haryana day 2022 : हरियाणवीं कला व संस्कृति को संजीवनी देने में जुटे रघुवेन्द्र मलिक

haryana day 2022
  • आधुनिकता में पौराणिकता को जीवित रखने का है जुनून | haryana day 2022
  • हरियाणवीं, हिन्दी सिनेमा में भी रघुवेन्द्र मलिक का रहा है जलवा

सच कहूँ/संजय मेहरा
गुरुग्राम। हरियाणवीं (haryana day 2022 ) पहनावा, खेती-बाड़ी और सजावट का सामान, बर्तन, दैनिक उपयोग की वस्तुएं और न जाने कितना ही सामान आज हमारे सामान्य जीवन से लुप्त हो गया है। हरियाणवी कला और संस्कृति को जीवित रखने के प्रति दीवानगी और जुनून से रघुवेन्द्र मलिक ने एक-एक वस्तु को सहेज कर रखा है। ऐसा इसलिए ताकि वे आने वाली पीढ़ियोंं को बता-दिखा सकें कि हमारे पूर्वज इन चीजों का इस्तेमाल करते थे। वे इसके लिए एक संग्रहालय बनवाने के लिए भी प्रयासरत हैं। सोनीपत जिले के गांव रिवाडा में 23 अक्तूबर 1952 को जन्में रघुवेन्द्र मलिक (रघु) बताते हैं कि हमारी हरियाणवी कला और संस्कृति बहुत ही खूबसूरत रही है।

आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की आंधी में कहीं न कहीं हमने उसे पीछे धकेल दिया है। बात करें हरियाणवी परिधानों की तो वे फैशन का रूप लेकर आगे आए हैं। 51 गज का दामण अब लाइट वेट (कम भार) के घाघरे में सिमटकर रह गया है। जो कार्यक्रम में मंचों पर कलाकारों द्वारा पहना जाता है। रघुवेन्द्र मलिक का कहना है कि उन्होंने हरियाणा की एक-एक उस वस्तु को सहेजने का प्रयास किया है, जो दैनिक जीवन में उपयोग की जाती थे। उनके पास उस समय उपयोग में आने वाला रसोई का सामान, पशुओं को सजाने का सामान, कृषि में उपयोग होने वाला सामान, महिलाओं, पुरुषों, बच्चों के परिधान समेत अनेक वस्तुओं को सहेजकर रखा हुआ है।

पुराने समय में उपयोग होने वाले सामान के नाम पीतल व मिट्टी की परात, डोई, दरांत, रोटी रखने के लिए बोहिया, पलिए, रई, कुंडी, सिप्पी, लौटा, कटोरदान, छाज, छालणी, मूसल, ऊखल, हारी, चमड़े की बाल्टी, तेल रखने की तेलड़ी, दीपदान, दीए, लोढणी, खड़ाऊ, पशुओं के मुंह पर लगाने वाला छिक्का, तराजू के बाट, खुरपा-खुरपी, तुम्बा, खुरेहरा, तोरण, ताले, बीजणा, ईंट पाथने के फरमे, ठप्पे, लालटेन, डोल आदि सामान अब सामान्य घरों में नजर नहीं आता।

तब त्यौहारों पर पशुओं को भी सजाते थे

पशुओं को भी दिवाली के मौके पर विशेष तरीके से सजाया जाता था। उनके लिए घुंघरू, घंटियां व अन्य कई सजावट का सामान होता था। खुद के साथ पशुओं को भी सजाने की यह परम्परा आज नहीं रही। पशु प्रेम जो पहले होता था, वह अब नजर नहीं आता। आज तो दूध ना देने वाले पशुओं गाय-भैंस को सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। खेतों के उपकरण कुल्हाड़ी, दो सिंगा-चार सिंगा जेली, गंडासी, हालस, सांटा, जुआ, फरसा, गोपिया, नकेल, हल, हलस, कात, फाली समेत न जाने कितना ही सामान है, जिसे आज की पीढ़ी को कोई ज्ञान नहीं है। यह सब सामान रघुवेन्द्र मलिक के पिटारे में है। सबसे खास बात यह है कि यह सारा सामान मशीनों में नहीं, बल्कि हाथों से बनाया जाता था। किसी को लोहार बनाते थे तो किसी को किसान खुद ही बना लेते थे।

महिलाओं की हस्तकला भी नायाब

घर और खेत में परिवार की धुरी रहने वाली महिलाएं सिर्फ चूल्हा-चौका तक सीमित नहीं थीं, बल्कि वे समय निकालकर अलग-अलग तरह की सजावट का सामान भी तैयार करती थी। घाघरा, सितारों वाली ओढणी, झुगला-टोपी, बटुए, बिंदरवाल, मोड़, तागड़ी, ईंढी, खेस, खरड़, पालना, दरी, पीढे-मुड्ढे, थैली, बिजंडी समेत कई तरह का सामान हाथों से तैयार करके वे कशीदाकारी को नया रूप देती थी। पौराणिक वाद्य यंत्रों की बात करें तो सारंगी, ग्रामोफोन, नगाड़ा, बीन, बांसली, डफ, ताशा, डैरू, तुम्बा जैसे देसी यंत्रों की सुरीली धुनें सुकून देती थी। बच्चों के लिए खिलौनों की श्रृंखला में रघुवेन्द्र मलिक के वार्डरोब में लट्टू, फिरकी, झुनझुने, गुड्डे-गुडिया के अलावा बड़ों के चौपड़, मोहरें आदि भी पौराणिकता को प्रदर्शित कर रहे हैं।

