अनुच्छेद 370: कश्मीर में बदलती फिजा

Article 370

Article 370: पांवर्ष 2014 से पहले कोई सोच भी नहीं सकता था ​कि देश का मस्तिष्क कहे जाने वाले कश्मीर में शांति की स्थापना हो पाएगी। आए दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन, आतंकी हमले और गोलियों व तोप के गोलों की गूंजती आवाज कश्मीर की तंद्रा (नींद) भंग करने के लिए काफी थी। वहीं अब 2014 के बाद एकाएक ही कश्मीर का माहौल बदल गया। कश्मीर का लालचौक जहां पर अधिकांश समय कर्फ्यू के हालात रहते थे वहीं अब शांत हो गया है। इतना ही नहीं पिछले दिनों तो लालचौक पर हनुमान चालीसा का पाठ किया गया है।

ये लाल चौक भारत के खिलाफ कश्मीर के अलगाववादी मंसूबों और देश विरोधी साजिशों का अड्डा हुआ करता था, लेकिन केंद्र सरकार के कश्मीर से आर्टिकल 370 (Article 370) हटाने के बाद यहां की फिजा ही बदल गई है। पिछले 9 वर्षों में ही वहां हालात कितने बदल गए हैं। यह सब वहां एक साथ नहीं हुआ है लेकिन केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की कूटनीति तथा दूरगामी निर्णयों का नतीजा है कि आज भारत के लोग कश्मीर को एक बार फिर अपने ही देश का हिस्सा मानने लगे हैं।

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसे कश्मीर के लालचौक का बताया जा रहा है। वायरल वीडियो में लाल चौक पर एक मंदिर को दिखाया गया है। इसमें कई लोग एक साथ रोड किनारे खड़े होकर पूजा करते दिख रहे हैं। इसके साथ हनुमान आरती बज रही है। इसके साथ ही सिक्योरिटी के इंतजाम भी देखे जा सकते हैं। लोग इसके कमेंट में मोदी सरकार के कश्मीर में कड़े एक्शन और कामों की तारीफ कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि ऐसा नजारा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को वो कर दिया, जिसकी कल्पना करना भी आसान नहीं था। सरकार ने चार साल पहले जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के अनुच्छेद 370 (Article 370) को निष्प्रभावी बना दिया। इसके चलते ही कश्मीर की आबोहवा बदल गई।

वहीं अब घाटी में भारी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण पत्थरबाजी की घटनाएं लगभग शून्य हो गई हैं। ऊपर से एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कठोर कदमों से आतंकवाद की कमर टूट गई। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2021 के जनवरी से जुलाई तक कश्मीर में 76 पत्थरबाजी की घटनाएं रिकॉर्ड हुईं, जो 2020 की इसी अवधि में 222 और 2019 की इसी अवधि में हुईं 618 घटनाओं के मुकाबले काफी कम हैं। इन घटनाओं में सुरक्षा बलों के घायल होने की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2019 में जनवरी से जुलाई महीने के बीच सुरक्षा बलों के 64 जवान पत्थरबाजी और आतंकवाद की घटनाओं में घायल हुए थे। लेकिन वर्ष 2021 की इस अवधि में यह आंकड़ा घटकर 10 हो गया।

गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 के जनवरी से जुलाई महीने में 339 नागरिकों को पैलेट गन और लाठीचार्ज के कारण चोटें आई थीं, जबकि 2021 की इस अवधि में यह आंकड़ा 25 तक आ गिरा। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2022 से कानून-व्यवस्था को लेकर ओवरआॅल डेटा संग्रह का काम शुरू किया है। इसमें पत्थरबाजी समेत कानून-व्यवस्था भंग होने की सभी घटनाएं शामिल हैं। इस डेटा के अनुसार, 2022 में जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 20 बार कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। ये आंकडे बताते हैं कि कश्मीर के लोग भी जो अब तक पाकिस्तान की सरपरस्ती चाहते थे वहीं अब भारत की हिमायत कर रहे हैं।

