रक्षाबंधन: बहनों की रक्षा के संकल्प का पर्व

Raksha Bandhan, Defence, Sisters, Culture, Religion

भारत विविध धर्म, भाषा व संस्कृतियों से सुसज्जित विविधताओं वाला देश है, वहीं विविधता में एकता इसकी सबसे बड़ी खासियत भी है। दैनंदिनी में समय-समय पर दस्तक देने वाले पर्व-त्योहार यहां क्षीण हो रहे पारिवारिक व सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने में अहम भूमिका अदा करते हैं। ये पर्व-त्योहार मानव जीवन में विभिन्न कारणों से बनने वाली नीरसता के बादल को पीछे छोड़ खुशियों की वर्षा कराने में बड़ी सहभागिता निभाते हैं। इसके साथ ही, सामाजिक संतुलन स्थापित करने तथा लोगों में सामाजिकता बढ़ाने में पर्व-त्योहारों का बड़ा महत्व रहा है।

आज, भाई-बहन के निश्छल प्रेम को समर्पित रक्षाबंधन का पावन पर्व है। प्यारी बहन के कोमल हाथों से प्यारे भाई की कलाई पर बंधने वाली लच्छेदार राखियाँ या रेशम का धागा एक दूसरे के लिए प्रेम, सुरक्षा व समर्पण के उच्च आदर्शों को जीवनभर के लिए समाहित किये हुए है। विश्वास की यह डोर जितनी मजबूत होगी, आपसी रिश्ते उतने ही मजबूत होंगे। भाई-बहन का प्यार अटूट होता है। बचपन में गुड्डे-गुड्डियों के साथ खेलते-खेलते दोनों कब बड़े हो जाते हैं, मालूम ही नहीं पड़ता लेकिन, एक दूसरे के प्रति प्यार दिनोंदिन बढ़ता जाता है।

भाई-बहन का रिश्ता चिरकाल तक स्थाई रहता है। भाई की सफलता पर सबसे ज्यादा खुशी बहन को होती है, तो बहन की घर से विदाई के वक्त सबसे ज्यादा तकलीफ भाई ही महसूस करता है। हालांकि, यह त्योहार भाई-बहन को प्रत्येक वर्ष एक-दूसरे के पास लाकर खुशियों की सौगात देने को एक बड़ा अवसर सृजित करता है। वर्ष में एक बार आने वाला यह पर्व एक महान संदेश भी दे जाता है। यदि इस दिन हर एक भाई ना सिर्फ अपनी बहन बल्कि, दूसरों की भी बहनों की सुरक्षा का संकल्प लेता है तो, शायद यह रक्षाबंधन के महान पर्व को सबसे बड़ी सार्थकता प्रदान करना होगा।

ऐसा संकल्प इसलिए आवश्यक है कि आज हम अपनी बहनों की रक्षा तथा सम्मान का संकल्प तो ले रहे हैं, लेकिन समाज की अन्य महिलाओं के साथ घरेलू, सामाजिक अथवा शारीरिक हिंसा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। महिलाओं को प्रताड़ित करते समय हम यह भूल जाते हैं कि वे भी किसी की प्यारी बहन हैं। पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों का यह दोहरा रवैया भले ही उनकी अकड़ की निशानी हो, लेकिन महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवेश बनाने में इस तरह की संकीर्ण व दोहरी मानसिकता सामाजिक मूल्य व संस्कृति के मार्ग में बड़ी बाधा उत्पन्न कर रही हैं। ऐसे में निश्चय ही हमारा यह संकल्प देश की ‘आधी आबादी’ को उचित सम्मान दिला पाएगा। साथ ही, समाज में घटने वाली असामाजिक घटनाओं में भी निश्चित रुप से कमी आएगी।

रक्षाबंधन एक उत्सव है, जिस अवसर पर बहनें अपने भाई से अधिक उत्साहित नजर आती हैं। ऐसे शुभ अवसर पर भाई भी राखी बंधवाने के बाद अपनी बहन को उपहार देने की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। विभिन्न कारणों की वजह से जब भाई ऐसे आयोजन में शरीक न हो पाने की विवशता व्यक्त करता है, तो बहनें डाक द्वारा भाई को राखी के साथ अपना प्यार भेज देती हैं।

डिजिटल क्रांति के बाद अब आॅनलाइन शॉपिंग वेबसाइट के जरिये भी राखी भेजने का चलन बढ़ गया है। देश की रक्षा को प्रतिबद्ध सैनिक इस अवसर पर भी अपने घर नहीं आ पाते, इसलिए बहनें उनको राखी भेजने से नहीं चुकतीं। ‘सिस्टर फॉर जवान्स’ एक ऐसा ही अभियान है, जिसके माध्यम से देशभर के विभिन्न शहरों से राखियों का संग्रह कर सैनिकों के पास भेजा जा रहा है, जिसमें उनकी सलामती की दुआ तो है ही, साथ ही ऐसे अवसर पर अपनी बहन की आने वाली याद को कुछ हद तक कम करने का प्रयास भी होता है।

कन्या भ्रूण-हत्या तथा पुत्र-मोह की अधिकता की वजह से भारतीय समाज में लिंगानुपात असमान हुआ है, जिससे सामाजिक असंतुलन बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ परिवार में हो रहे लिंग-आधारित भेदभाव की वजह से बालिकाओं के सर्वांगीण विकास में बाधा पहुंची है। स्त्री-पुरुष के असमान अनुपात का नतीजा है कि रक्षाबंधन में भी कई भाइयों की कलाई सूनी रह जाती हैं।

बहरहाल, आज महिलाओं में जागरुकता बढ़ी है, इसलिए पढ़ी-लिखी व समझदार किशोरी या महिलाएं इस दिन अनाथाश्रम, कारागार या मलिन बस्तियों में जाकर लोगों को राखी बांधती है, जो सभ्य समाज की एक बड़ी निशानी है। रक्षाबंधन के अवसर पर पेड़-पौधों को भी कच्चा धागा बांधकर उसकी रक्षा लेने के संकल्प का रिवाज भी भारतीय समाज के अनेक हिस्सों में प्रचलित है। निश्चय है, यह कदम प्रकृति-संरक्षण की दिशा में अनूठा प्रयास है।

रक्षाबंधन एक धर्मनिरपेक्ष पर्व है। धर्म कोई भी हो, रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन को एक-दूजे के सम्मान व सुरक्षा में खड़े रहने की शिक्षा ही देता है। अत: इस पावन अवसर पर हम अपनी और समाज की अन्य बहनों की सुरक्षा व सम्मान का संकल्प ले सकते हैं। यही इस पर्व का मूल है और इसकी सार्थकता भी इसी से है।

रक्षाबंधन एक धर्मनिरपेक्ष पर्व है। धर्म कोई भी हो, रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन को एक-दूजे के सम्मान व सुरक्षा में खड़े रहने की शिक्षा ही देता है। अत: इस पावन अवसर पर हम अपनी और समाज की अन्य बहनों की सुरक्षा व सम्मान का संकल्प ले सकते हैं। यही इस पर्व का मूल है और इसकी सार्थकता भी इसी से है।

सुधीर कुमार

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