बैंकों का विलय करने की सकारात्मक पहल

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इंफा

पिछली सरकार द्वारा सरकारी बैंकों का घाटा कम करने के लिए उनका विलय करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया कदम है। भरतीय स्टेट बैंक के पांच अनुषंगी बैंकों के विलय से इस बैंक की संपत्ति 37 ट्रिलियन डालर की हो गयी है और उससे देश का सबसे बडा व्यावसायिक बैंक मजबूत हुआ है। बैंकों के विलय से बैंकों की स्थिति मजबूत होगी, उनका घाटा कम होगा और फिजूलखर्ची पर रोक लगेगी और एक सकारात्मक वातावरण बनेगा। इस बात की अटकलें लगायी जा रही हैं कि इलाहाबाद बैंक का पंजाब नैशनल बैंक के साथ विलय किया जा रहा है और सरकार बैंक आॅफ बडौदा, ओरिएंटल बैंक आॅफ कामर्स, सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया और आईडीबीआई बैंक के विलय के बारे में भी विचार कर रही है।

इलाहाबाद बैंक और पंजाब नेशनल बैंक का विलय इस आधार पर उचित बताया जा रहा है कि इलाहाबाद बैंक पूर्वी क्षेत्र में और पंजाब नेशनल बैंक उत्तरी क्षेत्र में अच्छा कारोबार कर रहे हैं और यदि उक्त चार सरकारी बैंकों का भी विलय किया गया तो उनकी संयुक्त परिसंपत्ति 16.18 ट्रिलियन रूपए होगी और वे वित्तीय दृष्टि से मजबूत बनेंगे। सरकार द्वारा बैंकों के विलय का प्रस्ताव न केवल स्टेट बैंक आफ इंडिया के विलय से प्रभावित है अपितु इससे इन सरकारी बैंकों का अशोध्य ऋण भी कम होगा और उनकी संचालनात्मक कार्य कुशलता बढेगी किंतु कुछ विशेषज्ञों की राय इससे भिन्न है।

पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व अध्यक्ष केसी चक्रवर्ती का कहना है कि अकुशल बैंकों का कुशल बैंकों के साथ विलय से आवश्यक नहंी है कि उनमें कार्य कुशलता आए और उत्पादकता बढे। बैंकों का निजीकरण कुछ सीमा तक किया जा सकता है। जिसके अंतर्गत प्रबंधन पर नियंत्रण सरकार और निजी साझीदार दोनों का रहे किंतु बैंकों की बहुमत हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को देने के बारे में संदेह व्यक्त किया गया कि वे प्राथमिक क्षेत्र ऋण देने के मानदंडों का पालन न करें। इस बात से इंकार नहंी किया जा सकता है कि सरकारी क्षेत्र के बैंक संकट का सामना कर रहे हैं, उनका पुनरूत्थान किए जाने की आवश्यकता है और उनहें आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाया जाना चाहिए। अधिकतर अर्थशास्त्री और बैंक विशेषज्ञों का मानना है कि विलय इस दिशा में पहला संभावित कदम है। इसके साथ ही बैंकों के प्रबंधन को भी पेशेवर बनाया जाना चाहिए।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप सीमित होना चाहिए। सरकारी बैंकों को पेशेवर दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस दिशा में पहला कदम बैंकों के बोर्डों में मंत्रालय के प्रतिनिधि या अधिकारियों की नियुक्ति के बजाय बैंक उद्योग का अनुभव रखने वाले पेशेवर नियुक्त किए जाने चाहिए। व्यापक दृष्टिकोण से उद्योग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। बैंकों को अधिक स्तंत्रता देने के मुद्दे पर विशेषज्ञों द्वारा अनेक बार चर्चा की गयी है और राजनेताओं द्वारा हस्तक्षेप के बिना बैंकों को स्वतंत्रता देना एक स्वागत योग्य कदम है। किंतु यह संभव नहंी है। सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे साथ ही बैंकों के शीर्ष स्तर पर कडी निगरानी रखनी होगा ताकि बैंक प्रबंधन बेईमान व्यवसाइयों के जाल में न फंसे।
वस्तुत: बडे ऋणों को मंजूरी देने का निर्णय शीर्ष स्तर पर किया जाना चाहिए और यदि इस ऋण का भुगतान नहंी किया जाता है तो उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाना चाहिए। वर्तमान में यह देखा गया है कि छोटे व्यवसाई अपने ऋण का भुगतान कर देते हैं किंतु बडे व्यवसाई कई बार ऐसा नहंी करते हैं। बडे व्यवसाई कई बार ऋण ली गयी राशि को अन्य प्रयोजनों के लिए खर्च करते हैं जिससे बैंकों को नुकसान होता है। बडे चूककतार्ओं की सूची को सार्वजनिक करने की मांग की जा रही है। समय आ गया है कि ऐसे चूककतार्ओं की सूची सार्वजनिक की जाए।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष मार्च में सकल गैर-निष्पादनकारी आस्तियों का अनुपात बढकर 11.6 प्रतिशत हो गया है। किंतु आशा की जाती है कि दिवालियापन कोड और अशोध्य ऋणों के समाधान के लिए त्वरित मानदंड निर्धारित करने जैसी पहलों से अल्पकाल में संकट के बावजूद बैंकों में वित्तीय स्थिरता आएगी। भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गर्वनर विरल आचार्य के अनुसार वर्तमान में सरकार ने संकट से जूझ रहे सरकारी बैंकों के लिए शुरू किए गए पुर्न पंूजीकरण कार्यक्रम से इस पूरे क्षेत्र में मजबूती आनी चाहिए। दूसरी ओर समाज के एक वर्ग को बैंकों का पैसा हजम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पेशेवरता अपनायी जानी चाहिए और यह स्पष्ट संदेश दिया जना चाहिए कि बैंकों का ऋण वापस किया जाएगा चाहे इसके लिए कंपनी की संपत्ति या उसके निवेशकों की संपत्ति को बेचना ही क्यों न पडे।

यदि सरकार चाहे तो एक दो साल में बैंकों की स्थिति में बदलाव आ सकता है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में आशा व्यक्त की गयी है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2020 तक त्वरित सुधारात्मक ढ़ांचा अपनाए जाने से स्थिति में सुधार आएगा। वर्तमान में ऋण देने के कार्य में आए ठहराव को दूर किया जा सकता है किंतु इसके लिए आवश्यक है कि कुछ अशोध्य ऋणों की वसूली हो जिसके लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए। साथ ही बैंकों द्वारा यह स्पष्ट संदेश दिया जाना चाहिए कि सरकारी पैसे को हजम नहंी किया जा सकता है और समय पर बैंकों का पैसा लौटाया नहंी गया तो ऐसे चूककतार्ओं को कडा दंड दिया जाएगा। कुल मिलाकर बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बहाल किए जाने की आवश्यकता है।

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