भाभा अटोमिक सैंटर में वैज्ञानिक बनी रीतू

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उपलब्धि: गैट परीक्षा में देश भर में हासिल किया था छठा रैंक

भिवानी (इन्द्रवेश)। गीता व बबीता बलाली ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहलवानी के क्षेत्र के जहां अपनी पहचान बनाते हुए बेटियों का मान-सम्मान बढाया, वहीं अब विज्ञान के क्षेत्र में रीतू बर्मन ने भिवानी को पहचान देने का काम किया है। भिवानी जिला के गांव कोंट के किसान की बेटी रीतू बर्मन अपनी कड़ी मेहनत के बल पर अब भाभा अटोमिक रिसर्च सेंटर की वैज्ञानिक बनने जा रही है।

गांव कोंट के किसान बलवान की बेटी रीतू बर्मन ने इसी वर्ष फरवरी में हुई गैट परीक्षा में देश भर में छठा रैंक हासिल कर भिवानी क्षेत्र का नाम चमकाया था। रीतू बर्मन ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अटोमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) में बतौर मैट्रालॉजी वैज्ञानिक चयनित होकर इस बात को साबित भी कर दिया।

किसान पिता ने कर्ज लेकर बेटी को पढ़ाया

भाभा अटोमिक रिसर्च सेंटर ने देश भर के 150 के लगभग मैट्रालॉजी इंजीनियरिंग के छात्रो में से चार का चयन सार्इंटीफिक आॅफिसर के पद पर किया, जिनमें रीतू बर्मन भी एक है। रीतू बर्मन ने बीते जून माह में भाभा अटोमिक रिसर्च सेंटर में सार्इंटीफिक आॅफिसर के पद के लिए परीक्षा दी थी। रीतू ने देश भर के 150 के लगभग धातु वैज्ञानिकों को पछाड़ते हुए सैंटर के अटोमिक एनर्जी विभाग में रीतू ने सार्इंटिफिक आॅफिसर के पद पर अपनी जगह बनाई।

रीतू के पिता बलवान सिंह एक छोटे किसान हैं, जिन्होंने कर्ज लेकर उन्हें पढ़ाया। उन्होंने अपनी हायर एजुकेशन नजदीकी गांव धाहरेडू से पूरी की। उसके बाद 12वीं विज्ञान संकाय से उन्होंने भिवानी से पास की, जिसके बाद एमएनआईटी जयपुर से रीतू बर्मन ने धातु विज्ञान से इंजीनियरिंग की।

इंजीनियरिंग के दौरान उनके पिता बलवान को बेटी की पढ़ाई के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बंैक से तीन लाख रूपये के लगभग कर्ज भी लेना पड़ा। तीन भाई-बहनों में दूसरे नम्बर की बेटी रीतू के बड़े भाई सन्नी आईटीबीपी में सैनिक हैं तथा छोटा भाई साहिल आठवीं कक्षा में पढ़ता है।

रीतू बर्मन ने बताया कि वे भाभा अटोमिक रिसर्च सेंटर में उनका कार्य नूक्लीयर मैट्रालॉजी रियेक्टर के क्षेत्र में काम करना है। उन्होंने कहा कि भविष्य में वह धातु विज्ञान के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करना चाहेगी।

रीतू ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिजनों व गुरूजनों को दिया। रीतू के पिता बलवान बर्मन, माता सुमन देवी व दादी छोटा देवी ने बताया कि रीतू बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी तथा वह घंटों स्वाध्याय करती थी। जिसका नतीजा उनकी बेटी रीतू को इस सफलता के रूप में मिला है।

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