जंगली जानवरों की संभाल

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गुरुग्राम में एक तेंदुआ मारूति-सजूकी फैक्टरी में दाखिल हो गया। बेशक तेंदुए ने कोई जानी नुक्सान नहीं किया, किन्तु ऐसे मामलों का दोहराव नुक्सान होने का डर रहता है। एक तरफ, जानवर लोगों की जान ले सकता है, दूसरी तरफ, घबराए हुए लोग ऐसे दुर्लभ जानवरों को बेसमझी कारण मार देते हैं। इसी वर्ष अप्रैल में भी गुरुग्राम के एक गांव में एक तेंदुए ने कई व्यक्तियों को घायल कर दिया था।

कई घटनाओं में अज्ञात लोगों ने तेंदुए को पकड़ने के चक्कर में पूरी चौकसी नहीं दिखाई व जानवर मारा गया। तेंदुए देश का लुप्तप्राय जानवर हैं, जिन्हें बचाने के लिए सरकार अरबों रुपये खर्च कर रही है। वन-विभाग इस दिशा में कई योजनाएं बना चुका है। दरअसल सैंचुरियों की तारबंदी कम होने, कर्मचारियों के अभाव व भूख के चलते तेंदुए आबादी वाले क्षेत्रों में दाखिल हो जाते हैं।

बाघ व तेंदुओं को बचाने के लिए विभाग को गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। आखिर इस तरह की घटनाओं से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता? यह जानवर लाखों की तादाद में तो नहीं कि इन्हें संभालने के लिए लाखों की सेना चाहिए। देश में जंगलों का क्षेत्रफल भी इतना ज्यादा नहीं रहा, फिर भी वन विभाग अपने काम में क्यों नाकाम है?

इससे पहले बाघों की खाल की तस्करी भी चर्चा में रही है। तस्करों ने खाल बेचकर मोटा पैसा कमाया है। तेंदुए व अन्य जंगली जानवरों को बचाने के लिए जहां इनकी सुरक्षा के लिए पुख्ता प्रबंध करने की जरूरत है, वहीं जंगलों के नजदीक रह रहे लोगों को जंगली जानवरों से सुरक्षा के ढंग व जानवरों को बिना नुक्सान पहुंचाए पूरी सावधानी से प्रशिक्षण देने की जरूरत है।

 

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