण हासिल नहीं है। कावाओका ने यह भी दावा किया था कि उन्होंने 2014 में रिर्वस जेनेटिक्स तकनीक का प्रयोग कर 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू जैसा जीवाणु बनाया है, जिसकी वजह से प्रथम विश्व युद्ध के बाद 5 करोड़ लोग मारे गए थे। पोलियो, रैबिज और चिकनपॉक्स जैसे घातक रोगों के वैक्सीन पर उल्लेखनीय काम करने वाले वैज्ञानिक स्टेनली प्लॉटकिन ने भी कावाओका के काम के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा था, ‘ऐसी कोई सरकार या दवा कंपनी है, जो ऐसे रोगों के विरुद्ध वैक्सीन बनाएगी जो वर्तमान में मौजूद ही नहीं है?
दरअसल मानव निर्मित वायरस इसलिए खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इसे पहले से उपलब्ध वायरस से ज्यादा खतरनाक बनाया जाता है। कोरोना वायरस के कृत्रिम होने की आशंका है, इसीलिए इसकी प्रकृति के बारे में देखने में आ रहा है कि यह बार-बार अपना रूप बदल रहा है। इसीलिए इसका नया अवतार संक्रमण के मामले में पहले से ज्यादा आक्रामक होता है। लॉस अलामोस नेशनल लेबोरेट्री के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के नए रूप की पहचान की है। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि वायरस का नया स्ट्रेंड या स्वरूप जो इटली एवं स्पेन में दिखा था वह अमेरिका के पूर्वी तट पर पहुंचने के बाद नए अवतार के रूप में देखने में आया। इसीलिए इसने वुहान में फैले संक्रमण की तुलना में अधिक लोगों को न केवल संक्रमित किया, बल्कि प्राण भी ले लिए। इसीलिए कोविड-19 की रामबाण दवा या टीका बनाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। भारत में भी इस वायरस के जीनोम सीक्वेंसिंग को समझने की कोशिश की जा रही है।
इसीलिए इन विषाणु व जीवाणुओं के उत्पादन पर यह सवाल उठ रहा है कि क्या वैज्ञानिकों को प्रकृति के विरुद्ध विषाणुु-जीवाणुओं की मूल प्रकृति में दखलदांजी करनी चाहिए ? दूसरे यह कि प्रयोग के लिए तैयार किए गए ऐसे जीवाणु व विषाणु कितनी सुरक्षा में रखे गए हैं ? यदि वे जान-बूझकर या दुर्घटनावश बाहर आ जाते हैं, तो इनके द्वारा जो नुकसान होगा, उसकी जबावदेही किस पर होगी ? ऐसे में वैज्ञानिकों की ईश्वर बनने की महत्वाकांक्षा पर यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर वैज्ञानिकों को अज्ञात के खोज की कितनी अनुमति दी जानी चाहिए? यदि वाकई वायरसों से छेड़छाड़ जैविक हथियारों के निर्माण के लिए की जा रही है तो यह स्थिति बेहद खौफनाक है। क्योंकि यदि जैविक हथियारों से किसी देश पर हमला किया गया तो इससे बचना बहुत मुश्किल होगा। हथियार के रूप में ये वर्णशंकर जीवाणु व विषाणु कुछ क्षणों में ही पूरे क्षेत्र की आबादी को अपनी जानलेवा गिरफ्त में ले लेंगे। चूंकि इन नए बैक्टीरिया व वायरस की कोई दवा या टीका उपलब्ध ही नहीं होगा, इसलिए इलाज संभव ही नहीं हो पाएगा।
प्रमोद भार्गव

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