प्रारम्भिक व उच्च शिक्षा नीतियों में सुधार की आवश्यकता

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उत्तर प्रदेश व हरियाणा में नकल की समस्या, बिहार में शिक्षा परीक्षा परिणामों में भ्रष्टाचार की बदौलत हेर-फेर, उस पर पिछली केन्द्र सरकार द्वारा आठवीं तक बच्चों को फेल न करने की लागू की गई नीति ने देश में शिक्षा का बंटाधार कर रखा है।

पिछले वर्ष भी बिहार में दसवीं, बाहरवीं के परिणामों में टॉप रहे विद्यार्थी मीडिया को अपने पूरे विषय तक नहीं बता सके थे। यहां तक कि लड़कियों में अव्वल रही रुबी ने पॉलिटीकल साइंस को खाना बनाने का विज्ञान बताया था। इस वर्ष 12वीं परीक्षा में अव्वल रहे विद्यार्थी गणेश, जिन्हें संगीत विषय में 70 में से 65 अंक दिए गए हैं, संगीत का क-ख भी नहीं बता पाए।

यहां तक कि उसके खिलाफ परीक्षा में धोखाधड़ी का केस दर्ज हो गया और उनकी गिरफ्तारी हो गई। स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त पत्राचार से हो रही उच्च शिक्षा भी सवालों के घेरे में है, यहां विद्यार्थियों को स्नातक परा- स्नातक की डिग्री दी जा रही है, जबकि उनका विषय ज्ञान सैकेंडरी स्तर तक भी नहीं होता। पत्राचार प्रणाली विश्वविद्यालयों के लिए कामधेनू गाय की तरह हो गई है।

यहां न आधारभूत ढांचे की जरूरत है और ना ही विषयों के अध्यापकों की आवश्यकता है और प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए फीस के इक्ट्ठे हो जाते हैं। प्रति वर्ष हजारों-लाखों विद्यार्थियों को पोस्ट ग्रेजुएट बना दिया जाता है। हालांकि पत्राचार शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ उन विद्यार्थियों को परिपूर्ण बनाना था, जो अपनी उम्र या नौकरी की वजह से पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे थे।

लेकिन अब अधिकतर विद्यार्थी इसी प्रणाली पर निर्भर हो गए हैं। शिक्षा क्षेत्र में निम्न स्तर की शिक्षा नीतियां एवं कार्यशैली ने भारत की एक पूरी पीढ़ी को बेवकूफ बना दिया है, जिनके पास प्रमाणपत्र तो ऊंची से ऊंची शिक्षा के हैं, लेकिन ज्ञान के नाम पर उनके दिमाग खाली ही हैं। केन्द्रीय व राज्य स्तर पर शिक्षा के गिर रहे स्तर को सुधारने में शीघ्र ही प्रभावी निर्णय लागू करने होंगे।

सर्वप्रथम आठवीं तक फेल न करने की नीति को तत्काल हटाया जाए, इससे शिक्षकों पर जहां पढ़ाने का उत्तरदायित्व होगा, वहीं विद्यार्थी भी ढंग से पढ़ेंगे। नकल व परीक्षा परिणामों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर दण्डात्मक कार्रवाई की जानी होगी।

पत्राचार शिक्षा हालांकि उपयोगी है, लेकिन इसमें प्रवेश, शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली में सुधार करने होंगे, ताकि पत्राचार माध्यम से की जा रही शिक्षा भी अच्छे नागरिक व पेशेवर तैयार कर सके। देश की समस्त शिक्षा नीति एक समान हो एवं दुनिया के विकसित राष्ट्रों की प्रतिस्पर्धा कर सके।

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