जीएसटी से जुड़ी शंकाएं दूर करे सरकार

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एक जुलाई से पूरे देश में जीएसटी यानि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू होगा। इसके लिए अब केवल 13 दिन का समय बचा है। फिर भी व्यापारियों में जीएसटी को लेकर डर बना हुआ है। जीएसटी को जमीनी तौर पर लागू करवाने के लिये शासन-प्रशासन स्तर पर युद्धस्तर पर तैयारियां पूरे उफान पर हैं।

वहीं देश भर में व्यापारिक संगठन जीएसटी का विरोध ये कहते हुए कर रहे हैं कि अभी तक उसकी दरों तथा संबंधित कार्यप्रणाली को लेकर जबरदस्त अनिश्चितता है। सरकारी तौर पर बैठकों, परिचर्चाओं, संगोष्ठियों और विज्ञापनों के माध्यम से जीएसटी को लेकर फैली तमाम आंशकाओं के निवारण के प्रयासों के बावजूद व्यापारियों के एक बड़े समूह में जीएसटी को लेकर शंकाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।

ये सकारात्मक संदेश और अच्छी बात है कि जीएसटी काउंसिल ने लोगों की भावनाओं को समझते हुए दरों में संशोधन करने की प्रक्रिया अपनाया है। प्रारंभ में जो दरें और औपचारिकताएं घोषित हुईं वे अपेक्षा के विपरीत अधिक तो थीं ही उनकी वजह से व्यापार-उद्योग जगत को आने वाला समय झंझटों से भरा नजर आने लगा।

जीएसटी को लेकर अभी भी जो भ्रांतियां और अनिश्चितता है वह काबिले गौर है। विभिन्न चीजों पर लगाई गई जीएसटी की दरों को यदि जबरन थोपा गया तब बजाय फायदे के उससे नुकसान हो सकता है इसी तरह जीएसटी के कारण यदि हिसाब-किताब की नई-नई दिक्कतें सामने आर्इं, तब व्यापार उद्योग-जगत इसका वैसा समर्थन नहीं करेगा जैसी उम्मीद लगाई जा रही थी।

उद्योग जगत तो जीएसटी को लेकर तटस्थ नजर आ रहा है, किन्तु छोटे और मध्यम श्रेणी के व्यापारियों में इस बात का भय व्याप्त है कि महीने भर में तीन बार रिटर्न भरने की झंझट से उनका समय उसी में चला जाएगा। छोटे-छोटे व्यवसायी जो अपना हिसाब-किताब स्वयं तैयार करते हैं, इस बात को लेकर परेशान हैं कि उन्हें मुनीम या अकाउंटेंट की सेवाएं लेनी पड़ेंगी, जिससे खर्च बढ़ेगा। विभिन्न उत्पादों पर अलग-अलग जीएसटी की दरें भी व्यापारी वर्ग को चिंता में डाल रही हैं।

वर्तमान में व्यापारी वैट वगैरह की जो विवरणी भरता है, वे मासिक या त्रैमासिक होती हैं। महीने भर में तीन विवरणी भरना तथा दिन भर की बिक्री का बारीक हिसाब रखना निश्चित रूप से व्यवहारिक परेशानी तो है। बड़े प्रतिष्ठान तो स्थायी अकाउटेंट रखती हैं परन्तु अधिकतर छोटे व्यापारी पूर्णकालिक अकाउंटेट नहीं रखते जो जीएसटी लागू होने के बाद जरूरी हो जाएगा।

सरकार ये प्रचारित कर रही है कि जीएसटी से अधिकतर उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती हो जायेंगी। व्यापारी को लग रहा है कि ऐसी वस्तुओं का जो स्टक उसके पास है, उसकी बिक्री पर होने वाले घाटे की पूर्ति कैसे होगी? यही वजह है कि बीते एक-डेढ़ महीने से उपभोक्ता बाजार में ठंडापन है। व्यापारी मौजूदा स्टॉक खत्म करने में लगा है। खुदरा महंगाई की दर घटकर 2.18 प्रतिशत आ जाने की वजह भी उपभोक्ता बाजार में हलचल नहीं होना ही है।

अभी तक बहुत बड़ा वर्ग ये मानकर चल रहा था कि जीएसटी इस वर्ष शायद ही लागू हो पाएगा। इस कारण बहुतों ने तो उसके लिये पंजीयन तक नहीं कराया। यूं भी आम भारतीय का चरित्र ऐसी बातों में आखिरी वक्त तक इंतजार करने तथा प्रचलित व्यवस्था में किसी भी तरह के बड़े बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं करने का है।

यही वजह है कि समूचा व्यापारी वर्ग जीएसटी को टलवाने के लिये प्रयासरत है। केन्द्र सरकार इसे एक जुलाई से लागू करती है या एक सितंबर से इसे लेकर व्याप्त अनिश्चिताव अभी खत्म नहीं हुई है। सरकार भी जानती है कि यदि उसने अपनी तरफ से तिथि बढ़ाने का संकेत अभी दे दिया तो व्यवसायी वर्ग फिर ठंडा पड़ जाएगा।

