सम्मेलन तथा परमाणु निशस्त्रीकरण की संभावनाएं

Conferences, Possibility, Nuclear Disarmament

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच परमाणु युद्ध के अप्रत्याशित तनाव के बाद 12 जून को सिंगापुर में मुलाकात होने वाली है। दोनों देशों के बीच जिस तरह बेहद तनाव पूर्ण संबंध रहे हैं, वैसे में इस शिखर सम्मेलन पर संपूर्ण दुनिया की नजर स्वाभाविक ही है। 24 मई को जिस तरह ट्रंप ने इस मुलाकात को अचानक रद्द किया और फिर 27 मई को पुन वार्ता पूर्ववत करने की घोषणा की, उससे इस वार्ता के अनिश्चतताओं के संकट को समझा जा सकता है।

इस शिखर वार्ता के तैयारी हेतु उत्तर कोरिया के जनरल किम योंग चेल 29 मई को बीजिंग पहुंचे। वहां चीनी अधिकारियों से वार्ता कर 30 मई को न्यूयॉर्क पहुंचे। सिंगापुर में 12 जून को संभावित शिखर बैठक के पहले चल रही तैयारियों के दौरान यह महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। वर्ष 2000 के बाद कोई वरिष्ठ उत्तर कोरियाई अधिकारी अभी अमेरिका यात्रा पर हैं।

पिछले वर्ष 3 सितंबर को उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम बनाकर अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दी थी। ज्ञात हो,3 सितंबर 2017 को 6 ठे उत्तर कोरियाई परमाणु परीक्षण के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 11 सितंबर को उत्तर कोरिया पर अब तक का सबसे कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाया था। लेकिन प्रतिबंधों के केवल 4 दिन बाद ही उत्तर कोरिया ने 15 सितंबर को ह्नासोंग-12 का परीक्षण कर दुनिया को चौका दिया था।

इसके ढाई माह बाद 29 नवंबर को उत्तर कोरिया ने पुन: एक लंबी दूरी के इंटर बैलेस्टिक मिसाइल ह्नासोंग-15 का सफल परीक्षण किया था। उत्तर कोरिया वैसे तो दर्जनों परीक्षण कर चुका है,लेकिन अमेरिकी शहरों तक पहुंच होने का दावा उसने पिछले वर्ष पहली बार किया। भारी हथियार के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम ह्नासोंग-15 की क्षमता 13,000 किमी से अधिक है,जबकि अमेरिका की दूरी 10,000 किमी है।उत्तर कोरिया ने ह्नासोंग-15 द्वारा जहाँ मिसाइल प्रोद्योगिकी के आधुनिकतम शक्ति का प्रदर्शन किया,

वहीं इसके बाद कोरियाई संकट की आंच अंतरिक्ष तक भी पहुंच गई। इस तरह पिछले दो साल के दौरान अमेरिका और उत्तर कोरिया का तनाव जिस चरम स्थिति पर पहुंच गया था, उससे लग रहा था कि तीसरा विश्व युद्ध दूर नहीं है। अमेरिका और उत्तर कोरिया ने एक दूसरे के लिए डरावने परमाणु हथियारों के धमकी भरे शब्दों का भी प्रयोग किया। इस दृष्टि से 12 जून के ट्रंप और किम जोंग उन के ऐतिहासिक और अभूतपूर्व मुलाकात के महत्व को समझा जा सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अब तक के कार्यकाल में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन का मजाक उड़ाते रहे हैं। वहीं किम जोंग भी ट्रंप को धमकी देने से बाज नहीं आते थे। किम जोंग उन ने सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन दोनों देशों के बीच वार्ता में सेतु का काम दक्षिण कोरिया और वहां के राष्ट्रपति ‘मून जाए इन’ ने शीतकालीन ओलंपिक के दौरान किया।

उत्तर कोरिया ने अमेरिका के साथ वार्ता हेतु सभी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने की घोषणा की है। यह घोषणा कहती है कि किम जोंग उन स्वेच्छा से परमाणु परीक्षणों पर विराम लगा रहे हैं। इसके साथ ही उत्तर कोरिया ने वर्ष 2006 से सभी परीक्षणों के गवाह रहे पुंगेरी परमाणु परीक्षण केंद्र को भी 24 मई को विस्फोट कर उड़ा दिया।

ऐसा इसलिए है कि क्योंकि किम जोंग मानते हैं कि उनके देश ने परमाणु हथियारों की डिजाइन पर महारत हासिल कर ली है। वर्ष 2016 और 2017 के सितंबर माह में सामने आए उत्तर कोरिया के 5 वें और 6 ठें परमाणु परीक्षण को ध्यान से देखें, तो पता चलता है कि इसने अहम मानकों को छुआ है। उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया के मुताबिक, 2016 के परीक्षण में एक कॉम्पैक्ट न्यूक्लियर डिवाइस का इस्तेमाल किया गया था, जिसे कम, मध्यम, इंटर – मीडियम और इंटर -कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल पर लगाया जा सकता है।

