कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने प्रणब से पूछे 3 सवाल

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नई दिल्ली।

प्रणब मुखर्जी के नागपुर में संघ मुख्यालय जाने को कांग्रेस ने आड़े हाथ लिया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपने ट्वीट में प्रणब से 3 सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि प्रणब ने राष्ट्रवाद पर बात करने के लिए संघ मुख्यालय को ही क्यों चुना? आज अचानक से संघ अच्छा कैसे हो गया? 7 जून को प्रणब संघ के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। संघ के मंच से उन्होंने राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपनी बात रखी। करीब 30 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल का जिक्र किया।

अपने भाषण में प्रणब ने भारत के स्वर्णिम इतिहास को बताया- आरएसएस ने कहा कि प्रणब ने संघ मुख्यालय में दिए अपने भाषण के 5 हजार साल पुराने भारत के स्वर्णिम इतिहास को बताया। इसमें उन्होंने भारत की अनेकता में एकता को देश की नींव करार दिया।
अरुण कुमार आरएसएस के प्रचार प्रमुख ने कहा, “मुखर्जी ने कहा कि हमारी व्यवस्था बदल सकती है लेकिन हमारी मूल्य बरकरार रहेंगे। उन्होंने भारत की बहुलतावादी संस्कृति को भी बताया।”

“हम प्रणब मुखर्जी को धन्यवाद देते हैं कि वे यहां आए और देश, राष्ट्रवाद और देशभक्ति की बात की।”
भाषण में प्रणब ने कहा- राष्ट्रवाद की बात कहने आया हूं
प्रणब ने कहा, ”मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर अपनी बात साझा करने आया हूं। तीनों को अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है। देश यानी एक बड़ा समूह जो एक क्षेत्र में समान भाषाओं और संस्कृति को साझा करता है। राष्ट्रीयता देश के प्रति समर्पण और आदर का नाम है।‘‘यूरोप के मुकाबले भारत में राष्ट्रवाद का सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम से आया है। हम सभी को परिवार के रूप में देखते हैं। हमारी राष्ट्रीय पहचान जुड़ाव से उपजी है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाजनपदों के नायक चंद्रगुप्त मौर्य थे। 550 ईसवीं तक गुप्तों का शासन खत्म हो गया। कई सौ सालों बाद मुस्लिम शासक आए। बाद में देश पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में प्लासी की लड़ाई जीतकर राज किया।

‘‘1895 में कांग्रेस के सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने अपने भाषण में राष्ट्रवाद का जिक्र किया था। महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।’’

”हमारी राष्ट्रीयता को रूढ़वादिता, धर्म, क्षेत्र, घृणा और असहिष्णुता के तौर पर परिभाषित करने का किसी भी तरह का प्रयास हमारी पहचान को धुंधला कर देगा। हम सहनशीलता, सम्मान और अनेकता से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं और अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए लोकतंत्र उपहार नहीं। बल्कि एक पवित्र काम है। राष्ट्रवाद किसी धर्म, जाति से नहीं बंधा।’’

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