फायदे का सौदा : 15 हजार में खरीदी थी नई, कबाड़ हुई तो 1 लाख 38 हजार में बिकी

Deal of profit: Newly bought for 15 thousand, sold for 1 lakh 38 thousand if it was scrap

विदा हो गई 84 के दंगों की गवाह फायर ब्रिगेड की गाड़ी

  • वर्ष 1964 में रेवाड़ी फायर ब्रिगेड ने खरीदी, 1965 में गुरुग्राम को मिली
  • गाड़ी का आज तक भी नहीं हो पाया रजिस्ट्रेशन

सच कहूँ/संजय मेहरा गुरुग्राम। वर्ष 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी तो पूरे देश के साथ गुरुग्राम भी जल उठा था। बीबीसी लंदन ने देशभर की खबरों में गुरुग्राम में बहुत ज्यादा आगजनी की सूचना दी थी। उस आगजनी को काबू करने के लिए जिस फायर ब्रिगेड की गाड़ी का इस्तेमाल किया गया था, आज उसे स्क्रैप (कबाड़) में बोली लगाकर 1 लाख 38 हजार रुपए में बेच दिया गया। यह गाड़ी वर्ष 1964 में रेवाड़ी फायर बिग्रेड की ओर से खरीदी गई थी, जिसे एक साल बाद गुरुग्राम में फायर विभाग को दे दिया गया। इसकी उस समय कीमत 15 हजार रुपए से भी कम थी।

संयोग देखिए जिस गाड़ी पर वर्ष 1979 में ईशम सिंह कश्यप ने फायरमैन के रूप में काम किया था, आज वे यहां पर फायर ऑफिसर हैं। एक और खास बात यह है कि वीरवार को उनकी मौजूदगी में इस गाड़ी की बोली लगी और 1 लाख 38 हजार में बोली छूटी। अब शुक्रवार को ईशम सिंह कश्यप सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनकी यह सेवानिवृत्ति एक्सटेंशन के बाद की है। वे बताते हैं कि वर्ष 1965 में गुरुग्राम की आबादी एक लाख के करीब थी। तब बहुत ही कम क्षेत्रफल में गुरुग्राम बसा हुआ था। यहां नगर पालिका थी। उस समय फायर विभाग के बेड़े में यह गाड़ी रेवाड़ी से लाकर शामिल की गई थी।

कभी नहीं हो पाया इस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन

खास बात यह है कि इस गाड़ी का आज तक भी रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया था। मतलब बिना नंबर यानी टैम्प्रेरी नंबर से ही इस गाड़ी को चलाया गया, काम में लिया गया। करीब 22 साल तक इस गाड़ी को सेवा में रखा गया। इसके बाद इसकी नीलामी प्रकिया शुरू की गई, लेकिन गाड़ी के कागजात नहीं होने के कारण बाधा आई। डुप्लीकेट कागज मिल नहीं पाए, इसलिए इसका कभी रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ। इतने साल तक इसकी बोली के प्रयास किए जाते रहे हैं, लेकिन विभागों में फाइलें उलझकर रह गई। अब सरकार से विशेष अनुमति लेकर इसकी बोली लगाई गई है।

इसी गाड़ी पर फायरमैन थे ईशम सिंह कश्यप

यादों के झरोखे में झांककर ईशम सिंह बताते हैं कि जब 84 के दंगे हुए थे तो शहर पूरी तरह से जल रहा था। हर तरफ आगजनी थी। लंका जलने जैसा नजारा था। उस दौर में इसी फायर बिग्रेड से आग पर काबू पाया जा रहा था। वह बहुत ही चुनौती का समय था। ईशम सिंह के मुताबिक उस समय पानी के भी कुछ खास संसाधन नहीं थे। गुरुग्राम में एक झाड़सा बांध था। गाड़ी में पानी कभी झाड़सा बांध से तो कभी दमदमा झील से भरा जाता था। मेवात भी गुरुग्राम जिला में था, इसलिए वहां तक आग बुझाने जाना पड़ता था।

दिलचस्प रही इस गाड़ी की बोली

वीरवार को इस ऐतिहासिक गाड़ी की बोली के मौके पर फायर अधिकारी ईशम सिंह कश्यप के अलावा हरियाणा राज्य इंजीनियरिंग कारपोरेशन के जीएम विनोद कुमार, एमसीजी के अकाउंड ऑफिसर प्रवीण सैनी, एमसीजी ट्रांसपोर्ट एई राजीव यादव, भीम नगर एफएसओ सुनील कुमार मौजूद रहे। 15 हजार रुपए से इस गाड़ी की बोली शुरू हुई थी। बोलीदाताओं को बताया गया कि 70 हजार रुपए कम से कम कीमत रखी गई है। इसके बाद बोली चढ़ी। पूरी बोली में टोकन नंबर-1 व चार वाले बोलीदाता के बीच टक्कर रही। आखिर में आदित्य इंटरप्राइजेज मुरथल रोड सोनीपत के नाम 1 लाख 38 हजार रुपए में गाड़ी की बोली पर मुहर लगा दी गई। 15 हजार रुपए से भी कम कीमत में खरीदी गई इस नई गाड़ी को कबाड़ में 9 गुणा महंगी बेचकर फायर विभाग के अधिकारी भी खुश नजर आए।

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