बंगाल में ‘चाणक्य बनाम चाणक्य’
पश्चिम बंगाल में निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य में 'राजनैतिक तापमान ' बढ़ता ही जा रहा है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्हें 'बंगाल की शेरनी' भी कहा जाता है, अपने अकेले दम पर न केवल बंगाल की सत्ता पर दशकों तक काबिज रही...
2020: संपूर्ण दुनिया लॉकडाउन में, आगे कठिन राह
वर्ष 2020 का विदाई गीत किस प्रकार लिखें। ढोल नगाडे बजाएं? नई आशाओं, सपनों और वायदों के पंखों पर सवार होकर वर्ष 2021 का स्वागत करें? या पिछले 12 महीने से चले आ रहे निराशा के वातावरण में ही जीएं जिसके थमने के कोई आसार नहीं हैं? नि:संदेह वर्ष 20...
गरीबों और किसानों की परवाह कौन करे?
ऐसे समय पर जब किसान आंदोलन जारी है और संपूर्ण विपक्ष उनका समर्थन कर रहा है, सरकार द्वारा हठधर्मिता अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यही नहीं इससे देश के लाखों किसानों को यह संदेश जा रहा है कि सरकार की प्राथमिकता में उनका कोई स्थान नहीं है और इसके बजाय सरकार...
क्या पार्टी में बदलाव की लहर चलेगी?
सोनिया पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। उनकी उम्र बढ रही है। राहुल अनिश्चित नेता हैं जिनमें विश्वसनीता का अभाव है और प्रियंका के साथ वाड्रा उपनाम जुडा हुआ है। वस्तुत: कांग्रेसी नेता गुपचुप रूप से सोनिया के इरादों पर हर कीमत पर अपने बेटे को बचाने की नीति...
ओली को ले डूबा सत्ता का गुरूर
नेपाल हमेशा भारत को बिग ब्रदर मानता रहा है, लेकिन कोविड-19 के दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की बोली जहरीली ही रही तो रीति और नीति भी एकदम जुदा। ओली अपने आका ड्रैगन के इशारे पर साम, दाम, दंड और भेद की नीति का अंधभक्त की मानिंद अनुसरण करते रहे। भारत ...
श्रीराम नेपाल के सियासी संग्राम की वजह
ओली शुरू से ही इस बात के लिए प्रयासरत थे की देश के वास्तविक मुखिया होने के नाते वे सता के केन्द्र में रहें। जबकि पार्टी के वरिष्ठ नेता ओली की शक्तियों में वृद्धि के खिलाफ थे। वे एक व्यक्ति एक पद का हवाला देते हुए ओली को पीएम पद या पार्टी के अध्यक्ष प...
कोरोना के बावजूद तापमान में वृद्धि
बढ़ते उत्सर्जन के सांथ इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना होगा हालांकि देश में कुछ कदम उठाए गए हैं और अक्षय उर्जा पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही वाहनों से उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, बाहरी प्रदूषण आदि रोकने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। अर्ध-शह...
भारत-ब्रिटेन संबंध: बढ़ती साझीदारी
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अगले वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि होंगे। इस अवसर पर उनकी उपस्थिति ब्रेक्जिट के बाद भारत और ब्रिटेन के बीच बढ़ती साझीदारी की द्योतक है। जॉनसन ब्रिटेन के दूसरे प्रधानमंत्री होंगे जो गणतंत्र दिवस के अवसर पर...
कृषि और किसान कल्याण में बौनी रही सरकारें
बीते सात दशकों में कृषि समृद्धि और किसान का कल्याण दोनों हाशिये पर रहे हैं। सरकारें किसानों की जिन्दगी बदलने का दावा करती रहीं मगर देश की आबादी का आधे से अधिक हिस्सा समस्याओं की जकड़न से बाहर ही नहीं निकला।
मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही तम...
अपने हित-अहित से किसान बेखबर व सरकार बाखबर ?
सत्ता द्वारा किसानों की नए कृषि अध्यादेशों को वापस लेने की दो टूक मांग से देश का ध्यान भटकाने के लिए अनेक हथकंडे प्रयोग में लाए जा रहे हैं। सत्ता+गोदी मीडिया+आईटी सेल का अदृश्य संयुक्त नेटवर्क कभी इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ने की कोशिश करता है तो क...
बाजार ताकतों के आगे मजबूर एमएसपी व्यवस्था
सवाल यह है कि केन्द्र व राज्य सरकारें एमएसपी व्यवस्था को फूलप्रुफ बनाना सुनिश्चित कर दे और सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से मण्डियों में भाव नीचे जाते ही तत्काल खरीद आंरभ कर दे तो निश्चित रुप से अन्नदाता को इस व्यवस्था का पूरा पूरा लाभ मिल सकता है। इसके ...
पहली पंक्ति का किसान अन्तिम पायदान पर क्यों!
असल में किसान कानून की पेचेंदगियों में फंसना नहीं चाहता वह फसल उगाने और उसकी कीमत तक ही मतलब रखना चाहता है यही कारण है कि एमएसपी के मामले में वह एक ठोस कानून चाहता है जिसे लेकर सरकार का रूख टाल-मटोल वाला है। सरकार एमएसपी को लेकर किसान का भरोसा बिना क...
विरोध के स्वर दबाने के यह ‘कुटिल शस्त्र’
किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को सत्ता की भूमिका से कम कर के नहीं आंका जाता है,न ही आंका जा सकता है। प्राय: पूरे विश्व के सभी लोकताँत्रिक व्यवस्था रखने वाले देशों में विपक्ष को, सत्ता के किसी भी निर्णय का सड़क से लेकर संसद तक विरोध करने का पूर...
समय की मांग है, एक साथ चुनाव
देश का लगभग 88 करोड़ मतदाता किसी न किसी चुनाव की चुनावी उलझन में जकड़ा रहता है। चूंकि संविधान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का उल्लेख तो है, लेकिन दोनों चुनाव एक साथ कराने का हवाला नहीं है। संविधान में इन चुनावों का निश्चित जीवनकाल भी नहीं है। वैस...
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले….
देश का अन्नदाता इन दिनों अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए शीत ऋतु में भी अपना घर-बार छोड़ कर सड़कों पर उतर आया है। केंद्र सरकार द्वारा पारित किये गए तीन कृषि अध्यादेशों को सही व किसान हितैषी ठहराते हुए बार बार एक ही बात दोहराई जा रही है कि यह नए कानून...