राष्ट्रपति चुनाव: रामनाथ कोविंद सब पर भारी

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नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद का बचपन संघर्षों से भरा रहा। जब वे पाँच साल के थे तो उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया। उनकी बड़ी बहन गोमती ने ही उनका पालन पोषण किया। पाँच भाईयों और दो बहनों में रामनाथ सबसे छोटे हैं। उन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। इसी के चलते भंडार घर को ही अध्ययन कक्ष बना लिया था।

वे अक्सर अपने पिता मैकू लाल के साथ पंचायत में जाया करते थे। इन्हीं पंचायतों में शामिल हो वे वकालत और राजनीति के लिए प्रेरित हुए। पढ़ाई के बाद वे शहर आ गए और स्टेनो की नौकरी शुरू की ताकि पिता पर पैसे का भार न पड़े। कोविंद ने तीसरे प्रयास में आईएएस परीक्षा में सफल होने पर मुख्य सेवा की बजाय एलाइड सेवा में चयन से नाखुश होकर इस नौकरी को ठुकरा दिया था। इसके बाद 1971 में बार काउंसिल आॅफ दिल्ली के सदस्य बने और 16 साल तक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की।

30 मई 1974 को उनका विवाह सविता कोविंद से हुआ। परिवार में उनकी पत्नी के अलावा बेटा प्रशांत है जो दिल्ली में बिजनेस करता है और बेटी स्वाति एयर इंडिया में कार्यरत है। उनका एक भाई झांसी में रहता है तो अन्य कानपुर में ही अपना काम करते हैं। उनके एक भाई झींझक कस्बे में परचून की दुकान चलाते हैं। 1977 में रामनाथ कोविंद पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्यकारी अधिकारी भी रहे।

केन्द्र की मोदी सरकार ने 8 अगस्त 2015 को उन्हें बिहार के राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया। संघ के कार्यकर्ता रहे कोविंद कानून के अच्छे जानकार हैं और सुबह 4 बजे उठकर नियमित योग साधना करते हैं।

मोदी का मास्टर स्ट्रोक

रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनकर पीएम मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस, जदयू, बसपा सहित विपक्षी पार्टियों को तगड़ा झटका दिया है। कोविंद संघ और भाजपा के हैं।

इसके बावजूद उनकी छवि कट्टर नेता की नहीं है। यही उनके चयन का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। इसके अलावा भाजपा के खिलाफ विपक्ष ने दलित आरक्षण विरोधी होने का जो दाव खेला था, वह उसके ऊपर उल्टा पड़ गया है।

बताया जा रहा है कि भाजपा केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत भी इस रेस में थे। पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष ने इसके संकेत भी दिए थे लेकिन कथित पेंशन घोटाले में गहलोत का नाम आने पर दोनों नेताओं को हाथ पीछे खींचने पड़ गए।

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