बुलेट ट्रेन के सपने, घटिया खाना हकीकत

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने सपनों को बुलेट ट्रेन के ट्रैक पर दौड़ाने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। देश तरक्की के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़े, ये कौन नहीं चाहेगा। लेकिन यात्रियों को मंहगी टिकट खरीदने के बावजूद थर्ड क्लास सुविधाएं हासिल हो रही हैं।

रेलमंत्री और उनके मातहत दावा करते हैं कि वह यात्रियों को विश्वस्तरीय सेवाएं मुहैया कराने के लिए जी-जान से दिन-रात एक किये हैं, लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छुपी नहीं है।

बीते रविवार को गोवा और मुंबई के बीच चलने वाली तेजस एक्सप्रेस में रेलवे की जलपान इकाई आइआरसीटीसी का खाना खाने के बाद छब्बीस यात्रियों का बीमार पड़ जाना मंत्रालय के दावे पर सवालिया निशान है। बीमार यात्रियों की संख्या चौंकाने वाली है।

तेजस एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम रेलवे में खानपान की इतनी लापरवाही हो सकती है, तो बाकी रेल गाड़ियों में किस प्रकार से खानपान सेवा दी जा रही होगी, इस पर सवाल खड़े हो जाते हैं। रेलवे और खानपान की सेवा पर विवाद हमेशा से रहा है, लेकिन अब इस पर विराम लगाने के लिए रेलवे को सख्त प्रयास करने होंगे।

तेजस एक्सप्रेस में खराब खान-पान ऐसा कोई पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व भी घटिया खान-पान की शिकायतें मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आती रही हैं। करीब तीन महीने पहले पूर्वा एक्सप्रेस में एक यात्री ने जब खाने के लिए बिरयानी मंगाई, तो उसमें मरी हुई छिपकली निकली थी। यह एक बेहद गंभीर मामला था,

लेकिन जब यह शिकायत सामने आई, तो रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने खाना घर से लेकर सफर करने का सुझाव पेश कर दिया। आला दर्जे की सेवाएं मुहैया कराने का दम भरने वाले रेलवे का ऐसा जवाब क्या जिम्मेदारी-भरा कहा जा सकता है? गत वर्ष 23 दिसंबर को लखनऊ से नई दिल्ली जा रही शताब्दी एक्सप्रेस की बोगी सी-11 और सी -12 के यात्रियों को जो खाना दिया गया, उसमें काकरोच निकला। यात्रियों ने खाना फेंक दिया था।

भारतीय रेल दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल है। भारतीय रेल में 7,000 से ज्यादा स्टेशनों पर करोड़ों यात्री यात्रा करते हैं। लेकिन सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेनों और स्टेशनों पर परोसा जा रहा खाना प्रदूषित है। डिब्बाबंद और बोतलबंद चीजों को एक्सापायरी डेट के बाद भी बेचा जा रहा है। पानी तक की गारंटी नहीं है। जिस ब्रांड को बेचने की इजाजत नहीं है, वो भी बेचा जा रहा है।

इतना ही नहीं, बीमार कर देने वाला ये खाना महंगा भी बेचा जा रहा है। न बिल मिलता है, न ही सही दाम का पता चलता है। जरूरी बेस किचन नहीं है। रेलवे के 7 जोन में तो कैटरिंग सर्विस के लिए ब्लूप्रिंट तक नहीं। कैग रिपोर्ट कहती है कि रेलवे में परोसे जाना वाला जनता मील को रेलवे ने ये कहकर शुरू किया था कि इससे रेलवे में सफर करने वाले यात्रियों को सस्ते दर पर अच्छा खाना मिलेगा, लेकिन पिछले 3 सालों में जनता मील की रेलवे स्टेशनों पर उपलब्ध नहीं रहता।

कहने को चलती ट्रेन में या फिर प्लेटफार्म पर खाने में गड़बड़ी होने पर आॅनलाइन शिकायत की व्यवस्था और दोषियों पर एक लाख रुपए तक जुमार्ने का प्रावधान है। मगर ट्रेन से सफर करने वाले कितने यात्री ऐसी शिकायत कर पाने की स्थिति में होते हैं, यह सभी जानते हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान प्रीमियम, सुविधा, फ्लेक्सी किरायों के आदि के नाम पर ट्रेन किराए में जिस कदर बढ़ोतरी की गई है,

टिकट खरीदने से लेकर रद््द करने तक के लिए वसूली जाने वाली राशि का मनमाना निर्धारण किया गया है, उसके बरक्स यात्रियों की सुविधाओं के लिए कुछ भी नहीं हुआ है। गंभीर समस्याओं के बरक्स जब एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च से बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा होती है, तो यही लगता है कि रेलवे को आम मुसाफिरों की ज्यादा फिक्र नहीं है।

-आशीष वशिष्ठ

 

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