केहरवाला का ऐतिहासिक कुआं अब लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई

Historical Well
खारियां: खंडहर हालात में गांव केहरवाला के प्राचीन कुओं का दृश्य।

ऐतिहासिक धरोहर: यूं ही रहे हालात तो चुनिंदा बुजुर्गों के बाद गांव के प्राचीन इतिहास से बेखबर हो जाएगी नई पीढ़ी | Historical Well

  • करीब 42 वर्षों तक कुएं के मीठे पानी से बुझाई है ग्रामीणों ने प्यास | Historical Well

खारियां (सच कहूँ/सुनील कुमार)। राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले गांव केहरवाला की कभी जीवन रेखा माना जाने वाला मीठे पानी का मशहूर और ऐतिहासिक कुआं (Historical Well) आज अपना अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रहा हैं। स्थिति यह है कि आधुनिकता की चकाचौंध में अधिकांश कुंआ पूरी तरह से खंडहर हो चुका है। अगर हालात यूं ही रहे तो कुछ समय बाद गांव की ऐतिहासिक धरोहर का वजूद ही मिट जाएगा। इतिहासकारों की मानें तो विक्रमी संवंत सन 1912 यानी साल 1855 की आखा तीज के दिन केहरवाला गांव बसाया गया था। उस समय यहां की जमीन आत्माराम खजान्ची (जज) के पूर्वजों के पास हुआ करती थी और ग्रामीण तालाब का बरसाती पानी प्रयोग करते थे।

करीब 70 वर्ष बाद सन 1925 में आत्माराम खजान्ची ने अपनी जमीन की सार संभाल व लोगों को बसाने के लिए अपनी जमीन पर बने एक तलाब किनारे तीन कच्चे कुंए खुदवाए। जिनमें पहला कुआं जाट व ब्राहम्ण, दूसरा कुम्हार व तीसरा मेघवाल व वाल्मीकि समूदाय के लोगों के लिए बनाए गए थे। समय के साथ पानी को मीठा रखने के लिए इसमें बरसात का पानी डाला जाता रहा। लेकिन अत्याधिक दोहन के चलते कुओं का पानी मीठे से कड़वा होने लगा। जिसके बाद वर्ष 1943 में ग्रामीण ने सर्व सहमति से दो कच्चे कुंओं को बंद कर एक पक्के कुएं का निर्माण किया गया। जिसकों ग्रामिणों ने वर्ष 1985 तक प्रयोग करने के बाद पूर्णत्या लावारिश हालात में छोड़ दिया। गांव को करीब 42 वर्षों तक अपने मीठे पानी से ग्रामीणों की प्यास बुझाने वाला कुंआ आज ग्रामिणों से अपने अस्तित्व को बचाने की बाट देख रहा है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि: बता दें कि गांव केहरवाला राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला गांव है। वर्तमान में कालांवाली से कांग्रेस विधायक शीशपाल केहरवाला का यह पैतृक गांव है। सरसा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा पर सफल नहीं हुए। 1962 में उन्होंने डबवाली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने 18865 वोट लेते हुए आजाद उम्मीदवार प्रेम चंद को 6354 वोटों के अंतर से हरा दिया। साल 1966 में हरियाणा का गठन हुआ और भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री बने। हरियाणा बनने के बाद पहली सरकार में ही केसराराम को सिंचाई उपमंत्री बनने का सौभाग्य हासिल हुआ। इससे पहले शीशपाल केहरवाला के पारिवारिक सदस्य मनीराम केहरवाला व उनके पिता केसराराम भी विधायक रहे है।

ऐसा रहा प्राचीन कुएं का सफर: प्राचीन समय में आत्माराम खजान्ची परिवार ने अपनी जमीन की सांर संभाल व लोगों को बसाने के लिए एक तालाब किनारे तीन कच्चे कुओं का का निर्माण क रवाया। जिनके बाद विक्रमी संवंत 2000 यानी वर्ष 1943 में दो कुओं को बंद कर एक पक्के कुए का निर्माण किया गया। जिसके लिए पंजावे की ईटों (पुराना भट्ठा) व चूने का प्रयोग किया गया। बताया जा रहा है कि उस समय कुएं निर्माण का कुल खर्च करीब 10,000 रूपए आया था जोकि आत्माराम खजान्ची ने अदा किया। तो वहीं इसके निर्माण कार्य में गांवासियों ने बिना मजदूरी के करीब 6 महिनों तक शारीरिक परिश्रम किया था।

वर्ष 1975 में सरपंच भगवाना राम के कार्यकाल में कुंए के पास 15 बाई 10 फुट का करीब 12 फुट ऊंचा दो मंजिला पानी का टैंक बनवाकर उसकी तीन और 14 टूंटियां व नीचे पक्की खैल निर्माण करवाया गया। वर्ष 1982 में सरपंच खेमाराम के समय ऊंटों से पानी निकालना बंद कर दिया गया व कुएं पर छोटा कमरा बनाकर उसमें लगी मोटर की सहायता से पानी निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई। गांव में नहरी पानी की स्पलाई आने पर सन 1985 में कुएं का जाल लगाकर बंद कर दिया गया। लेकिन आज भी यह कुंआ बरसात के पानी से गांव को डूबने से बचाने के काम में लिया जा रहा है।

