डिजिटल संपत्ति की ओर बढ़ते कदम

वर्ष 2017 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और इस वर्ष के दौरान देश की अर्थव्यवस्था नकदी से कम नकदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेगी। आजकल कम नकदी, बिना नकदी और डिजिटल प्रचलित शब्द हो गए है और ये शब्द समाज में बदलाव को दर्शाते हैं। यह वास्तव में एक नए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की ओर बढ़ते कदम हैं। प्रौद्योगिकी जानने वाले लोगों को महत्वपूर्ण सामाजिक सिद्धांतों का ज्ञान नहीं होता है और उन्हें इसका वास्तविक प्रभाव समझने का प्रयास करना चाहिए।

डिजिटल क्रांति की सफलता के आसार तब बढ़ जाते जब इसका संचालन वित्तीय पंडितों के बजाय सहानुभूति रखने वाली सरकार करती। लोग तब नई प्रौद्योगिकी अपनाते हैं जब उन्हें इसका स्पष्ट लाभ दिखाई देता है, प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने वाले पर भरोसा होता है, उसे वह सुविधाजनक पाता है और उसका व्यय वहन कर सकता है।

नकदी अर्थव्यवस्था से डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए कई बड़े सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव की आवश्यकता के साथ-साथ सोच में बदलाव की भी आवश्यकता है। समाज में उपकरण उपलब्ध कराने से काम नहीं चलेगा, सोच में बदलाव लाना होगा और सेवा उपलब्ध कराने वाले को उपभोक्ताओं को प्रेरित करना होगा, ताकि वे नई प्रौद्योगिकी अपनाएं। उपभोक्ता तब डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग करेगा, जब उसे लगेगा कि यह प्लेटफार्म उनके व्यवहार में परिवर्तन ला रहा है और उनकी कठिनाइयों को दूर कर रहा है।

वस्तुत: वास्तविक कठिनाइयां दूर होनी चाहिए न कि केवल लाभ दिखाई देने चाहिए। एम-पेसा को एक क्रांतिकारी वित्तीय साधन बनाने वाले मिक हयूजेस का कहना है कि ‘‘लोग पूछते हैं समस्याएं हल हो रही हैं। जब तक समस्याएं हल नहीं होती तब तक यह मात्र दिखावा रहता है।’’

भारत में लोगों का डिजिटल वित्तीय प्रणाली को न अपनाने का कारण नई प्रौद्योगिकी को न अपनाना है और इसका मूल कारण उसमें लोगों का विश्वास न होना है। हालांकि हम यह कहते रहते हैं कि उत्तरदायी डिजिटल वित्तीय प्रणाली एक अच्छा व्यवसाय है, किंतु हम जानते हैं कि केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है। स्वतंत्र तथा साधन संपन्न विनियामक उपभोक्ता समूह और अन्य संगठन का उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण की व्यवस्था की आलोचना करते हैं।

हाल ही में युगांडा में एजेंट नेटवर्क के सर्वेक्षण के बारे में हैलिक्स इंस्टीट्यूट आॅफ डिजिटल फाइनेंस ने बताया कि किस प्रकार वहां आम लोगों के साथ धोखाधड़ी हो रही है और यह केवल युगांडा में ही नहीं, अपितु विश्व भर में है तथा उपभोक्ताओं को अपने पैसे तक पहुंच बनाने में विश्वास की कमी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। डिजिटल वित्तीय प्रणाली को बदलाव का साधन बनने के लिए आवश्यक है कि बाजार और सेवाओं में उपभोक्ताओं का विश्वास हो, यह उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप हों और सस्ती दरों पर उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराए जा रहे हों। किंतु वास्तविकता यह है कि सेवा प्रदाता अल्पकालिक प्रोत्साहानों पर ध्यान केन्द्रित करता है, जिसके चलते उपभोक्ताओं का दीर्घकालिक विश्वास और निष्ठा कम हो जाती है।

