पनामा पेपर कांड: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री को सजा

Panama paper scandal

भ्रष्टाचार के आरोप में सत्ता से बेदखल किए गए पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को 25 जुलाई को होने जा रहे आम चुनाव से ठीक पहले करारा झटका लगा है। पाक की जवाबदेही अदालत के जज मोहम्मद वसीर ने पनामा लीक्स कांड से जुड़े एक मामले में सजा सुनाई है। भ्रष्टाचार का यह मामला लंदन के एवनफील्ड संपत्ति खरीद का है, जिसमें शरीफ को 10 साल की सजा हुई है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज के मुखिया) शरीफ पर 73 करोड़ रुपए जुर्माना भी लगा है। इसी मामले में शरीफ की बेटी मरियम को 7 साल और जांच में सहयोग नहीं करने के ऐवज में 1 साल की अतिरिक्त सजा सुनाई गई है। पाक के राष्ट्रीय उत्तरदायित्व ब्यूरो का आरोप था कि शरीफ और उनके परिवार ने 1993 में भ्रष्टाचार से अर्जित धन से लंदन में 4 फ्लैट खरीदे थे। इस मामले में अदालत ने शरीफ और उनकी बेटी को आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का दोषी पाया और सजा सुनाई। अदालत ने ब्रिटेन सरकार से इस संपत्ति को जब्त करने का अग्रह भी किया है। विडंबना है कि इन्हीं पनामा पेपर्स में भारतीयों के नाम भी शामिल थे, लेकिन भारत सरकार अप्रैल 2016 में मल्टी एजेंसी ग्रुप भी बनाई थी। लेकिन एजेंसी अभी किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंची है। इन पेपर्स में 426 भारतीयों के नाम दर्ज हैं। इनमें से एजेंसी ने 74 मामलों को जांच के योग्य पाया है, लेकिन अदालती कार्यवाही अब तक एक भी दोषी के विरुद्ध संभव नहीं हुई है।

मध्य अमेरिकी देश पनामा की कानूनी कंपनी मोसेक फोनसेका की 15 लाख फाइलों के 1.15 करोड़ पृष्ठ 2016 में जारी किए थे। इन दस्तावेजों के जरिए 2,14,153 कंपनियों से जुड़े 14,153 लोगों के नाम उजागर हुए थे। ये वे लोग हैं, जो अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि से कमाए कालेधन को इस देश में लाए। इस कालेधन को सफेद बनाने की प्रक्रिया, मसलन मनी लॉन्ड्रिग के जरिए लाया गया। 78 देशों के 370 से भी ज्यादा पत्रकारों के एक महासंघ ने महीनों तक की गहन जांच के बाद यह खुलासा किया था। इसमें दुनिया के दिग्गज नेताओं, उद्योगपतियों और कला व संस्कृति से जुड़ी नामी हस्तियों के नाम शामिल हैं। महज 40 लाख की आबादी वाला पनामा ऐसा देश है, जहां की सरकारें स्विटजरलैंड की तरह टैक्स हैवन के जरिए अपने बैंकों के वित्तीय कारोबार को प्रोत्साहन व सरंक्षण देती हैं। इस देश का इस्तेमाल धनी, बलशाली, तस्कर व अपराधियों के धन को सफेद बनाने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। यही वजह है कि स्विस बैंकों की तरह पनामा भी काले कारोबारियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है।

मोसेक फोनसेका नाम की जिस कंपनी के दस्तावेज लीक हुए थे, इसे फर्जी कंपनियां खोलने में महारत हासिल थी। कंपनी खाताधारी का स्वामित्व छिपाकर और फर्जी दस्तावेजों की कूट रचना करके पूंजी का निवेश कराने का उपाय करती थी। इसका कारोबार लंदन, बीजिंग, मियामी, ज्यूरिख समेत 35 देशों में फैला हुआ था। कंपनी द्वारा इस तरह से किए जा रहे फर्जी कारोबार से कई देशों की अर्थव्यस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इन देशों को संदेह था कि मोसेक फोनसेका फर्जी दस्तावेज बनाकर अनेक देशों के धन-कुबेरों की पूंजी निवेश के गोरखधंधे में लगी है। इसलिए इंटरनेशनल कांसोर्टियन आॅफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट व 107 अन्य समाचार-पत्र समूह इस कंपनी के गोपनीय ढंग से दस्तावेज खंगालने में लग गए। इस संगठन में भारत का इंडियन एक्सप्रेस समाचार-पत्र समूह भी शामिल था। 78 देशों के 370 से भी अधिक पत्रकारों ने इस गैर कानूनी निवेश की लगातार महीनों पड़ताल की और नाम व पतों की दस्तावेजी पुष्टि होने के बाद यह खुलासा किया था। 2010 में अमेरिका में हुए विकीलीक्स खुलासे के बाद इसे विश्व का सबसे बड़ा विस्फोटक खुलासा माना गया था।