जीएसटी को लागू करना निश्चित रूप से टेढ़ी खीर है। पूरे देश में एक सी कर प्रणाली लागू करना आसान बात नहीं होगी। भारत में बिना बिल के होने वाला व्यापार भी बहुत बड़ा है। ऐसे व्यापारी हिसाब-किताब रखेंगे ये उम्मीद शत-प्रतिशत सफल शायद ही हो परन्तु सरकार का ये सोचना गलत नहीं है कि एक बार ज्योंही जीएसटी पूरी तरह लागू हो जाएगा

त्योंही उसका राजस्व बढ़ेगा तथा कर चोरी पर भी काफी हद तक लगाम लग सकेगी। लेकिन फिलहाल जो स्थिति है उसमें व्यापारी जगत सरकार के इस कदम के विरुद्ध खड़ा नजर आ रहा है, तो उसकी वजह मात्र वे झंझटें हैं, जिनके कारण छोटे व मझोले किस्म के व्यवसायी बेवजह उलझकर रह जायेंगे।

यद्यपि कुछ मामलों में काउंसिल तथा वित्त मंत्री अरूण जेटली अभी तक काफी सख्त बने हुए हैं, परन्तु चारों तरफ से पड़ रहे दबाव के चलते जीएसटी को सरल और उपयोगी बनाने की कोशिश हो रही है। उधर बैकिंग उद्योग ने भी 1 जुलाई तक जीएसटी की कार्यप्रणाली से सामंजस्य बिठाने लायक तैयारी नहीं होने के नाम पर इसे आगे खिसकाने की मांग की है।

बंगाल सहित कुछ राज्य भी ऐसा चाह रहे हैं। ये देखते हुए बजाय जल्दबाजी करने के सरकार पूरी तैयारी करने के बाद उसे लागू करे तभी उचित रहेगा वरना नोटबंदी को लेकर आई अव्यवहारिक अड़चनों जैसी स्थिति दोबारा बन सकती है। सरकार को भी व्यापारियों की समस्याओं का आभास है।

इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के सचिव हंसमुख अढिया पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जीएसटी की तैयारियों और जीएसटी सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए व्यापारियों के साथ बैठक की। इस बैठक में तमाम व्यापारी आए थे, जिन्होंने अपनी समस्याएं रखीं। बैठक में कई और जिले के लोग शामिल थे। कारोबारियों ने जीएसटी लागू होने की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की है। बैठक में अढ़िया ने व्यापारियों की समस्याएं सुनीं और उसके हल भी बताए।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये एक ऐसा टैक्स है जो टैक्स के भारी जाल से मुक्ति दिलाएगा। जीएसटी आने के बाद बहुत सी चीजें सस्ती हो जाएगी, हांलाकि कुछ जेब पर भारी भी पड़ेंगी। लेकिन सबसे बड़ा फायदा होगा कि टैक्स का पूरा सिस्टम आसान हो जाएगा। 18 से ज्यादा टैक्सों से मिलेगी मुक्ति और पूरे देश में होगा सिर्फ एक टैक्स जीएसटी।

अच्छा हो केन्द्र सरकार इस बारे में समुचित विचार-विमर्श कर व्यापार जगत की वाजिब मांगों को समय रहते स्वीकार कर तत्संबंधी संशोधन करे। यदि उसे लगता है कि व्यापारी वर्ग की शंकाएं निराधार हैं तब उन्हें दूर करना भी उसी की जिम्मेदारी है। यदि सरकार और व्यवसायी के बीच अविश्वास बना रहा तब जीएसटी जिस उद्देश्य से लाया जा रहा है वह पूरा नहीं होगा और उस स्थिति में मोदी सरकार जिस निर्णय को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मान रही है वह उसकी विफलताओं में शामिल हो जाएगा।

भाजपा को भी जीएसटी का मसला केवल सरकार की मनमर्जी पर छोड़कर शान्त नहीं बैठना चाहिये क्योंकि जिस व्यवसायी वर्ग को ये व्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित करने वाली है वह पार्टी का परंपरागत समर्थक रहा है। वर्तमान वातावरण का यदि निष्पक्ष आकलन करें तो व्यापार जगत में भाजपा को लेकर पहले सरीखा लगाव नहीं रहा।

अच्छा तो यही होगा कि बचे हुए दो हफ्ते में केन्द्र सरकार और जीएसटी काउंसिल बारीकी से अध्ययन कर जो विसंगतियां और कमियां रह गईं हों उन्हें दूर कर लें। जीएसटी मोदी सरकार का महत्वाकांक्षी निर्णय है।

जरा सी चूक होने पर कभी-कभी अच्छा उपाय भी समस्या बन जाता है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी बेहद असंदिग्ध हो किन्तु कारोबारी जगत अब तक उनकी सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं है। भाजपा नेतृत्व को चाहिए वह व्यापारियों और जनता की भावनाओं को समझकर सरकार तक पहुंचाए वरना 2019 में इंडिया शाईनिंग जैसा आश्चर्य हो सकता है।

-आशीष वशिष्ठ

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