शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब के तर्कों पर सुप्रीम कोर्ट के सवाल

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नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान इस तर्क पर सवाल किया कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का एक हिस्सा है और इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने काल्पनिक सवाल पूछा कि क्या शिक्षण संस्थानों में इस प्रथा का पालन किया जा सकता है, जहां पहले से ही एक विशेष पोशाक या वर्दी निर्धारित है। पीठ ने कहा, ‘आपके पास एक धार्मिक अधिकार हो सकता है और क्या आप उस अधिकार को एक शैक्षणिक संस्थान के भीतर ले सकते हैं, जहां एक वर्दी निर्धारित है।

आप हिजाब या स्कार्फ पहनने के हकदार हो सकते हैं, क्या आप एक शैक्षणिक संस्थान के भीतर उस अधिकार इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसने वर्दी निर्धारित क्या हुआ है। याचिकाकतार्ओं – कुछ मुस्लिम छात्रों का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने न्यायालय के समक्ष मामले की पृष्ठभूमि बताते हुए तर्कों में हिजाब पहनने को लड़कियों की मयार्दा और गरिमा से जोड़ने का प्रयास किया गया।

जानें, क्या हुआ सप्रीम कोर्ट में

महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवदगी ने दलील पेश करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों को अपना ड्रेस कोड निर्धारित करने की जो अनुमति दी है, उसमें कोई दोष नहीं है। उन्होंने कहा,‘हमने इसे संबंधित संस्थान पर छोड़ दिया है। सरकार ने जानबूझकर इसे कॉलेज विकास परिषद पर छोड़ दिया है। कुछ कॉलेजों ने उडुपी में ही हिजाब पहनने पर प्रतिबंध नहीं लगाने का फैसला किया है। शीर्ष अदालत ने इस पर पूछा कि क्या ईसाई कॉलेजों सहित अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी वर्दी निर्धारित करने की अनुमति है और क्या छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति है।

नवदगी ने कहा, ‘वह पता लगा सकते हैं लेकिन उनकी जानकारी में, उडुपी में कम से कम दो कॉलेजों ने हिजाब की अनुमति दी। कर्नाटक की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने भी तर्क दिया कि कॉलेजों में अनुशासन केवल एक मुद्दा था, लेकिन वे (याचिकाकर्ता) अनावश्यक रूप से इसका विस्तार कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘कोई धार्मिक प्रथाओं की आड़ में इसका (अनुशासन) उल्लंघन करना चाहता था।

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हेगड़े ने पूछा, ‘ज्यादातर गर्ल्स कॉलेजों में सलवार कमीज और दुपट्टा पहनने के लिए निर्धारित हैं। पटियाला में सिर पर चुन्नी रखने की प्रथा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा सवाल किया,‘क्या आप बड़ी हो चुकी महिलाओं से कह सकते हैं कि आप अपने सिर पर चुन्नी नहीं सकते सकते ? क्या आप महिला की मयार्दा को नियंत्रित कर सकते हैं। याचिकाकर्ता के वकील हेगडे ने आगे कहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के नियम बनाने की शक्ति के तहत कार्यपालिका मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती है। पीठ ने कहा, ‘हर सार्वजनिक स्थान का एक ड्रेस कोड होता है। उदाहरण के लिए गोल्फ कोर्स को लें। क्या कोई व्यक्ति कह सकता है कि मैं ड्रेस कोड का पालन नहीं करूंगा, लेकिन फिर भी मेरी वहां पहुंच होगी। अदालत इस मामले में आगे की सुनवाई बुधवार दोपहर दो बजे करेगी।

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