विश्व समुदाय के लिए चिंता जनक बात यह है कि हालिया परमाणु परीक्षणों से पता चलता है कि उत्तर कोरिया के पास अत्यंत शक्तिशाली परमाणु हथियार बनाने की क्षमता है। हालांकि स्वतंत्र विश्लेषक और कई राष्ट्रीय खुफिया संस्थाएं अब तक इस मुद्दे पर एक राय नहीं हैं कि उत्तर कोरिया ने अपने दावे के मुताबिक थर्मोन्यूक्लियर बम बनाने में महारत हासिल की है। लेकिन 3 सितंबर 2017 को हासिल हुआ सिस्मिक डेटा बताता है कि उत्तर कोरिया के पास एक शहर को खत्म करने जितनी मारक वाला परमाणु बम है।

मिसाइल परीक्षणों के संदर्भ में किम ने कहा कि अब वो आगे इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज मिसाइल (आईबीएम) का परीक्षण नहीं करेंगे। कई वैश्विक रणनीतिकारों को उनका यह कदम बेहद चौकाने वाला लगा। उत्तर कोरिया की प्रक्षेपित की गई कुल मिसाइलों में से सिर्फ तीन मिसाइलों ही ऐसी है, जो अमेरिका तक न्यूक्लियर हमला कर सकती है। उनमें से कोई भी परीक्षण ऐसा नहीं है, जो उस पथ का अनुपालन करता हो जो परमाणु हमले के लिए जरूरी है। लेकिन उत्तर कोरिया के पास कुछ और भी योजनाएं हो सकती हैं।

मसलन उत्तर कोरिया ने खुद को तकनीकी स्तर पर इतना समृद्ध बना लिया है कि वो अमेरिका को आतंकित कर सकता है। लेकिन उत्तर कोरिया की मिसाइल ताकत लॉन्चर्स की कमी के चलते भी सीमित है। फिलहाल उत्तर कोरिया के पास अपनी मिसाइलों को लांच करने के लिए सिर्फ 6 लॉंच व्हीकल है। 2017 में अपने अभिभाषण के दौरान किम जोंग उन ने कहा था कि उनकी परमाणु ताकत पूरी हो चुकी है। ऐसे में इस बात पर यकीन करना आसान हो जाता है कि वो परमाणु हथियारों के घटकों और नियंत्रण प्रणाली को समृद्ध करना चाहेंगे।

परमाणु परीक्षणों पर बैन की भी अपनी एक सीमा है। उत्तर कोरिया ने पश्चिमी पत्रकारों की उपस्थिति में तीन विस्फोटों के द्वारा पुंगेरी टेस्ट साईट के सुरंगों को ध्वस्त कर दिया। फिर विस्फोट के बाद पत्रकारों को उस स्थान का दौरा कराया, परंतु हमें यह समझना चाहिए कि किम ने यह संपूर्ण प्रक्रिया पत्रकारों के समक्ष संपन्न किया,न कि इस मामले के विशेषज्ञों के समक्ष। इसके अतिरिक्त 1994 में अमेरिका के साथ हुए परमाणु हथियारों के परीक्षण रोकने के लिए किया गया समझौता टूटने के बाद उत्तर कोरिया ने 1999 में मिसाइल टेस्टिंग प्रतिबंध पर सहमति जताई थी, लेकिन 2006 में उसने एक बार फिर इसे तोड़ दिया।

उत्तर कोरिया की ओर से उपरोक्त रियायत अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की पृष्ठभूमि तैयार करने के संदर्भ में की गई, जिससे विश्व समुदाय उत्तर कोरिया के परमाणु निशस्त्रीकरण के प्रयासों को गंभीरता से ले। उत्तर कोरिया के उपरोक्त घोषणाओं से बहुत से वैश्विक रणनीतिकार आश्चर्यचकित हैं कि आखिर किम जोंग उन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने के पहले ही यह सब क्यों छोड़ दिया? इस सवाल का जवाब आसान है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मीटिंग ही अपने आप में एक तोहफा है,क्योंकि किम के पिता और दादा जी भी ये रुतबा हासिल नहीं कर सके हैं। यही कारण है कि उत्तर कोरिया ने न केवल परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाया है,अपितु अपने एकमात्र परमाणु परीक्षण केंद्र को भी नष्ट कर दिया है,क्योंकि उन्हें ट्रंप के साथ बैठकर जो हासिल होगा,उसके मुकाबले यह त्याग काफी कम है।

राहुल लाल

 

 

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