वंदेमातरम् पर ओछी सियासत

Political Party, National Song, Protest, Nationality

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् को तमिलनाडु के स्कूलों में सप्ताह में कम से कम दो बार गायन को अनिवार्य किए जाने के फैसले के बाद जिस तरह राजनीतिक दल इस पर ओछी सियासत कर मजहबी रंग दे रहे हैं, वह राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् की गरिमा के खिलाफ ही है। यह कहीं से भी उचित नहीं कि सियासी दल राष्ट्रीय गीत को मजहब के फ्रेम में फिट कर इसका विरोध करें और सियासी साजिश तलाशें। जब अदालत अपने फैसले में कह चुकी है कि अगर किसी व्यक्ति या संगठन को इसे गाने में दिक्कत है, तो उन्हें इसे गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, फिर भी इस पर सियासी तूफान खड़ा क्यों किया जा रहा है।

यह समझना होगा कि वंदेमातरम् गीत किसी धर्म विशेष का प्रतीक नहीं, बल्कि मातृभूमि के प्रति समर्पण का भाव है, जिसे दुनिया के हर देश में अपने तरीके से प्रदर्शित किया जाता है। गौर करें तो अरबी में मातृभूमि को मादर-ए-वतन कहा जाता है, जिसका मतलब मां से है। फारसी में भी मातृभूमि की उपमा मां से की गयी है। ऐसे में वंदेमातरम् के विरोध का औचित्य समझ से परे है। यमन के राष्ट्रगीत में झरनों की तुलना मां के दूध से की गयी है। मिस्र के राष्ट्रगीत में मातृभूमि की तुलना मां से की गयी है। इसी तरह मलेशिया, सूडान, अरब, जार्डन सभी देशों में राष्ट्रगीत की परंपरा है। समझना होगा कि राष्ट्रगीत या राष्ट्रगान केवल राष्ट्र के प्रतीक चिंह्न भर नहीं होते। उससे राष्ट्र की संस्कृति, इतिहास, कला, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान का भी बोध होता है। बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदेमातरम् गीत भी इन्हीं संपूर्णताओं को समेटे हुए है।

समझना होगा कि वंदेमातरम किसी धर्म-जाति या मजहब को समर्पित गान नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीयता की भावना का प्रकटीकरण है। इसकी पंक्तियों में भारतीयता का ओज और समृद्ध भारत भूमि की विषेशताओं का उल्लेख है। गीत राष्ट्र पर कुर्बान होने का जज्बा पैदा करता है। वंदेमातरम् में मातृभूमि के प्रति अनुरक्ति, समर्पण और उसकी उदात्त संपूर्णता का भाव निहित है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मातृभूमि और राष्ट्रीयता के प्रति सम्मान और समर्पण का संस्कार कालजयी है। माता और मातृभमि को एक कहा गया है। ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी‘ यानी माता और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर है। वंदेमातरम एक राष्ट्रीय भाव है। इसे राजनीतिक संकीर्णता के दायरे में रखकर नहीं देखा जाना चाहिए। इससे राष्ट्रीय हित को चोट पहुंचता है।

समझना होगा कि वंदेमातरम् आजादी की लड़ाई का मुख्य नारा था। क्रांतिकारियों ने इस आदर्श नारे को अपने संस्कार में ढाला। गीत के जरिए आजादी की जंग को तेज कर भारतीय जनमानस में जागृति पैदा की। लोगों को लामबंद किया और ब्रिटिश राजसत्ता को उखाड़ फैंका। भगत, राजगुरु और विस्मिल जैसे क्रांतिकारियों ने वंदेमातरम् की आवाज लगाकर फांसी के फंदे को चूम लिया। फिर क्यों न माना जाए कि वंदेमातरम् पर सवाल खड़ा करने वाले क्रांतिकारियों का अपमान कर रहे हैं? वंदेमातरम् राष्ट्रीयता का स्वर और क्रांतिकारियों के प्रति एक सच्ची श्रद्घांजलि है। इसका विरोध आजादी के दीवानों का विरोध और राष्ट्रीयता की भावना पर कुठाराघात है। संसदीय मर्यादा का हनन है।

राष्ट्रीय प्रतीक चिंह्न किसी धर्म, जाति या मजहब विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करते। न ही इससे किसी धर्म या मजहब की भावनाएं आहत होती हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के कुछ सियासी दल इसे मजहब का खोल पहनाकर भारतीय संस्कृति के खिलाफ जहर उगलने का काम कर रहे हैं। अब उचित होगा कि देश के सभी दल राष्ट्रगीत वंदेमातरम पर काली सियासत करने के बजाए उसका सम्मान करें।

अरबी में मातृभूमि को मादर-ए-वतन कहा जाता है, जिसका मतलब मां से है। फारसी में भी मातृभूमि की उपमा मां से की गयी है। ऐसे में वंदेमातरम् के विरोध का औचित्य समझ से परे है। यमन के राष्ट्रगीत में झरनों की तुलना मां के दूध से की गयी है। मिश्र के राष्ट्रगीत में मातृभूमि की तुलना मां से की गयी है।

-रीता सिंह

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