मालिक को पाने के लिए आत्मविश्वास जगाना जरूरी

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सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सत्संग एक ऐसी जगह होती है, जहां ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की चर्चा होती हो, जहां पे इन्सान आकर बैठे तो उसे अपने मालिक, परमपिता, परमात्मा की याद आए, खुद में क्या गुण हैं, क्या अवगुण हैं, उनका पता चले, भगवान के लिए रीत क्या है, सही रास्ता और कुरीत यानि गलत रास्ते कौन से हैं, इसका पता चले।

सत् का मतलब है भगवान और उसकी चर्चा, जहां रीत-कुरीत का पता चले वो संग यानि साथ। मालिक को पाने के लिए इन्सान को अपने अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहिए।

सत्संग में मालिक के बारे में पता चलता है कि उसके अरबों नाम हैं, पर वो एक है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जिस प्रकार पानी का नाम बदल देने से पानी का स्वाद या रंग नहीं बदलता।

समाज में बहुत-सी भाषाएं हैं, किसी भी वस्तु का नाम अलग भाषा में हो जाने से उस वस्तु के गुणों में परिवर्तन नहीं आता, तो सोचने वाली बात है कि भगवान का नाम बदल जाने से भगवान में अंतर कैसे आ जाएगा? वो एक है, एक था और एक ही रहेगा। आप जी फरमाते हैं कि मालिक को पाने के लिए इन्सान को अपने अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहिए।

जैसे-जैसे आपके अंदर आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा, भगवान मिलेगा। यह आत्मबल रुपए-पैसे, कपड़े-लत्ते से, किसी भी और तरीके से नहीं बल्कि आत्मिक चिंतन से ही आत्मबल बढ़ा करता है।

आत्मिक चिंतन के लिए मैथड है, जिसे हिंदू धर्म में गुरुमंत्र, इस्लाम धर्म में कलमा, सिख धर्म में नाम शब्द कहते हैं और इंग्लिश फकीर दी गॉडस वर्ड या मैथड आॅफ मेडिटेशन कहते हैं। भाषा अलग है, लेकिन मतलब एक ही है।

आत्मबल को जगाने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसका नाम है मालिक का मूलमंत्र। जैसे आप सब बैठे हैं। आदमी-आदमी कहने से कोई नहीं उठेगा, लेकिन नाम लेकर बुलाएं तो झट से खड़े हो जाओगे, उसी तरह उस ओंकार का नाम है। उस नाम से उसे बुलाएंगे, तो वो जरूर सुनेगा।

 

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