राजनीतिक हिंसा लोकतंत्र के लिए घातक

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गुजरात में राहुल गांधी अपनी पार्टी की ओर से बाढ़ पीड़ितों का हालचाल जानने पहुंचे तब कुछ लोगों ने उन पर पत्थर फैंके व मोदी-मोदी के नारे लगाए। स्पष्ट है पत्थरबाज लोग दर्शा रहे थे कि वह भाजपा एवं मोदी के प्रशंसक है और राहुल को नहीं चाहते। लेकिन पत्थरबाजी क्यों? केरल में मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी पर भाजपा के आरोप हैं कि वहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकतार्ओं को कम्युनिष्ट काडर मार रहा है।

ठीक ऐसा ही किसी वक्त पश्चिम बंगाल में त्रृणमूल कांग्रेस भी कम्युनिष्ट पार्टी पर आरोप लगाती थी। पंजाब में भी एक कट्टरपंथी वर्ग जो अपने-आपको खालिस्तान का समर्थक कहता है पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के लोगों की हत्या के अंदेशे हैं। ये सारी घटनाएं एक प्रमाण हैं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाले भारत में राजनीतिक हिंसा भी है।

पिछले दिनों देश में राष्ट्रीय चुनाव सम्पन्न हुए और मीडिया ने दिखाया कि किस तरह भारत में बड़ी शांति से सर्वोच्चय पद पर सत्ता एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को सौंप देता है परन्तु देश में बढ़ रही राजनीतिक हिंसा की घटनाएं कुछ और ही ब्यां करने लगी हैं।

पहले यह हिंसा चुनावों के वक्त ज्यादा होती थी तब बूथों पर कब्जे, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा एक दूसरे पर जानलेवा हमले करना एवं हत्याएं हर चुनाव की कहानी थी चुनाव जितना छोटा होता हिंसा उतनी ज्यादा होती। पंचायत चुनाव, विधानसभा व लोकसभा चुनावों में हिंसा के लिए अघोषित तौर पर सत्तापक्ष का दल छूट देता एवं प्रशासन को पंगु बनाता ताकि उसके द्वारा फैलाई जा रही हिंसा में वह रक्षात्मक तौर पर बाधा नहीं बने।

परन्तु चुनाव आयोग के सशक्त होने, सुरक्षा व्यवस्था को ज्यादा चुस्त कर लेने से, मतदाताओं द्वारा जागरूक हो जाने से अब चुनावी हिंसा में कमी आई है। लेकिन अब सत्तापक्ष के नेताओं की कृपादृष्टि पाने या अपने आपको उनकी नजरों में चढ़ाने के लिए राजनीतिक कार्यकर्ता विपक्षी दलों पर हमले करते हैं। हिंसा लोकतंत्र की घोर शत्रु है इसका समर्थन किसी भी तरह से होना देश में तानाशाही को जन्म देने जैसा है।

राहुल एक नेता का नाम हो सकता है परन्तु वास्तव में यह राजनीतिक मतभिन्नता रखने वालों पर गुंडागर्दी है। देश के राजनीतिक, संवैधानिक एवं प्रशासनिक प्रतिष्ठानों को इसके विरुद्ध अपना निर्णय देना होगा और दोषियों पर बिना किसी बचाव के कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा भाजपा नैतिक रूप से वह आधार खो देगी जिसकी दुहाई वह केरल में दे रही है। भारतीय मतदाताओं को ऐसी घटनाओं पर अपना तीव्र रोष व्यक्त करना चाहिए। हो सके तो घटनाएं याद रखी जाएं और हर उस व्यक्ति व विचारधारा को हाशिए पर धकेला जाए जो हिंसा की राजनीति में विश्वास करती है।

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