भारत में बिना नकदी की अर्थव्यवस्था के निर्माण में वर्ग भेद भी मुद्दा बन रहा है। भारत ऐसा देश है, जहां पर लोगों का एक पांव भविष्य की ओर है, तो दूसरा पाषाण युग में है। भारत में एक जीवन्त तथा उन्नत उच्च प्रौद्योगिकी वातावरण है, किंतु दूसरी ओर यहां करोड़ों ऐसे लोग भी हैं, जो प्रौद्योगिकी से कोसों दूर हैं। भारत में वर्तमान में केवल 17 प्रतिशत आबादी के पास स्मार्ट फोन हैं। बिना नकदी के समाज की बातें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही हैं। किंतु ऐसे समाज भी है, जहां पर डिजिटल लेनदेन निर्बाध रूप से चल रहा है। डिजिटल लेन-देन सबसे अधिक सफल कीनिया में हुआ है। कीनिवावासियों ने सिद्ध किया है कि उच्च प्रौद्योगिकी के माध्यम से धन का अंतरण सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।

मोबाइल फोन आपरेटर सफारीकौम ने एम-पेसा (M-pessa ) विकसित किया। यह मोबाइल फोन आधारित प्लेटफार्म है, जिससे धन का तुरंत अंतरण किया जाता है। आप इस ऐप को अपने मोबाइल फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं और फिर इसकी सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। आप देश में हजारों एजेंटों का पैसा निकाल सकते हैं। लोग इसका उपयोग बैंकों के स्थान पर कर रहे हैं इसके लिए किसी अवसंरचना की आवश्यकता नहीं और बैंकों की तुलना में इसका शुल्क भी बहुत कम है। वहां पर 45 हजार ऐसे स्टोर हैं जिनमें उपभोक्ता अपने एम-पेसा मोबाइल अकाउंट से पैसे का लेनदेन कर सकते है। यह धन अंतरण, ऋण, धन जमा करने, पैसा निकालने, बिल का भुगतान करने आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराता है।

डिजिटल प्लेटफार्म तीन तरह से वित्तीय सेवाओ में बदलाव ला सकते हैं। पहला इससे वित्तीय संस्थानो की लागत कम हो सकती है, दूसरा वे वित्तीय उत्पादों की पहुंच बढ़ा सकते हैं और तीसरा उत्पादों और सेवाओं में नए-नए प्रयोग हो सकते हैं। भारत में आज बिना नकदी का लेनदेन प्रचलित हो रहा है। अन्य विकसित देशों मेें डिजिटल भुगतान की स्थिति को देखते हुए हम भी डिजिटल वित्तीय व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं, किंतु इसकी गति का निर्धारण हमारे नागरिकों द्वारा इसे अपनाने की क्षमता पर निर्भर करेगा। उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव लाना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।

कीनिया में एजेंटों ने उपभोक्ताओं को जागरूक करने और उन्हे उनके लेन-देन करने में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और धीरे-धीरे वहां के लोगों को इस प्रौद्योगिकी के उपयोग की आदत बन गयी। डिजिटल क्रांति क्रमिक रूप से आ सकती है। इसके लिए सहानुभूति और उदारता की आवश्यकता है। यह उदारता उत्कृष्टा की नहीं, अपितु विनम्रता की होनी चाहिए और विश्व में वही सफल नेता हुए हैं जिन्होंने इस बात को स्वीकार किया है।

जब हम किसी समस्या के समाधान को ढूंढते हैं, तो उसमें सभी को समान भागीदार माना जाना चाहिए और यदि ऐसा होता है तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं। प्रत्येक समाज डिजिटल वित्तीय समावेशन के विभिन्न चरणों में है और इसलिए सांस्कृतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में आवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। लोगों के सांस्कृतिक दृष्टिकोण का आदर कर तथा उनकी चिंताओं को दूर कर स्थाई सफलता मिल सकती है।

 

मोइन काजी

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।