नदियों का पुनर्रुद्धार एक चुनौती

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केन्द्र सरकार ने देश में सभी नदियों को स्वच्छ बनाने की योजना बनायी है। यह कार्य अत्यावश्यक है, किंतु बहुत जटिल भी है। जल संसाधन और नदी विकास तथा गंगा पुनर्रुद्धार मंत्रालय के नए मंत्री नितिन गडकरी से लोगों की बड़ी अपेक्षाएं हैं और लगता है वे इस चुनौतीपूर्ण कार्य को हाथ में लेने वाले हैं। गंगा कानून को बनाना और पांच नदियों को परस्पर जोड़ने की परियोजनाओं को उन्होंने उच्च प्राथमिकता दी है।

नदियों को स्वच्छ बनाना उनके पुनर्रुद्घार का अंग है। जल की कमी और पर्यावरण असंतुलन की ओर सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों तथा आम जनता का ध्यान गया है और वे जल संसाधनों को स्वच्छ बनाने और उनके पुनर्रुद्धार की दिशा में बढ़ रहे हैं। कुछ लोकप्रिय नेता तथा स्वयंसेवी संगठन इस बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं और जल संसाधनों को बचाने के लिए लोकप्रिय योजनाएं शुरू कर रहे हैं, जो वास्तव में हमारे देश की जीवन रेखाएं हैं।

रैली फॉर रिवर्स अभियान शुरू करते हुए एक सामाजिक नेता का कहना कि 1947 की तुलना में आज देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 75 प्रतिशत कम है और देश का 25 प्रतिशत भाग मरूस्थल बनता जा रहा है। सभी राज्यों में आम आदमी जल संकट का सामना कर रहे हैं और लोगों को आशंका है कि बारहमासी पानी अब मौसमी बन कर रह जाएगा। उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा हाल ही में दिए गए एक निर्णय में गंगा और यमुना को भी वही कानूनी अधिकार दिए गए हैं जो किसी भी व्यक्ति को प्राप्त हैं।

यह निर्णय किस प्रकार लागू किया जाएगा और इन नदियों के अधिकारों का संरक्षक कौन होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। देश की पवित्र नदी गंगा सहित अनेक नदियों की दयनीय दशा के संदर्भ में यह निर्णय दूरगामी महत्व का है। इस निर्णय में न्यूजीलैंड की वानगनुई नदी का अनुसरण किया गया है।

इस नदी को स्थानीय माओरी लोग पवित्र मानते हैं और न्यूजीलैंड सरकार द्वारा संसद में एक कानून बनाकर इसे व्यक्ति की तरह पूरे अधिकार दिए गए हैं। कानून के अनुसार इस नदी पर जल विद्युत परियोजनाएं नहीं बनायी जा सकती। विश्व में दक्षिण अमरीका में इक्वाडोर पहला ऐसा देश है, जिसने 2008 में सबसे पहले प्रकृति को अधिकार दिए और इसके लिए उन्होंने पंचमामा संविधान बनाया है। 2011 में बोलीविया ने धरती माता कानून बनाया।

भारत में स्वाभाविक रूप से स्थिति में सुधार नहीं आ सकता है, क्योंकि मानव क्रियाकलापों के द्वारा धरती के तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन में योगदान बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण स्थिति और बिगड़ी है। धर्म से जुड़ी प्रदूषणकारी गतिविधियां जल बंटवारे पर राजनीतिक प्रतिद्वंंदिता आदि के कारण भी स्थिति और उलझी है। कुछ स्थानों में बांधों के निर्माण को लेकर धीरे-धीरे आंदोलन बढ़ते जा रहे हैं।

देश में नदियों के पुनर्रुद्घार का तात्पर्य नदियों के मूल प्रवाह को बहाल करना है, उनसे प्रदूषण हटाना है और उनके स्रोतों को सुरक्षित रखना है। नदियों की स्थिति में गिरावट का कारण मानव कार्यकलाप भी हैं। किंतु नदियों के पुनर्रुद्धार की योजना एक सीधी कार्यवाही के रूप में बनायी जानी चाहिए। जर्मनी ने राइन नदी के पुनर्रुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि यह अनेक देशों से गुजरती है और एक समय इसे विश्व की सबसे प्रदूषित नदी घोषित किया गया था। स्वच्छ गंगा परियोजना के लिए इससे प्रेरणा ली जा सकती है।

देश में नदियों के संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर भी योजनाएं चलाई जा रही हैं और इनके भी अच्छे परिणाम निकल सकते हैं बशर्तें राजनीतिक प्रतिद्वंदिता और नौकरशाही स्थिति की गंभीरता और जनता की भावना को समझें तथा प्रलोभन को प्राकतिक संपदा को नष्ट करने से रोका जाए।

-डॉ. एस. सरस्वती

 

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