कुपोषण की घटना से शर्मसार हुई राजधानी

Embarrassed by the phenomenon of malnutrition

देश की राजधानी दिल्ली में तीन सगी बहनों की भूख से मौत की शर्मनाक तस्वीर ने दिल्ली सरकार की कागजी जनसुविधाओं की पोल खोल दी है। साथ ही केंद्र सरकार की भूख से लड़ने की उस लड़ाई को भी पीछे धकेलने का काम किया है जिसे वह सालों से अपने यहां से भुखमरी को खत्म करने के लिए दक्षिण एशिया को भी इस मोर्चे पर पीछे धकेल दिया है। दिल्ली के लिहाज से ये घटना भूख से लड़ने की वकालत नहीं करती। केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से तत्काल प्रभाव से घटना की पूरी जानकारी मांगी है। लानत है ऐसी हुकूमत पर जो भूखों का पेट तक न भर सके। देश की राजधानी दिल्ली में भूख की तड़फन से तीन मासूमों ने दम तोड़ दिया। एक सर्वे संस्था की रिपोर्ट पर गौर करें तो दिल्ली में सबसे ज्यादा बेघर और गरीब रहते हैं। ये गरीब ऐसे प्रांतों और जगहों से आते हैं जहां भुखमरी की समस्या विकराल रूप से है। गरीब इस मकसद से दिल्ली कूच करते हैं कि मेहनत-मजदूरी करके पेट की आग शांत कर सकेंगे। लेकिन उनको क्या पता कि उनके हिस्से के भोजन पर यहां पहले से ही डाला डला हुआ है।

मंगल सिंह भी दो साल पहले अपनी तीन बेटियों के साथ दिल्ली इसी उददेश्य से आया था कि वहां भर पेट खाने के अलावा अच्छी जिंदगी जी सकेगा। उनकी बच्चियां किसी अच्छी पाठशाला में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगी। लेकिन उनको क्या पता था कि जिंदगी की बेहयाई और गरीबी का दंश उसे यहां भी नहीं छोड़ेगा। भूख ने मंगल सिंह की जिंदगी को कुछ क्षण में तहस-नहस कर दिया। उनकी आंखों के सामने ही उनकी तीनों लाड़ली बेटियों ने भूख से बिलबिला कर सांसें रोक दी। बेबस पिता कुछ न कर सका। सिर्फ देखता रहा। बच्चियों को अस्पताल ले जाने के भी पैसे नहीं थे। कुछ पड़ोेसियों ने उन बच्चियों को पास एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया। दिल-दहला देने वाली ये घटना दिल्ली सरकार के गाल पर तमाचा मारने जैसी है। विकल्प की राजनीति के नाम सत्ता में आए अरविंद कजेरीवाल के सभी वायदे आज हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। जनसुविधाएं सफेद हाथी साबित हो रही हैं। घटना पूर्वी दिल्ली के मंडावली में घटी है। ये इलाका दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के विधानसभा क्षेत्र में आता है।

घटना की मूल सच्चाई जानने के लिए प्रशासन ने तीनों बच्चियों के शव का दो बार पोस्टमॉर्टम कराया है। दोनों रिपोर्ट में पता चला है कि उनके पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं था। भूख के कारण दोनों की आतें आपस में चिपटी पाई गई हैं। पीएम करने वाले चिकित्सक ने खुलासा किया है कि बच्चियों को करीब एक सप्ताह से खाना नहीं मिला था। इसलिए प्रथमदृष्ट तो भुखमरी के कारण ही उनकी मौत हुई है। दिल्ली सरकार के अलावा उनके पड़ोसियों को भी शर्म आनी चाहिए, जिन्होंने इस परिवार को खाना मुहैया नहीं कराया। घटना की निंदा शब्दों से नहीं की जा सकती। मंडावली घटना पर राज्य सरकार पर लोग तीखे सवाल उठा रहे हैं। निश्चित रूप से सरकार के पास जबाव नहीं होगा। लेकिन तीन बहनों की एक साथ हुई संदिग्ध मौत ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि समाज किस तरह बढ़ रहा है। झारखंड में भी कुछ इसी तरह ही पिछले साल एक बच्ची खाना मांगते-मांगते मर जाती है। लेकिन किसी की क्या मजाल उस समय उसे कोई खाना दे देता। सरकारी सहयोग के साथ-साथ आज मानवीय वेदना भी इस कदर आहत हो गईं हैं जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। दूसरों के दुखों में शामिल होने के वजाय लोग पीछा छुडाकर भागते हैं।

