भारत इज्ररायल व फिलीस्तीन

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गुट निरपेक्ष भारत के प्रधानमंत्री ने दुनिया भर में कृषि, चिकित्सा, सिंचाई व सैन्य साजोसमान के लिए प्रसिद्ध इज्ररायल की यात्रा कर कई अहम समझौतों पर अपने हस्ताक्षर किए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तल अवीव में इज्ररायल के प्रधानमंत्री की ओर से जिस तरह गले मिलकर व हिंदी में ‘आपका स्वागत है’ जैसे शब्दों से अभिनंदन किया गया उससे वैश्विक स्तर पर इन देशों के रिश्तों की धूम मच गई है।

इज्ररायल-फिलीस्तीन टकराव पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की समझ रखने वाले विद्वान भारत के इस कदम को अमेरिका परस्ती करार देकर भारत की गुटनिरपेक्ष छवि को आघात पहुंचने की बात कर रहे हैं।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा का महत्व भारत व इज्ररायल की व्यक्तिगत छवियों पर अलग-अलग है। भारत के लिए इज्ररायल महज फिलीस्तीन का विरोधी राष्ट्र व अमेरिका का मित्र राष्ट्र नहीं है अपितु विज्ञान के क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा देने वाला राष्ट्र है। छोटे हो रहे लेकिन तेजी से बदल रहे विश्व में भारत के लिए

इज्ररायल जैसे देशों से दूर रहना संभव नहीं, खासकर इन परिस्थितियों में जब पूरे एशिया की कृषि की हालत बेहद बदत्तर हो चुकी हो। दूसरी ओर इज्ररायल के लिए भारत से संबंधों का दोहरा महत्व है।

इज्ररायल विकासशील देशों को एक बड़े बाजार के तौर पर देख रहा है। दरअसल इज्ररायल व फिलीस्तीन के भूगोलिक टकराव को यहुदियों एवं मुस्लिम धर्मों के मध्य टकराव के रूप में देखा जा रहा है।

जबकि सच्चाई यह है कि मिस्त्र, जार्डन एवं अरब के कई राष्ट्र ने इज्ररायल के साथ बहुत अच्छे संबंध बना लिये है जोकि पहले इज्ररायल के साथ धर्म की दृष्टि से शत्रुभाव रखते आ रहे थे। अत: भारत-इज्ररायल निकटता पर दुनिया को भला क्या हैरत हो सकती है। इज्ररायल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का फिलीस्तीन नहीं जाना, फिलीस्तीन का विरोध नहीं है।

भारत की सांस्कृतिक विशेषता रही है कि इसने हर देश से कुछ न कुछ सीखने का सदैव प्रयत्न किया है। यहां तक कि आपदा के वक्त भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान को सहायता देने का प्रस्ताव भी रखता है जबकि दोनों देशों में अपने बंटवारे के वक्त से ही शत्रुता जैसा रिश्ता चला आ रहा है।

भारत यदि इज्ररायल के साथ द्विपक्षीय रिश्ते रखता है एवं दोनों देश सूचना तकनीक, चिकित्सा, कृषि, विज्ञान आदि क्षेत्रों में आदान-प्रदान करते हैं तब बाकी विश्व को भला इस पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए।

भारतीय प्रधानमंत्री ने अरब देशों के साथ भी अपने रिश्ते मजबूत किए हैं। यहां तक कि आतंकवाद जिसका कि आजकल चेहरा इस्लामी हो रखा है पर भी अरब देशों का सहयोग हासिल किया है। विश्व संदर्भ में भारत-इज्ररायल दोस्ती किसी दूसरे के संबंधों की तिलांजलि नहीं है।

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