अराजकता के विरुद्ध एक समान हों विश्व मापदंड

आखिर अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र में उत्तर कोरिया के खिलाफ पाबंदियों का प्रस्ताव पास करवाने में सफल हुआ। सबसे अहम बात यह है कि उत्तर कोरिया के सहयोगी चीन ने भी इस प्रस्ताव के लिए सहमति दी। यह एक ऐतिहासिक घटना है, जब पूरी दुनिया ने अमन-शांति के लिए एकजुटता दिखाई है। उत्तर कोरिया ने बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण कर जिस तरह अमेरिका को अपनी चपेट में लाने का दावा किया था, उससे विश्व में तीसरी जंग की संभावनाएं शुरू हो चुकी थीं।

रक्षा के लिए हथियार बनाना आपत्ति-जनक नहीं है, लेकिन जब कोई देश, दूसरे देश पर हमला करने की ताकत दिखाने का दावा करे, तब इसे कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था स्वीकार नहीं कर सकती। जहां तक उत्तर कोरिया के शासक की मानसिकता व बयानबाजी का ताल्लुक है वह दक्षिण कोरिया व उसके साथी अमेरिका का कट्टर विरोधी है। भले उत्तर कोरिया के हथियारों के दावों को संदेह की नजर से देखा जाता है फिर भी जिस तरह इस देश ने हाईड्रोजन बम बनाने का दावा किया है, यदि इसमें जरा सी भी सच्चाई है, तब यह पूरे विश्व के लिए बड़ा खतरा है।

चूंकि यह लड़ाई उत्तर व दक्षिण कोरिया की नहीं बल्कि चीन, रूस, अमेरिका व जापान जैसे देशों का अप्रत्यक्ष मुद्दा होगा। उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार है, इसकी भी चर्चा हो चुकी है। पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान परमाणु बम की तकनीक उत्तर कोरिया को बेचने के मामले में जेल की हवा खा चुके हैं। इन हालातों में उत्तर कोरिया के खिलाफ सभी देशों का एकजुट होना बड़ा निर्णय है। यदि चीन और अन्य देश ईमानदारी से इस निर्णय पर कायम रहते हैं, तब इससे उत्तर कोरिया के तानाशाह शासक को नसीहत मिल सकती है।

यदि किसी भी देश ने इस मामले में दोहरी रणनीति अपनाई, तब यह तबाही को न्यौता होगा। प्रस्ताव पास करने के बाद भी रूस व चीन दक्षिण कोरिया में अमेरिका की मौजूदगी को सहन नहीं कर रहे। बाहरी सहमति के साथ-साथ इन तीनों देशों की सहमति में ईमानदारी होना आवश्यक है। यहां कश्मीर मामले में चीन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या चीन अमन-शांति के लिए जम्मू-कश्मीर में सक्रिय पाक आधारित आतंकवाद के खिलाफ उत्तर कोरिया की तरह ही फैसला लेगा? क्योंकि चीन लगातार भारत को वांछित आतंकवादी मसूद अजहर खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाने का विरोध कर रहा है। विभिन्न देशों में चीन के अलग-अलग पैंतरे उसकी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं, जबकि विश्व में एक समान मापदंड अपनाए जाने से ही विवादित मुद्दे निपटेंगे।

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