माँ बाप दोराहे पर, बच्चे चौराहे पर..

Parents and kids going away from traditions and moral values

आज के दौर में जब भी अपने चारों और देखता हूं तो अपने अनजाने भविष्य की तरफ बेतहाशा भागते हुए मशीनी बच्चों और नौजवानों को देख कर अजीब सा महसूस होता है, प्रतियोगिता के इस दौर में बच्चे एक रोबोट की तरह से नजर आने लगे हैं, जोकि एक मकान के लिए ही कार्यक्रम किया जाता है। बड़े से बड़े पोस्ट प्राप्त करना और बड़ी से बड़ी डिग्री हासिल करना और इन सबके बीच एक चीज लगातार गायब होती जा रही है और वो है उनके संस्कार और सामाजिक मूल्यों के जो तहजीब और मूल्य हमारे बुजुर्गों में था और लगभग हमारे पीढ़ी तक आने के बाद अब एक बड़ा अंतर सा आया है। इस अंतर को बढ़ने में कहीं न कहीं एक माँ बाप के रूप में हम भी इसके कसूरवार हैं, क्योंकि जो तहजीब, संस्कार और सामाजिक मूल्य हमें अपने बुजुर्गों से वंशानुगत में मिला था हम थे। इसके कारण स्पष्ट रूप से इस भागम भाग और मार काट वाली प्रतियोगिता है।

बचपन में परिवारों में बुजुर्ग और माँ बाप अपने बच्चों को प्रेरक कहानियां सुनाते थे। अच्छी तरह से समझा दिया जाता था। मगर अब यह सब बातें एक काले और सफेद फिल्म की तरह से खत्म सी हो गई हैं। इसके लिए देखा गया तो बदलते हुए दौर, मारा मारी, व्यस्त जीवन, कठिन मुकाबला और भी कई बातें जिम्मेदार हैं। आज पर परमाणु परिवार का दौर चल निकला है, जहां माँ बाप और दो बच्चों को एक परिवार कहा जाता है। संयुक्त परिवार गायब होते जा रहे हैं और इसके साथ ही बुजुर्गों की जगह भी परिवारों से गायब होती जा रही है। ऐसे परमाणु परिवारों में जहां माता पिता भी नौकरी करते हैं, और बच्चे घर के नौकरियां हवाले हों। यहां कौन इन नंद मुन्नों को यह शिक्षा, संस्कार, तहजीब, और सामाजिक मूल्यों के बारे में बता रहे हैं ? और फिर दूसरी बात आजकल के इस दौर में हर आदमी अनुभवनी हो गया है, हर काम एक सोचे समझे प्रोग्राम के लिए होता है, यहां तक कि बच्चा भी। और फिर उसको पैदा होने के बाद स्कूल में पंजीकरण कराना है और फिर स्कूल के बाद कौन कालेज में और फिर कितना दान दे कर क्या बनाना है। यह सब उसके पैदा होने से पहले ही कार्यक्रम कर दिया जाता है या पैदा हुआ ही तय हो जाता है।ञ यानी बच्चा एक कम्प्यूटरीकृत रोबोट हो गया। उसकी पूरी लाइफ का प्रोग्राम बना कर उसको सॉफ़्टवेयर के हिसाब से टाइम टेबल में फिट कर दिया जाता है और फिर यह मशीनी बच्चा दिन भर एक मशीन की तरह सुबह उठकर स्कूल, फिर ट्यूशन, फिर योग क्लास, फिर तैराकी, फिर जुड़ा क्लास , फिर घर आकर होम वर्क, और फिर थक कर सो जाना ।

माता पिता बच्चे से वक््त मांग कर भी फुर्सत से बैठ कर बात नहीं कर सकते क्योंकि वैसे तो खुद के पास ही वक््त नहीं है, और अगर है । तो फिर बच्चों के पास नहीं है, क्योंकि अगर बच्चों को वक्त मिला है तो उसके लिए मनोरंजन के इतने साधन हैं कि वो कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं होगा । हमारे समय में बुजुर्ग फुर्सत के वक््त हमें अपने जिÞन्दगी का निचोड़ और अच्छी अच्छी बातें बताते थे, पढ़ने को अच्छी तरह से अच्छा और कामिक्स हुआ था। मगर आज के बच्चों के पास मनोरंजन के लिए कंप्यूटर गेम हैं, इन्टरनेट है, विडियो गेम हैं, मोबाइल है, और उसकी दुनिया भी यही है ।

अब ऐसे बच्चों को कैसे किसी अच्छे और बुरी बात के बारे में या संस्कार और सामाजिक मूल्यों के बारे में तरीकों से दूर जाना, यह लोग अपनी विरासत से दूर जाते जा रहे हैं, अच्छा क्या है, बुरा क्या है, समझने का वक््त नहीं है , और अगर वक्त कभी निकल भी आये तो माता पिता के पास वक्त नहीं होता, जबकि हर माता पिता ही चाहता है कि वो अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाते हैं और उसको हर अच्छी बुरी बातों से परिचित कराया जाए, और इस प्रतियोगिता भरे दौर की मारा मारी में सब ख्याल कहीं दब कर रह रहे हैं, माता पिता अपने नौकरी और घर के बीच संतुलन बनाते हैं एक पेंडुलम कि तरह हो रहे हैं, और बच्चे स्वयं आप इस दौर के लायक बनाने के लिए पढ़ाई , इन्टरनेट, कोचिंग, जिम, योगा क्लास के गोल गोल पहिये में घूम रहा है, एक चमकीले भविष्य और अच्छी नौकरी, और एक बेहतरीन जिन्दगी के लिए लगातार हर दिशा में दौड़ लगा रहा है और इस भाग दौड़, प्रतियोगिता, और आप टोकी इनका नन्हा बचपन कही कुचल कर रह गया है । इस दौर की इस त्रासदी को मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि मां-बाप दोराहे पर और बच्चे चौराहे पर।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।