दिल्ली की इस घटना ने सरकार की समूची व्यवस्था पर प्रहार किया है। हादसे ने दिल्ली सरकार की राशन को डोर टू डोर पहुंचाने वाली योजना की भी कलई खोल दी है। सवाल उठता है गरीबों को मुहैया कराने वाला भोजन आखिर किसके पेट में जा रहा है। या फिर सिर्फ कागजों में भोजन बांटा जा रहा है। मंडावली की घटना उन सरकारी आंकड़ों की चुगली करने के लिए काफी है। जिसे भुखमरी पर काबू पाने की बात कही जाती है। पिछले करीब 12 वर्षों में भारत का जीडीपी औसतन आठ फीसदी रहा है। बावजूद इसके भुखमरी की समस्या जस की तस है और बढ़ोतरी ही हो रही है। इससे यह बात साफ होती है कि तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद देश में भूख की प्रवृति लगातार बनी हुई है। ज्यादा भूख का मतलब है, ज्यादा कुपोषण। देश में कुपोषण की दर क्या है? इसका अगर अंदाजा लगाना हो तो लंबाई के हिसाब से बच्चों के वजन का आंकड़ा देख लेना चाहिए। आज देश में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हंै। दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान है, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित है। कागजों में सपन्न दिल्ली में भी कुपोषण की समस्या दूसरे राज्यों से कम नहीं है। यहां भी भूखमरी से लोग दम तोड़ रहे हैं।

बच्चियों की मौत की घटना को लेकर दिल्ली सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि जांच करने की जरूरत अब इसलिए नहीं है क्योंकि सच्चाई तो सामने आ ही गई है। दिल्ली सरकार दावा करती है कि उनके पास खाद्य व अन्न की कमी नहीं है। सवाल उठता है कि जब अन्न की कमी नहीं है तो ये घटना क्यों घटी? खाद व अन्न को लेकर अगर पूरे देश की बात करें तो सन् 1950 के मुकाबले अब सरकारों के पास पांच करोड़ टन अधिक खाद्यान हंै। बावजूद इसके मुल्क में बहुत से लोग भुखमरी के कगार पर है। ऐसा नहीं है कि यह पैदावार देश की आबादी के लिए कम है। दरअसल असल समस्या है अन्न की बर्बादी। देश में अनाज का करीब 40 फीसदी उत्पादन और आपूर्ति के विभिन्न कारणों में बर्बाद हो जाता है। गेहूं की कुल पैदावार में से तकरीबन 2.1 करोड़ टन सड़ जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 2013 के अध्ययन के मुताबिक प्रमुख कृषि उत्पादों की बबार्दी से देश को 92.651 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। वह सिलसिला बदस्तूर जारी है। दिल्ली की घटना के बाद अब राजनीति शुरू हो गई है। मृतक बच्चियों के परिजनों से सत्ता-विपक्ष आदि के नेताओं को मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी भी भूख से मरी तीन बहनों के परिवार से मिलकर उनके पिता को पचास हजार रुपये की मदद की। इसके दिल्ली सरकार से भी सहयोग मिलने की बात कही जा रही है। लेकिन सवाल उठता है ये पहले क्यों नहीं किया गया। किसी की जान जाने के बाद ही ये सब क्यों किया जाता है।

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