ताजमहल की संभाल में लापरवाही

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ताज महल की सार-संभाल ना करने पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के खिलाफ जो सख्त शब्द प्रयोग किए हैं वो हमारे सरकारी सिस्टम की कमजोरी को उजागर करते हैं। माननीय न्यायधीशों ने सख्त लहजे में यहां तक कह दिया कि यदि ताज की संभाल नहीं कर सकते तब इसको गिरा दो। मुगलकाल में बनी यह इमारत पूरी दुनिया की भवन निर्माण कला का सुंदर नमूना है।

इसको संसार के सात अजूबों में शुमार किया गया है पर यह सरकारों की लापरवाही व नाकामी का नतीजा है कि इस सुंदर इमारत की संभाल नहीं की गई। यह बदरंग भी होती जा रही है। इस संबंधी सुप्रीम कोर्ट पुरातत्व विभाग को फटकार चुकी है। केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने ऐतिहासिक इमारतों संबंधी ‘अपनी धरोहर, अपनी पहचान’ योजना चलाई पर उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संबंधी कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।यही नहीं इस इमारत को सांप्रदायिक नजरिए से भी देखा गया। ताज सिर्फ देश की शान नहीं बल्कि इस देश को वित्तीय सहयोग भी दे रही है। हर वर्ष लाखों सैलानी यहां पहुंचते हैं जिससे पर्यटन उद्योग विकसित हो रहा है।

फिर भी ताज की महत्ता अनुसार इसकी संभाल व सैलानियों को आकर्षित करने के लिए कोई प्रभावी नीति या प्रोग्राम नहीं बनाया। सरकारों का रवैया ऐसा है कि इस सुंदर स्थान को एक बोझ तथा मजबूरी की तरह ही लिया जा रहा है। देश में सैकड़ों स्मारकों के नए प्रॉजेक्ट तो चल रहे हैं पर पहले बनी ऐतिहासिक इमारतों की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा। हैरानी तो तब होती है जब नए बने मंत्री अलॉट हुए आॅफिस व सरकारी भवनों को चमकाने के लिए जनता का पैसा पानी की तरह बहाते हैं पर देश के इतिहास व संस्कृति को संभालने की बात उनके दिलो-दिमाग में भी नहीं। पुरातत्व का विभाग अलग होने के बावजूद देश की हजारों ऐतिहासिक इमारतों खंडहरों में तब्दील होती जा रही हैं। राजनेता भाषणों में देश के इतिहास व परंपराओं की बड़ाई करते नहीं थकते लेकिन कथनी और करनी का फ र्क सुप्रीम कोर्ट ने खोल दिया है। इतिहास किसी देश व उसके नागरिकों के भविष्य की नींव होता है। फिर ताज तो सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं बल्कि विदेशी मुद्रा भी कमा रहा है। केन्द्र सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय के दर्द को समझे।

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