जानें पुरातन समय में कौन से थे, चार आश्रम, और आज क्यों हैं ये इंसान के लिए जरूरी

Saint Dr. MSG Insan
  • आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से पूज्य गुरु जी ने फरमाया रूहानी सत्संग फरमाया
  • विभिन्न राज्यों में लाखों लोगों ने पूज्य गुरु जी की पावन शिक्षा से प्रेरित होकर छोड़ा नशा व बुराईयां
  • पूज्य गुरु जी ने नशों से बचने, आत्मबल बढ़ाने व राम नाम के मार्ग पर चलने का बताया तरीका

सच कहूँ/सुनील वर्मा
बरनावा। रविवार को शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा उत्तर प्रदेश से (Shah Satnam Ji Ashram Barnawa) पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से रूहानी सत्संग फरमाया और देश-विदेश की साध-संगत पूज्य गुरु जी के वचनों को सुनकर व दर्शन करके निहाल हुई। इस दौरान आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से पूज्य गुरू जी ने हरियाणा के शाह सतनाम जी धाम सरसा, पंजाब के भटिंडा स्थित शाह सतनाम जी रूहानी धाम डेरा राजगढ़-सलाबतपुरा, राजस्थान के नीम का थाना, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बड़ी व दिल्ली के कंझावला नामचर्चा घर में पहुंचे लाखों लोगों का नशा और बुराइयां छुड़वाकर गुरूमंत्र, नाम शब्द दिया। इस अवसर पर आपजी ने नशे व बुरी आदतों से कैसे बचा जाए, आत्मबल जो सफलता की कुंजी है, इसे कैसे बढ़ाया जाए, भगवान जो सर्वशक्तिमान है, उसके दर्शनों के काबिल कैसे बना जा सकता है, का तरीका भी बताया।

पूज्य गुरु जी ने समझाया ब्रह्मचर्य और गुरूकुल की शिक्षा का महत्व

पूज्य गुरु जी ने रूहानी सत्संग के दौरान ब्रह्मचर्य और गुरूकुल की शिक्षा के बारे में बताते हुए फरमाया कि पुरातन समय में चार आश्रम बनाए गए। वेदकाल समय की बात करो तो उसमें ब्रहमचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ और फिर संन्यास आश्रम आते थे। सभी धर्मों में इनके बारे में लिखा हुआ है। हमारे जो सबसे पुराने पाक-पवित्र ग्रंथ हैं, वो हैं पवित्र वेद। जो हजारों साल पुराने हैं, ये अब साबित हो चुका है। बाकी धर्म भी सेम (समान) बात कहते हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में 25 साल तक पढ़ाया जाता था। जंगलात या ऐसी जगहों पर रखा जाता था, जहां का वातावरण शुद्ध होता था। सुबह उठते, वहां हवन यज्ञ होते थे, जिसका मतलब था कि वातावरण शुद्ध हो जाए। घी से शुरूआत होती थी। उसमें आहुतियां डाली जाती थी। ताकि वातावरण में महक फैल जाए।

गुरुकुल में जो चीजें होती थी, वो दोबारा बनाई जा सकती हैं

पूज्य गुरु जी ने कहा कि गुरुकुल में जैसी चीजें हुआ करती थी, वैसी दोबारा बनाई जा सकती हैं। हम चाहेंगे जो हमारे हिंदु धर्म का प्यौर गुरुकुल था। अगर हमारे वो लोग जो ऐसा रखते हैं, वो चाहेंगे तो ऐसी चीज भी एक जरूर बनाएंगे। ताकि पूरा वर्ल्ड उसे उसके आगे आकर देखे कि क्या था पुरातन समय में, वो बनाया जा सकता है। बिल्कुल वैसा गुरुकुल फिर से ईजाद हो सकता है।

हमारे दादा जी, आयुर्वेदा के काफी बड़े ज्ञाता थे: पूज्य गुुरु जी

पूज्य गुरु जी ने कहा कि हम शुरू से पवित्र वेदों पर चल रहे हंै। हमारे दादा जी, हमारे पिता जी के पास पवित्र गीता थी, श्री गुरुनानक देव जी की जन्म साखी थी। ये दोनों हमने अपने पिता जी व दादा जी से लिए थे। गीता को वो बहुत ज्यादा पढ़ा करते थे। हमारे जो दादा जी थे, आयुर्वेदा के काफी ज्ञाता थे। कई नुस्खे वगैरह उनके पास हुआ करते थे। उन्हीं के अनुसार हमने पांच साल लगातार मां का दूध पिया। आयुर्वेदा तो गजब है और अब ब्रहमचर्य तो फिर कहना ही क्या। ब्रहमचर्य में ऐसा तेज, ऐसी शक्ति, ऐसा अनुभव होता है, जिसे ब्यान नहीं किया जा सकता। इसमें थकान नाम की कोई चीज नहीं होती।

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