चीन के सामने कमजोर नहीं भारत

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सिक्किम में चल रहे सीमा विवाद के बीच चीन के उस बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जिसमें वह भारत को इतिहास से सबक लेने की बात कह रहा है। बेशक भारत चीन के साथ एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है और प्रगाड़ आर्थिक संबंधों के मद्देनजर सैनिक संघर्ष अक्सर को नेपथ्य में रख दिया जाता है, लेकिन चीन की सीमा विस्तार की नीति एवं अविश्वास के इतिहास को देखते हुए भारत को हमेशा अपने पड़ोसी ड्रेगन से सतर्क रहने की आवश्यकता है।

दरअसल भारत चीन के बीच हालिया विवाद की शुरूआत तब होती है, जब चीन यह दावा करता है कि भारत ने डोकलाम सेक्टर के जोम्पलरी इलाके में 4 जून को सड़क निर्माण कर रहे उसके सैनिकों को रोक दिया और उनके साथ हाथापाई भी की। इसके बाद अगले दिन चीनी सैनिकों ने भूटान की सीमा में स्थित भारत के दो अस्थाई बंकर गिरा दिए।

इस पूरे मामले के चलते हालात इस वक्त इतने तनावपूर्ण हैं कि दोनों देशों के करीब 1000-1000 सैनिकों ने इस इलाके में डेरा डाल लिया है। भारत इस तथ्य को भी नजर अंदाज नहीं कर सकता कि इस पूरे घटना क्रम को चीन की मीडिया बहुत आक्रामक रूप से प्रस्तुत कर रही है। वहां के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने तो चीनी सरकार को भारत को सबक सिखाने तक की सलाह दे डाली है। किसी भी सैनिक टकराव की सम्भावना के चलते भारतीय सेना की 17वीं डिवीजन के जनरल आॅफिसर कमांडिंग खुद इस मामले को देख रहे हैं।

दरअसल भूटान के साथ भारत का समझौता होने के कारण उसकी संप्रभुता की जिम्मेदारी भारत की ही है और डोकलाम पठार का क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यह वही क्षेत्र है जहां पर भारत, चीन और भूटान की अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं आपस में मिलती हैं और भूटान की चुम्बी घाटी भी यहीं स्थित है।

चुम्बी घाटी ही वह इलाका है, जहां से पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाले इलाके के रूप में सिलीगुड़ी ही एक मात्र संकरी पट्टी है। यानी अगर इस इलाके पर चीन का कब्जा हो गया, तो वह बड़ी आसानी से पूर्वोत्तर को शेष भारत से काट सकता है। चुम्बी घाटी से भारत की यह दुखती रग महज 50-60 किलोमीटर ही दूर है।

भारत नहीं चाहता है कि चीन डोकलाम क्षेत्र में सड़क निर्माण के जरिये अपनी स्थिति मजबूत करे, क्योंकि डोकलाम के पठार पर चीन की मजबूत स्थिति भूटान और भारत दोनों ही देशों की संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती है। यही वजह है कि भारतीय सेना इस घटना पर पूरा एहतियात और चौकसी बरत रही है।

दरअसल चीन की आक्रामकता थोड़ा परेशान जरूर कर रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत चीन के सामने कमजोर पड़ता दिख रहा है। चीन जिस 1962 के परिणामों की बात कर रहा है, भारत अब वो नहीं हैं।

देश के रक्षामंत्री अरुण जेटली भी इसी बात की तस्दीक कर रहे हैं कि भारत अब 2017 का भारत है। जहां एक ओर भारत सामरिक दृष्टि से मजबूत है, वहीं भारत के आर्थिक सम्बन्ध चीन के साथ इतने प्रगाढ़ हो गए हैं कि चीन भारत के साथ सैनिक संघर्ष करके अपनी आर्थिक कमर नहीं तोड़ सकता। चीन भारत का सबसे बड़ा आयातक देश है और भारत का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा भी चीन के साथ ही है।

चीन को अपने सस्ते और घटिया उत्पाद बेचने के लिए भारत से अच्छा बाजार भी नहीं मिलेगा। भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा सिर्फ साढ़े तीन प्रतिशत ही होता है, जबकि आयात में यह हिस्सा 15 प्रतिशत से भी अधिक है।

भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होने के नाते चीनी उत्पाद के आयात पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकता, लेकिन युद्ध जैसी किसी भी टकराव की स्थिति में भारत चीन पर प्रतिबन्ध लगा सकता है।

इसलिए चीन को सिर्फ इसलिए नहीं इतराना चाहिए कि उसकी सैन्य संख्या भारत से अधिक है।यह सच है कि भारत एक परमाणु संपन्न देश है और मिसाइल टेक्नोलॉजी में भी भारत अब बहुत आगे बढ़ चुका है। हमारे पास उच्च तकनीकि इंटर बैलिस्टिक मिसाइल भी हैं जोकि किसी भी आपात स्थिति में भारत की रक्षा करने में समर्थ हैं।

चीन को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर भारत के पड़ोस में पाकिस्तान और चीन है, तो चीन के पड़ोस में भी भारत के दो मित्र राष्ट्र रूस और जापान हैं जिनके साथ चीन के सम्बन्ध बेहतर नहीं हैं। भले ही चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को रोककर भारत को सख्त सन्देश दिया हो, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह की बचकाना हरकतों से चीन का पर्यटन ही प्रभावित होगा

और भारत में भी बुद्धा सर्किट के चलते बढ़ी संख्या में चीनी पर्यटक धार्मिक दृष्टिकोण से भारत आते हैं। हांलाकि भारत चीन के प्रति किसी भी विवाद को सांझा वार्ता के मंच पर सुलझाने का प्रयास करता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रूस यात्रा में कहा था कि दुनिया पहले के मुकाबले कहीं अधिक नजदीक आ गई है।

एक-दूसरे पर निर्भरता और बढ़ गई है तथा इस बदलाव ने सीमा विवाद के बावजूद भारत और चीन के लिए यह आवश्यक बना दिया है कि वे व्यापार एवं निवेश में सहयोग करें। प्रधानमंत्री ने जिक्र किया था कि यह सच है कि चीन के साथ हमारा सीमा विवाद है।

लेकिन पिछले 40 साल में सीमा विवाद में एक भी गोली नहीं चली है। भारत की शांतिपूर्ण विवाद निपटारे की इस पहल को चीन को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यद्यपि भारत विवाद को शांति पूर्ण तरीके से ही निपटाना चाहता है, परन्तु वह किसी भी स्थिति से निपटने में पूर्ण समर्थ है।

-पार्थ उपाध्याय

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