जिन बड़े नेताओं के नाम उजागर हुए थे, उनमें नवाज शरीफ के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, मिस्त्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक, सीरिया के राष्ट्रपति बरार अल असद, लीबिया के पूर्व लीडर गद्दाफी, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, आइसलैंड के प्रधानमंत्री जोहाना, साऊदी अरब के शाह और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन के परिजनों की कंपनियां शामिल हैं। अर्जेंटीना के फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मैसी का नाम भी सूची में दर्ज है। इसमें करीब भारत की 500 कंपनियां, प्रतिष्ठान, ट्रस्ट एवं 426 भारतीय लोगों के नाम हैं। इसमें अंडरववार्ल्ड डॉन इकबाल मिर्ची का नाम भी है। इसमें हिजबुल जैसे आतंकी संगठन, मैक्सिको के ड्रग तस्कर के अलावा उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों के साथ व्यापार करने के कारण अमेरिकी सरकार की काली सूची में दर्ज 33 लोगों और कंपनियों के नाम भी शामिल हैं। ये आंकड़े 1977 से लेकर 2015 तक के हैं। नवाज शरीफ का तो इसमें पूरा कुनबा शामिल था। उनकी बेटी मरियम, दामाद मुहम्मद सफदर, बेटे हसन और हुसैन के नाम हैं।

दरअसल दुनिया में 77.6 प्रतिशत काली कमाई ट्रांसफर प्राइसिंग मसलन संबद्ध पक्षों के बीच सौदों में मूल्य अंतरण के मार्फत पैदा हो रही है। इसमें एक कंपनी विदेशों में स्थित अपनी सहायक कंपनी के साथ हुए सौदों में 100 रुपए की वस्तु की कीमत 1000 रुपए या 10 रुपए दिखाकर करों की चोरी और धन की हेराफेरी करती हैं। मोसेक फोनसेका कंपनी यही गोरखधंधा कर रही थी। भारत समेत दुनिया में जायज-नजायज ढंग से अकूत संपत्ति कमाने वाले लोग ऐसी ही कंपनियों की मदद से एक तो कालेधन को सफेद में बदलने का काम करते हैं,दूसरे विदेश में इस पूंजी को निवेश करके पूंजी से पूंजी बनाने का काम करते हैं।

हालांकि कंपनी ने दस्तावेजों के लीक होने के बाद दावा किया था कि वह तो विधि-सम्मत काम करती है। दरअसल समस्या की असली जड़ यहीं हैं। यूरोप के कई देशों ने अपनी अर्थव्यस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए दोहरे कराधान कानूनों को वैधानिक दर्जा दिया हुआ है और इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरंक्षण प्राप्त है। पनामा और स्विटजरलैंड जैसे देशों के बैंकों को गोपनीय खाते खोलने,धन के स्रोत छिपाने और कागजी कंपनियों के जरिए लेनदेन के कानूनी अधिकार हासिल हैं। इन गोपनीय बैकिंग नियमों का लाभ भ्रष्ट राजनेता कालेधन के कुबेर और माफिया सरगना एवं तस्कर उठा रहे हैं। पनामा पेपर्स के जरिए जिन लोगों के नाम सार्वजनिक हुए हैं,उसमें से अधिकतर कर चोरी से संबद्ध हैं। क्योंकि जर्मन अखबार के जिस पत्रकार सुडेश ख्यजेतुंग ने मोसेक फोनसेका के जरिए कर चोरी का जो पहला दस्तावेजी सूत्र पकड़ा था,वह इसी हेराफेरी से संबद्ध था। इसी के बाद आईसीआईजे के गठन की पृष्ठभूमि बनी और 8 माह की खोज के बाद कंपनी का पदार्फाश हुआ।

भारत में प्रर्वतन निदेशालय एचएसबीसी और उससे पहले की आईसीआईजे के राजफाश पर 43 विदेशी खातों की जांच कर रहा है। आईसीआइजे द्वारा 2013 में बताई गई सूचना के आधार पर राजस्व विभाग के 426 लोगों की पहचान की है, जिनमें से 184 ने विदेशी इकाइयों से सौदे की बात स्वीकार ली है। इन खातों के विस्तृत आकलन के बाद लगभग 6500 करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति का पता चला है। अमेरिका सीनेट की एक रिपोर्ट से भी यह उजागर हुआ था कि ब्रिटेन के हांगकांग एंड शंघाई बैंक कॉपोर्रेशन यानी एचएसबीसी बैंक मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर से कहा गया था कि इस बैंक के कर्मचारियों ने गैर कानूनी तरीके से कालाधन का हस्तांतरण किया है। कुछ धन का लेनदेन आतंकवादी संगठनों को भी किया है। इस खुलासे के बाद भारतीय रिर्जव बैंक ने भी अपने स्तर पर पड़ताल की थी, लेकिन इस पड़ताल के निष्कर्ष क्या निकले,यह कोई नहीं जानता।
हालांकि कालाधन वापसी के लिए बनाए गए विशेष जांच दल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एमबी शाह ने भी पनामा लीक्स को गंभीरता से लिया था। लेकिन इस बाबत कार्यवाही क्या हुई कुछ पता नहीं है। भारत समेत कुछ अन्य देशों की तमाम कोशिशों के बावजूद वैश्विक स्तर पर कोई ऐसी कानूनी-व्यवस्था अब तक नहीं बन पाई है,जिससे कालेधन के कारोबारी हतोत्साहित हों और कराधान की दोहरी व्यवस्था पर अंकुश लगे। इसलिए मोदी सरकार और एसआईटी का फर्ज बनता है कि पनामा खुलासे और पाकिस्तान से सबक लेते हुए कुछ ऐसे परिणाम सामने लाए, जिनसे यह संदेश निकले की काले-कारोबारी कितनी भी बड़ी व किसी भी क्षेत्र की शख्सियत क्यों न हों, उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।

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