भारत को भूख मुक्त करने की चुनौती

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विश्व खाद्य असुरक्षा रिपोर्ट 2015 के अनुसार भारत में कुपोषण की समस्या अभी भी गंभीर बनी हुई है। यहां पर लगभग 19.46 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं और यह संख्या चीन की तुलना में 5.58 करोड़ अधिक है। संयुक्त राष्टÑ संघ की यह वार्षिक भूख रिपोर्ट खाद्य और कृषि संगठन द्वारा तैयार की जाती है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि इस वर्ष सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है।

इन लक्ष्यों में पहला लक्ष्य गरीबी और भूख को मिटाना है। विश्व में प्रत्येक चार भूखे लोगों में से एक भारत में है और भूख मिटाना देश की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इस संबंध में अन्य प्राधिकारियों के आकलन अलग-अलग हैं। अंतर्राष्टÑीय एजेंसियों द्वारा कुपोषण का आकलन जातीय विशेषताओं को ध्यान में रखे बिना किया जाता है।

जिसके कारण भारत के बारे में आंकड़े बढ़-चढ़कर सामने आते हैं। तथापि भारत में स्थिति बहुत गंभीर है और इसमें तुरंत सुधार किए जाने की आवश्यकता है और भुखमरी को समाप्त करना हमारे अपने हित में भी है।

कुपोषण के दो रूप हो सकते हैं। पहले रूप में भोजन में कैलोरी की पर्याप्त मात्रा नहीं होती है और दूसरा रूप संक्रमण है जो लिए गए भोजन में कैलोरी के प्रभाव को प्रभावित करता है। भूख और कुपोषण एक नहंी हैं। भूख के कारण कुपोषण होता है क्योंिक गरीब अपने भोजन को संतुलित नहीं बना पाता है और इसका मुख्य कारण प्रोटीन युक्त भोजन का अभाव है।

कुपोषण तथा भूख को सामान्यतया एक ही अर्थों में प्रयोग किया जाता है किंतु वे दोनों अलग-अलग हैं। कुपोषण भोजन में पोषक तत्वों का अभाव है जबकि भुखमरी में भोजन हीं नहीं मिल पाता है और इसके कारण अन्य विकृतियां पैदा हो जाती हैं।

महानगरों में लोग भव्य शादियों को देखते हैं और उनमें भारी मात्रा में खाने की बर्बादी होती है। वहीं दूसरी ओर अनेक लोगों को खाना नहंी मिल पाता है। ये दोनों साथ-साथ चलते हैं और इस विषमता को देखते हुए लगता है वास्तव में हमारा देश अतुलनीय है। कृषि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और यह रोजगार के अवसर देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है।

इसका सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15 प्रतिशत का योगदान है। भारत विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है। यहां सबसे अधिक भैसें हैं। भारत सब्जियां, फलों उत्पादन में विश्व में सबसे बड़ा देश है। इसके बावजूद देश से भूख समाप्त नहंी की जा सकती।

अनेक रिपोर्टों में कहा गया है कि विश्व में सभी के लिए पर्याप्त खाद्यान्न है। भूख का कारण गरीबी, खराब आर्थिक प्रणाली, युद्घ, जनसंख्या वृद्घि, खाद्य नीति, खराब कृषि और जलवायु परिवर्तन है। विश्व की तरह हमारे देश में भी भूख और कुपोषण का कारण अपर्याप्त उत्पादन की बजाय खाद्यान्नों पर सबकी पहुंच और खराब वितरण प्रणाली है।

भारत में भूख का एक बड़ा कारण खाद्यान्नों की बर्बादी है। तत्कालीन कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार ने 2013 में कहा था कि प्रति वर्ष लगभग 8.3 बिलियन डालर मूल्य के खाद्यान्नों की बर्बादी होती है।

भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण आस्टेÑलिया के कुल फसल उत्पादन के बराबर 21 मिलियन टन गेहूं की देश में बर्बादी होती है। संयुक्त राष्टÑ विकास कार्यक्रम ने भी खाद्यान्न क्षेत्र में बर्बादी को एक मुख्य समस्या बताया है। इसके अनुसार भारत में 40 प्रतिशत खाद्यान्न बर्बाद होते हंैं और यह मंहगाई का भी मुख्य कारण है।

हमारे देश में एक ओर खाद्यान्नों की अत्यधिक बर्बादी होती है तो एक ओर भुखमरी है। खाद्यान्नों की बर्बादी तीन स्तरों पर होती है। उत्पादन, भंडारण, परिवहन और विपणन स्थान और इन सभी स्थानों पर खाद्यान्नों की बर्बादी को रोका जाना चाहिए।

ग्लोबल फूड बैंकिंग नेटवर्क नामक संगठन की स्थापना भूख का मुकाबला करने, पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए किया गया है। इसका उद्देश्य विश्व में खाद्यान्न बैंकों की स्थापना करना है। इंडिया फूड बैंकिंग नेटवर्क ने देश को भूख और कुपोषण मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है और 2020 तक प्रत्येक जिले में एक फूड बैंक बनाने का लक्ष्य रखा है।

भारत के संदर्भ में परंपरागत मूल्यों को नजरंदाज नहंी किया जा सकता है जहां पर भूखे को भोजन कराने की परंपरा है। धार्मिक स्थानों पर मुफ्त भोजन कराया जाता है। भूख से संबंधित विकृति के कारण विश्व में करोडों लोग हमेशा संकट की स्थिति में रहते हैं। कुपोषण के शिकार अमीर और गरीब दोनों बन सकते हैं और इनसे अनेक विकृतियां होती हैं।

भूख मुक्त भारत का तात्पर्य है कि भोजन के अभाव में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए। वर्तमान आथिक और सामाजिक दशाओं में यदि राजनीतिक इच्छा शक्ति और जनता का सहयोग हो तो भूख की समस्या से निपटा जा सकता है। कठिनाई कुपोषण का मुकाबला करने में है जिसमें भोजन उपलब्ध कराने वाले और उपभोक्ता दोनों को कुछ ज्ञान होना चाहिए।

यदि लोग दो मिनट में खाना तैयार करने, अलग-अलग तरह के स्वाद आदि के प्रति आकर्षित होते हैं तो भुखमरी तो कम होगी किंतु कुपोषण बढ़ता जाएगा। भूख और कुपोषण सामान्यतया गरीबी से जुड़े हैं। हम मध्यम और उच्च वर्गों में अस्वस्थकर भोजन की आदतों के कारण कुपोषण की समस्या के प्रति उदासीन हैं।

ये लोग अस्वस्थकर खाद्य आदतों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं जिसके कारण उनमें तनाव, मधुमेह, जैसी जीवन शैली से जुड़ी बीमारियां हो जाती हैं। जबकि दूसरी ओर यदि गरीब कुपोषित बच्चों को पर्याप्त और संतुलित भोजन मिले तो वे कुपोषण से बच सकते हैं। इसलिए हम आंकड़ों पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं कर सकते हैं।

आंकड़ों का वास्तविक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। कुपोषण की प्रकृति और कारणों का अलग-अलग विश्लेषण किया जाना चािहए ताकि समुचित उपाय किए जा सकें।

-डा. एस़ सरस्वती

 

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