कुएं की सार संभाल: ग्रामिणों ने कुएं की सार संभाल व पानी निकालने के लिए पंजाब के गांव मगराड़ी निवासी मुन्शीराम माली व जमीर माली को रखा था। जिनकों साल में दो बार में प्रति घर 40 किलो अनाज, ऊंटों के लिए दो बोरा (ऊंट के बालों व सूत से बना थैला) सुखा नीरा/चारा के बदले करीब 27 वर्षों तक यहां पानी निकालने का कार्य किया। वर्ष 1982 में कुएं पर मोटर लगा दी गई और अगले 3 सालों तक रूपराम गोदारा, अमर सिंह ज्याणी व नंदराम(मोटर मैकेनिक) 2 रूपए महीना प्रति परिवार मेहनताना अनुसार पानी निकालने व इसकी सार संभाल की। वर्ष 1985 में गांव में जब भाखड़ा नहर का पानी आने लगा तो लोगों ने इसके पानी का प्रयोग बंद कर दिया गया।

ऊंटों से खिंच कर निकाला जाता था पानी: इतिहासकार बताते हैं कि कुएं में पानी की गहराई करीब 80 फुट हुआ करती थी। जिसमें से पानी को सरलता से निकालने के लिए इस पर दो सतम्भ बनाए गए। जिनके बीच में एक मोटी पक्की लकड़ी का डंडा व करीब 3 फुट व्यास का लकड़ी का भूण/पहिया लगाया गया। जिसके ऊपर से चमड़े से बने 50 लीटर क्षमता वाला बोरे/लाद(थैला) को 100 हाथ(150 फुट) की लम्बी व करीब 3 इंच मोटी लाव(रस्सी) से बांधकर ऊंटों से खिंचकर बाहर लाया जाता था। जिसके बाद पानी को बड़े से हौद (पानी का टैंक) में डाला जाता जहां से नालियों के माध्यम से वो अलग अलग जातिगत आधार पर बनी खैल यानी (जमीन पर बना छोटा खुला टैंक) से केहरवाला व पड़ोस के गांव दारेवाला, मम्मड़ खेड़ा, सादेवाला व चक्कां के ग्रामीण घड़ों द्वारा पानी ले जाकर अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के उपयोग में लाते थे।

आज से तकरीबन 80 साल पहले आत्माराम खजान्ची ने ग्रामिणों के सहयोग से दो कच्चे कुएं को बंद कर एक पक्के कुएं का निर्माण करवाया था। जिसमें पंजावे की ईंटों व चूना का प्रयोग किया गया। कुएं को बनाने में करीब 6 महीने का समय व दस हजार रूपए का खर्च आया था। जिसके बाद कुछ वर्षों तक ऊंटों से पानी निकाला, बाद में इस पर मोटर लगा दी गई व साल 1985 में घरों में नहरी पानी आने से इसे पूर्णत्या बंद कर दिया गया और धीरे धीरे ग्रामिणों से ओझल होता गया।
                                                          -लाल चंद, नम्बरदार केहरवाला।

करीब 42 वर्षों तक ग्रामीणों की प्यास बुझाने वाले इस प्राचीन कुएं का इतिहास बहुत ही स्वर्णीम रहा है। आज ग्रामिणों ने उसे लावारिश अवस्था में छोड़ दिया। गांव के चंद बुजुर्गों को छोड़कर नई पीढि इसके अस्तित्व से पूर्णत्या बेखबर है। गांव की नई पंचायत से गुजारिश है कि वो इसका पुन: जीर्णोद्वार करे ताकि आने वाली पीढियां इस प्राचीन धरोहर से रूबरू रहें।
नन्दराम मांधनिया, इतिहासकार केहरवाला।

कुएं का पानी भले ही कड़वा होने लगा, लेकिन ग्रामिणों की दैनिक जरूरतों को इसने हमेशा पूरा किया। जब तक लोगों को नहर का पानी नहीं मिला तब तक ग्रामीण इसकी पूजा तक करते थे, लेकिन जैसे ही घरों में नहरी पानी ने प्रवेश किया, इसकी सार संभाल तो दूर की बात इसकी ओर जाना भी बंद कर दिया। जरूरत है अब इसकों एक प्राचीन धरोहर के रूप में संजोय कर रखा जाए।

                                                        देवी लाल, इतिहासकार केहरवाला।

गांव को बसाने में इस कुएं की अहम भूमिका रही है। लोग प्राचीन धरोहरों व इमारतों को देखने घंटों का सफर कर कोसों दूर चले जाते हैं। लेकिन गांव के इस कुएं की ओर ध्यान देना तक जरूरी नहीं समझते। आज की पीढ़ी गांव के इतिहास से रूबरू कुछ बुजुर्गों के चल बसने के बाद बिलकुल बेखबर हो जाएगी। अत: आज इसके जीर्णोद्धार की जरूरत है।

                                                              मनीराम, इतिहासकार केहरवाला।

गांव में केवल कुआं ही एक ऐसी प्राचीन धरोहर है जिसने अपने आंचल में केहरवाला का पूरा इतिहास समेट रखा है। ग्राम पंंचायत इसके अस्तित्व को बचाने के लिए पूर्णत्या प्रयासरत है।

जैसे ही पंचायत के पास प्रयाप्त बजट आ जाएगा, उसी समय इसकी साफ-सफाई व मुरम्मत का कार्य पूरा कर इसे नए परिदृश्य में ग्रामिणों को इस प्राचीन धरोहर की सौगात दी जाएगी।
सुमन देवी, सरपंच केहरवाला।

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