सुधर जाओ उल्लुओ

Demonetization, SC, 500-1000 Rs Notes

परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है। जो स्वयं परिवर्तन के मूल्य को जानते-पहचानते एवं इसका अनुगमन करते हैं वे सुखी रहते हैं। इन्हें न कभी कुछ दिन जाने का भय रहता है और न लुट जाने का।
कालचक्र की गति को महसूस करते हुए भी जो लोग जड़ता ओढ़े रहते हैं, वे जड़त्व को प्रा΄त हो जाते हैं। और लक्ष्मी के बारे में तो साफ-साफ कहा गया है कि यह चंचल होती है। जब तक यह चंचल स्वभाव की होकर भ्रमणशील रहती है तभी तक ताजी और मंगलकारी होती है। जहां कोई इसे अपनी बनाकर गिरफ्त में रखना चाहता है, यह भाग छूटने के सारे रास्ते तलाशती रहती है।
जो लक्ष्मी को जमाने भर की नजÞर से छिपाकर अंधेरे में नजÞरबन्द कर देने को उद्यत होते हैं उन सभी अंधेरा पसन्दोें को उल्लू बनाती रहती है। ये सारे के सारे उलूकराज इसी भ्रम में जीते रहते हैं कि लक्ष्मी उनके पास है, उनकी है। और इसी व्यामोह के बीच जीते हुए उल्लुओं से लक्ष्मी नाराज होकर पलायन कर जाती है।
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट को लेकर जिस तरह का निर्णय किया है वह देश और दुनिया के तमाम उल्लुओं के लिए महान वज्रपात का आघात कराने वाला साबित हो रहा है। अपने नापाक पड़ोसी सहित जो लोग भारतीय मुद्रा के सहारे आतंकवाद और राष्टÑविरोधी गतिविधियों को पनपाने के लिए भारतीय मुद्रा और नकली नोटों का सहयोग कर रहे थे, उनका गला घोंटने के लिए यह कदम काफी है।
दुनिया में किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि भारतवर्ष में ऐसा भी कोई निर्णय कभी हो सकता है जिसमें शासन के शीर्ष पर बैठा कोई महानायक अदम्य आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर देश हित में ऐसा कुछ कर देगा कि सारा विश्व अचंभित हो जाएगा। और जो लोग मुद्रा के भण्डारोें के दम पर कूदने वाले हैं, अपने अहंकारों में भर कर इंसानियत भुला बैठे हैं, उन सभी की नींद हराम हो जाएगी और आशंकाओं से भरी जिन्दगी की नींव पड़ जाएगी, जहां हर कदम पर तनाव ही तनाव पसरे हों।
हिन्दुस्थान के इतिहास में यह पहला मौका है जब देश के ईमानदार और मेहनतकश लोगों को यह अहसास हुआ है कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। यह विश्वास जमाने में प्रधानमंत्री का कदम सदियों तक यादगार रहेगा।
पूंजीवाद हर क्षेत्र में इतना अधिक घुसपैठ कर चुका है कि सारे सिद्धान्त, मूल्य, प्रतिभाएं, पात्रताएं और सब कुछ स्वाहा हो गया है और आदमी की औकात केवल पैसों के बूते ही नापी जाने लगी है।
समाज-जीवन के हर क्षेत्र में वही इंसान सर्वोपरि और महत्वपूर्ण हो गया है जो कि पैसे वाला है और जिसमें अधिक से अधिक लोगों को खरीदने, अपने अनुकूल बनाने और स्वार्थ पूरे करने-करवाने की क्षमताएं हैं।
इन तमाम प्रकार के स्याह-सफेद और चितकबरे उल्लुओं को पहली बार लगने लगा है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है। जो लोग दीन-हीनों, जरूरतमन्दों, समाजजनों, क्षेत्रवासियों, अपने क्षेत्र और देश के लिए एक पैसा भी खर्च करना अधर्म मानते हुए लाखों-करोड़ों से लेकर अरबों तक के नोट अपने बाड़ों में गुपचुप दबाये रखने के आदी रहे हैं, उन सभी लोगों के लिए यह परम दु:ख एवं शोक की घड़ी है और इन सभी के प्रति दिली संवेदनाएं व्यक्त करना हम सभी का कर्तव्य है।
चाहे ये लोग कितने ही खुदगर्ज, धूर्त, मक्कार, संग्रही, नाकारा और संवेदनहीन क्यों न हों, हमारे या देश के किसी काम के क्यों न हों, पर दुखी और दर्दी के प्रति मानवीय संवेदना और सहानुभूति व्यक्त करना हमारा धर्म है। वे लोग अपना-अपना अधर्म निभाते हुए चाहे किसी काम के न हों, हम सभी को अपना-अपना धर्म निभाने से पीछे नहीं रहना चाहिए।
यह हमारी संस्कृति और परंपरा भी है जिसकी रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है। किन लोगों के प्रति हमें हमदर्दी जतानी है, कौन लोग इस आकस्मिक आपदा से अत्यन्त आहत, निर्धन और दु:खी महसूस कर रहे हैं, यह हम सब जानते हैं।
उन तमाम बड़े और महान कहे जाने वाले, पराये पैसों पर मौज उड़ाने वाले असामान्य और असाधारण लोगों के बारे में सभी को जानकारी है। इसलिए न कोई पता बताने की जरूरत है, न नाम। पाँच सौ और एक हजार के नोटों का यह आकस्मिक और सामूहिक महाप्रयाण हम सभी के लिए सबक सिखाने वाला है। इन पुराने नोटों का वंश तक समा΄त हो चला है अब।
इन हालातों से जो सीख ले लेंगे, वे तर जाएंगे और जो फिर पुराने ढर्रे पर चलकर संग्रही और खुदगर्जी से भरे संसार में धींगामस्ती करने लग जाएंगे, वे फिर कभी न कभी धरे जाएंगे, जैसे कि आज महसूस कर रहे हैं।
अपरिग्रह का संदेश आज की स्थिति में कितना सार्थक और सर्वोपरि लग रहा है, यह सभी दिल से मानने लगे हैं। अपरिग्रह का आनंद आज देश में हिलोरे ले रहा है और अधिकांश लोग प्रसन्नता के मारे फूले नहीं समा रहे, जो कि ईमानदार और पुरुषार्थी हैं।
कालाबाजारियों, भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों, हरामखोरों, जमाखोरों और नोटखोरों को सबक सिखाना जरूरी हो चला था और यह काम कर मोदीजी ने भारतीय जन मन को मुदित कर दिया। यह ऐतिहासिक दिन पूंजीवाद से स्वाधीनता की ओर बढ़ते कदम के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। इसके लिए हमारे अलौकिक प्रधानमंत्रीजी बधाई व साधुवाद के पात्र हैं। डॉ़ दीपक आचार्य