विलंबित न्याय: अन्याय समान

Supreme Court, Petition, Triple Divorce Issue

किसी भी आजाद देश जो विकास पथ पर अग्रसर है, उसके लिए यह बहुत ही जरूरी हो जाता है कि आम आदमी को सुलभ और त्वरित न्याय दिलाने के लिए राज्य न सिर्फ इसका समुचित प्रबंध करे बल्कि इसके लिए दीर्घकारी योजनाएं भी बनाए।

अफसोस कि आज भी एक आम आदमी को अमूमन तौर पर अपने मुकदमे के निपटारे के लिए निर्धारित समय सीमा का कम से कम ढाई से तीन गुना विलंब तो होता ही है। खुद कानूनविद इसके बहुत सारे कारण मानते और गिनवाते हैं।

कानूनविद और विधि विशेषज्ञ अपने अध्ययन के आधार पर भारतीय न्यायपालिका की कच्छप गति के लिए कुछ विशेष कारणों को ही जिम्मेदार मानते हैं। इनमें सबसे पहला कारण खुद सरकार ही है। यहां यह बताना समीचीन होगा कि देश में आज लंबित लगभग साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमों के लिए खुद सरकार ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि इन लंबित मुकदमों में से एक तिहाई मुकदमों में सरकार खुद एक पक्ष है।

विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को अविलंब ही इस दिशा में काम करना चाहिए और न सिर्फ फालतू व जबरन दर्ज किए कराए मुकदमों को वापस लिए जाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए बल्कि एक ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए, एक स्क्रूटनाइजेशन जैसी व्यवस्था जो अपने स्तर पर जांच करके सरकार को वादी प्रतिवादी बनने से बचने में मदद करे और अनावश्यक अपील करके उसे लंबा करते चले जाने में भी।

विधिवेत्ता मानते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी भी निरपराध को सजा से बचाने के लिए बहुस्तरीय न्याय व्यवस्था का प्रावधान किया गया। लेकिन यह न सिर्फ मुकदमों के निस्तारण को बेहद धीमा बल्कि इसे बहुत खर्चीला भी बना देता है। एक आकलन के अनुसार यदि किसी मुकदमे को अपने सारे स्तरों से गुजरना पडेÞ तो भी मौजूदा स्थितियों में कम से कम पांच से आठ वर्षों का समय लगना तो निश्चित है।

बढ़ती जनसंख्या और उससे भी ज्यादा समाज में बढ़ते अपराध , लोगों की अपने विधिक अधिकारों के प्रति सजगता में आई तेजी , देश में अदालतों और न्यायाधीशों की घोर कमी , अधीनस्थ न्यायालयों में ढांचागत सुविधाओं का घोर अभाव , न्यायाधीशों व न्यायकर्मियों को मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण उनकी कार्यकुशलता तथा मनोभावों पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव, न्यायपालिका में तेजी से बढ़ता भ्रष्टाचार आदि कुछ ऐसे ही मुख्य कारण हैं जिन्होंने अदालती कार्यवाहियों को दिन महीनों की तारीखों में उलझा कर रख दिया है।

हालांकि, न्यायप्रक्रिया को गति प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने कार्यक्रमों की शुरूआत की है लेकिन विधि विशेषज्ञ इनसे बेहतर कुछ उपाय अपनाने की ओर इशारा करते हैं। कानूनविद मानते हैं कि सरकार को सबसे पहले देश में ज्यादा से ज्यादा अदालतों के गठन के साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति और रिक्त स्थानों को भरने की तुरंत व्यवस्था करनी चाहिए।

आज मुकदमों के निस्तारण के लिए भारतीय न्यायपालिका द्वारा अपनाए जा रहे सभी वैकल्पिक उपायों जैसे मध्यस्थता की प्रक्रिया, लोक अदालतों का गठन, विधिक सेवा का विस्तार, ग्राम अदालतों का गठन, लोगों में कानून एवं व्यवस्था के प्रति डर की भावना जाग्रत करना, प्रशासन द्वारा अपराध की रोकथाम हेतु गंभीर प्रयास, अदालती कार्यवाहियों में स्थगन लेने व देने की प्रवृत्ति में बदलाव, अधिवक्ताओं द्वारा हड़ताल, बहिष्कार जैसी प्रवृत्तियों को न अपनाए जाने के प्रति किए जाने वाले उपाय आदि से अदालत में सिसक और घिसट रहे मुकदमों में जरूर रफ्तार लाई जा सकेगी, लेकिन ऐसा कब तक हो पाएगा, यह बहुत बड़ा प्रश्न है।

-अजय कुमार झा

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