पीएम नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोच और कडेÞ निर्णयों का ही असर है कि वहां पर आतंकवादियों के ओवर-ग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारियों में भारी वृद्धि हुई। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 (जनवरी-जुलाई) में 82 गिरफ्तारियों के मुकाबले 2021 (जनवरी-जुलाई) में 178 गिरफ्तारियां हुईं। 5 अगस्त, 2019 से 6 जून, 2022 तक के 10 महीनों में हुई आतंकी घटनाओं के आंकड़ों की तुलना उसके पिछले 10 वर्षों की बात करें तो इसमें 32% की गिरावट देखी गई है। इसी तरह, आतंकी घटनाओं में भारतीय सुरक्षा बलों की शहादत 52% और नागरिकों की मृत्यु 14% कम हो गई। इसी दौरान आतंकवादियों की भर्तियों में भी 14% की कमी दर्ज हुई है। कश्मीर घाटी में जहां पहले पत्थरबाजी की घटना आम होती थी। आए दिन पत्थरबाजी की घटना से बेकसूर लोगों की मौत तक हो जाती थी।

धारा 370 खत्म होने के बाद इन घटनाओं में लगातार कमी देखने को मिली है। साल 2018 से 2022 के बीच आतंकी गतिविधियों में 45.2 फीसदी की कमी देखने मिली है। घाटी में कानून-व्यवस्था के मामले भी 1767 से घटकर 50 रह गए। 2022 में सुरक्षा बलों के 31 सदस्यों की जान गई, जबकि 2018 में यह 91 थी। केंद्र सरकार ने कश्मीर में जनता की बेहतरी के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। 370 हटने से पहले स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, इंडस्ट्रीज का बंद होना हर दिन की बात थी, लेकिन आज यहां स्कूल, कॉलेज हर दिन खुलते हैं। आज यहां के छात्र देश की मुख्यधारा से जुड़ते दिख रहे हंै।

ऐसा नहीं है कि पहले कश्मीर केन्द्र सरकार के एजेण्डे में नहीं रहा। आजादी के बाद वहां पर देश का अथाह धन विकास के लिए भेजा गया लेकिन भ्रष्टाचार तथा कमजोर निर्णयों के कारण यह धन वहां पर किसी काम नहीं आया। धारा 370 (Article 370) हटने के बाद कश्मीर में केन्द्र सरकार ने कई योजनाएं शुरू कर वहां के लोगो का विश्वास जीता और उसके बाद धीरे धीरे वहां पर शांति स्थापित करने का काम किया गया। केन्द्र सरकार के पहले कार्यकाल में बडा कूटनीतिक निर्णय करते हुए भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन कर वहां मजबूत पकड़ बनाई और पीडीपी से गठबंधन टूटने के बाद रणनीति के तहत धारा 370 को समाप्त किया गया। इसके बाद शुरूआती दिनों में जो विरोध देखने को मिल रहा था वहीं अब लगभग शून्य हो चुका है। इसके अलावा कश्मीर से विस्थापित किए गए लोगों को भी वहां वापस बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

पहले कश्मीर के युवा पाकिस्तान समर्थित आतंवादियों को अपना आईडल मानते थे वहीं युवा अब देश के संविधान में विश्वास करने लगे हैं। इसके कारण पाक प्रायोजित आतंकवाद के लिए कश्मीर क्षेत्र से की जा रही युवाओं की भर्ती पर विराम लग गया है। अब कश्मीर का युवा वर्ग हाथ में बंदूक के स्थान पर कलम पकडना चाहता है। केन्द्र सरकार की सख्ती के कारण सीमा पार से आए दिन होने वाले संघर्ष विराम के उल्लंघन का सिलसिला भी टूट गया है और पिछले एक वर्ष से शायद ही कोई ऐसी खबर हो जिसमें संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया हो। भारतीय सेना को पूरी छूट दिए जाने के बाद अब पाक आर्मी और आईएसआई को पता चल गया कि भारत बदल चुका है। Article 370

आज से 9 वर्ष पहले जहां समाचार पत्रों में कश्मीर में शांति को लेकर आलेख छपा करते थे वहीं अब देशभर के लोगों के बीच पीओके पर कब्जे को लेकर चर्चा होने लगी है। बड़ी बात नहीं होगी कि कभी भी ऐसी खबर आ जाए कि पीओके का बड़ा हिस्सा बलूचिस्तान में मिलाकर पाकिस्तान के दो टुकडेÞ ​कर दिए गए हैं। पाकिस्तान का हिस्सा बलूचिस्तान लंबे समय से आजादी की मांग कर रहा है और अब बलूचिस्तान की आजादी के लिए वहां के नेता भारत की मदद मांग रहे हैÞ। ऐसा होना असंभव भी प्रतीत नहीं होता है क्योंकि अगर सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी संभव है।
                                   जयपुर से सांसद व भाजपा नेता राज्यवर्धन सिंह राठौड़ (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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