जाट आरक्षण पर सियासत

जाट आरक्षण पर अजीबो-गरीब तरीके से राजनीति हो रही है। राजनीतिज्ञ चालाकी से ब्यानबाजी कर रहे हैं। उनके ब्यानों में स्पष्टता की कमी झलक रही है। पार्टियों की विचारधारा स्पष्ट नहीं हो रही कि वह आरक्षण के हक में है, या नहीं। हरियाणा में गत वर्ष की तरह विपक्षी दलों ने जाट आंदोलन के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकनी शुरू कर दी हैं। विपक्ष के नेताओं ने सरकार को घेरकर एक जाति विशेष के वोट बैंक पर निशाना साधा है।

विधानसभा में जाट आंदोलन दौरान दंगों की जांच के लिए खूब हंगामा हो रहा है। दूसरी तरफ जाट समुदाय फिर आंदोलन पर है। दंगा पीड़ितों से हमदर्दी चाहे किसी की हो या न हो, किंतु इस मामले में सरकार को घेरने की योजना बनाई जा रही है। दरअसल गत वर्ष घटित हिंसक घटनाओं ने हरियाणा का बड़े स्तर पर नुक्सान किया, जिसकी पूर्ति के लिए सरकार व विरोधियों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।

बेहतर हो यदि विपक्षी पार्टियां जाति के मामलों में राजनीति करने की बजाए, राज्य की अमन-शांति कायम रखें। इसके साथ ही आरक्षण संबंधी कोई ठोस और सबको मंजूर नीति के निर्माण के लिए सद्भावना भरा माहौल तैयार करें। दंगों से पैदा कड़वाहट को दूर कर भाईचारा बनाया जाए, तो पार्टियों की मेहनत राज्य के काम आ सकती है।

आंदोलन के दौरान तो हिंसा के लिए राजनेता ही घिर गए थे। दंगों को उकसाने की रिकॉर्डिंग तक मीडिया में आ गई थी। जातिवाद की जड़ और गहरी करने की बजाय युवा पीढ़ी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व रोजगार जैसे मुद्दे उठाए जाएं। आरक्षण का मुद्दा हरियाणा सहित देश के अन्य राज्यों में चल रहा है।

प्रत्येक राज्य में वोट बैंक की राजनीति और आरक्षण साथ-साथ चल रहे हैं जिस कारण संतुलित नीति अपनाने का माहौल नहीं बन रहा जिससे विवाद बढ़ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि किसी राज्य का विकास राजनैतिक पार्टियों की ईमानदारी व वचनबद्धता से ही होता है। केवल विवादित मुद्दों पर राजनीति करने से लोगों का दिल नहीं जीता जा सकता। हिंसा को नफरत करने का संदेश ही आपसी प्रेम व भाईचारा पैदा करेगा।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।