कृषि संकट के लिए सरकार व किसान गंभीर होें

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खेतों की हरियाली में मस्त रहने वाला किसान आजकल सड़कों पर धरना देने को मजबूर है। आजादी के बाद हरित क्रान्ति आने से देश के अनाज के भंडार तो लबालब भर गए, लेकिन किसान समस्याओं में घिरता चला गया। कर्जदार किसान आत्महत्याओं पर उतर आया व अब देश में माहौल यह है कि कर्ज माफी को ही कृषि संकट के हल के तौर पर पेश किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश की घटनाओं ने पूरे देश में किसान, कर्ज व कृषि संबंधी चर्चा छेड़ दी है। केन्द्र ने कृषि मंत्री व मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री द्वारा किसी भी हालत में कर्ज माफ न करने के बयानों से मामला उलझता जा रहा है, लेकिन कृषि संकट सिर्फ कर्ज माफी से हल होता नजर नहीं आ रहा । इस संकट के हल के लिए किसानों को मंहगी हो रही कृषि के चक्रव्यूह से निकलना जरूरी है।

ट्रैक्टर व अन्य कृषि यंत्रों की आसमान छूती कीमतों ने किसानों को कर्जदार बना दिया है। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के यह विचार दमदार हंै कि निजी बैकों के किसानों को धड़ाधड़ कर्ज वितरित करने के रूझान ने किसानों को कर्ज की दलदल में फंसा दिया है। बैंक अधिकारी अपने टारगेट पूरे करने के लिए कर्ज वापिस होने की आय देखें बिना व जरूरत से कहीं अधिक कर्ज देते रहे।

इसके साथ ही किसानों द्वारा अधिक के लालच में कीटनाशकों व खादों का उपयोग कृषि विशेषज्ञों की राए जाने बिना किया गया, जिस कारण जमीन, पानी व हवा तो प्रदूषित हुई ही साथ में किसान शारिरीक तौर पर बेहाल हो गया। सरकार संकट में पड़े किसानों को कर्ज जरूर माफ करे लेकिन किसानों को खुद भी इस संकट से अपनी जिम्मेवारियों को स्वीकार करना चाहिए व इनके हल के लिए सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है।

बिना शक आधुनिक दिखावे वाले पश्चिमी सभ्याचार ने छोटे किसानों को खखर्चीले सामाजिक कार्यक्रमों के भंवर में फंसा रखा है। भारी खर्चाें वाली शादियों ने भी किसानों को कर्जदार करने में अहम भुमिका निभाई है। सख्त मेहनत की जीवन शैली त्याग कर नौकरों व मशीनरी पर बढ़ती निर्भरता भी समस्याओं को गहरा कर रही हैं।

सरकार सांझी कृषि के मॉडल को अपनाकर किसानों को मंहगी मशीनरी के बोझ से बचाए व कीटनाशकों व खादों का उपयोग करने की मुहिम चलाए। फसलों की खरीद के लिए स्वामी नाथन कमिशन की सिफारिशों को भी लागू करने की आवश्यकता है। सरकार व किसान दोनोें पक्षों को अपनी जिम्मेवारी प्रति गंभीर होना होगा। हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं है। पुलिस किसानों को अपराधियों की तरह पीटने की बजाए नाजुक हालातों में पूरी जिम्मेवारी के साथ काम करे।

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