अपने घर में कला का खजाना रखते हैं मलिक

हरियाणवी लोक कला मंच के माध्यम से हरवेन्द्र मलिक ने उन सब वस्तुओं को सहेज, संवारकर रखा है, जो कभी हमारी संस्कृति का हिस्सा होती थीं। कला का नायाब नमूना इनमें है। विशेषकर हस्तकला में रघुवेन्द्र मलिक चाहते हैं कि इन सब वस्तुओं को युगों-युगों तक सुरक्षित रखने के लिए संग्रहालय बनाया जाना चाहिए। कई सरकारें आर्इं व गई। नेताओं, मंत्रियों ने संग्रहालय बनवाने के खूब आश्वासन भी दिए, लेकिन किसी ने इस काम के लिए कदम नहीं बढ़ाया। इसलिए ये सभी वस्तुएं उनके घर में ही रखी हैं। हां, समय-समय पर वे इन सब वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाकर पुरानी पीढ़ी की यादें ताजा कराते हैं और नई पीढ़ी को बताते हैं कि यह सब सामान हमारे जीवन का हिस्सा रहा है।

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सेहत के लिए फायदेमंद थी हमारी संस्कृति

हरियाणा में चाहे खेती-बाड़ी हो, घरेलू कामकाज हो या फिर रसोई में उपयोग होने वाले बर्तन आदि हों, सभी का जुड़ाव हमारी सेहत से होता था। उस समय का खान-पान हमारे स्वास्थ्य को खराब करने की बजाय हमें सेहतमंद बनाता था। खेतों और घरों में काम करते महिलाएं, पुरुष, बच्चे, युवा सभी कद-काठी से मजबूत बनते थे। यही ठीक है कि समय के साथ चलना चाहिए, लेकिन दैनिक उपयोग में हम अपनी उन वस्तुओं को ना छोड़ें जो हमारे लिए फायदेमंद हों। सुख-सुविधाओं को भोगने के चक्कर में हमने कठिन परिश्रम करना ही छोड़ दिया है। यह बीमारियों का भी बड़ा कारण है। महिलाओं का चक्की चलाना और पुरुषों का खेतों में बैलों के साथ कदमताल करके जाना होता था। इससे उनकी शारीरिक मजबूती होती थी। आज ये दोनों ही काम नहीं होते। किसान-जमींदार भी ज्यादा दूरी तक पैदल चलने की बजाय अब मोटरसाइकिल या ट्रैक्टर पर निर्भर हो गए हैं।

आ सुण ले मेरा ठिकाणा रै इस भारत में हरियाणा…

रघुवेन्द्र मलिक ने म्यूजिक वीडियो-आ सुण ले मेरा ठिकाणा रै इस भारत में हरियाणा और हरियाणा सरकार की ओर से मुर्राह नस्ल की भैंस पर बनवाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म-जिसके धोरै मुर्राह उसका लाम्बा तुर्रा में भी मुख्य भूमिका निभाई। इसके अलावा हरियाणा कॉ-आॅपरेटिव विभाग की ओर से मछली पालन रोजगार का उत्तम साधन, सहकारिता की भावना सुंदर भविष्य का कामना और वीटा की ओर से बनवाई गई फिल्म-देसां मैं देस हरियाणा जित वीटा दूध-दही का खाणा में भी उनका विशेष भूमिका रही। हाल ही में उनकी फिल्म दादा लख्मी रिलीज होगी।

हरियाणवी पृष्ठभूमि पर फिल्म नंगे पांव भी आने वाली है। अनफेयर एंड लवली फिल्म में उन्होंने काम किया है। हरियाणवी संस्कृति को आगे बढ़ाने में रघुवेन्द्र मलिक सदा आगे रहते हैं। हर मंच पर वे हरियाणवीं को प्रमोट करते हैं। वर्ष 1989 में उन्होंने मुंबई में अपना उत्सव नाम समारोह में हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया। अनेक पुरस्कारों से उन्हें देश-प्रदेश में सम्मानित किया जा चुका है। रघुवेन्द्र मलिक पेयजल देने वाली नहरों में प्लास्टिक या अन्य सामग्री न डालने के लिए सुनो नहरों की पुकार मिशन के माध्यम से लोगों को जागरुक करते हैं।

राष्ट्रपति से भी सम्मानित हो चुके हैं मलिक

भारत के राष्ट्रपति रहे अब्दुल कलाम, फिजी के प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी जब रोहतक में आए तो रघुवेन्द्र मलिक ने उन्हें हरियाणवी संस्कृति से रूबरू कराया। उनके संग्रह की खूब सराहना की। खानपुर विश्वविद्यालय में जब भी विदेशी मेहमान आए, उन्हें हरियाणा के जनजीवन को रघुवेन्द्र मलिक ने दिखाया। रोहतक में वर्ष 1985 से तीज मेले भी लगाते आ रहे हैं। रघुवेन्द्र मलिक ने रामायण व महाभारत को हरियाणवी भाषा में डब किया था। वे नॉर्थ जोन कल्चरल सेंटर पटियाला की गवर्निंग बॉडी के सदस्य, राज्य कल्चरल अफेयर के सलाहकार रहे और हरियाणा टूरिज्म राई में बसाए गए म्हारा गांव के सलाहकार भी रहे।

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